रुद्रप्रयाग: सोमवार को ब्रह्नमबेला पर विद्वान अचार्यो ने भगवान तुंगनाथ के स्वयंभू लिंग व चल विग्रह उत्सव डोली तथा साथ चलने वाले देवी देवताओं के निशानों की पंचाग पूजन के तहत अनेक पूजाएं संपंन कराई तथा लगभग तीन सौ श्रद्धालुओं ने भगवान तुंगनाथ का जलाभिषेक कर पूजा अर्चना की।
मठापति राम प्रसाद मैठाणी व हक-हक्कूधारियों ने भगवान तुंगनाथ की पुनः पूजा-अर्चना कर आरती उतारी और चन्दन, पुष्प, अक्षत्र, भृंगराज, भस्म आदि अनेक प्रकार की पूजा सामाग्री से भगवान तुंगनाथ के स्वयंभू लिंग को समाधि दी तथा समाधि देते ही भगवान तुंगनाथ शीतकाल के छः माह के लिए विश्व कल्याण में तपस्यारत हो गये।
इसके बाद पौराणिक परम्पराओं व रीति-रिवाजों के अनुसार भगवान तुंगनाथ के कपाट बन्द कर दिए गए। भगवान तुंगनाथ के कपाट बंद होते ही चल विग्रह उत्सव डोली ने मुख्य मन्दिर सहित अन्य सहायक मन्दिरों की तीन परिक्रमा की और भगवान तुंगनाथ की डोली सुरम्य मखमली बुग्यालों में श्रद्धालुओं को आशीष देते हुए प्रथम रात्रि प्रवास के लिए चोपता पहुंची।
डोली आगमन पर श्रद्धालुओं ने पुष्प अक्षत्रों से भव्य स्वागत किया। मंगलवार को डोली चोपता से प्रस्थान कर बनियाकुण्ड, दुगलबिट्टा, मक्कूबैण्ड होते हुए हुण्डू गांव पहुंचेगी तथा बनातोली में ग्रामीणों ने भगवान तंुगनाथ की डोली को सामूहिक अघ्र्य लगाया जायेगा और डोली अन्तिम रात्रि प्रवास के लिए भनकुण्ड पहुंचेगी।
31 अक्टूबर को भगवान तुंगनाथ की डोली भनकुण्ड से रवाना होकर अपने शीतकालीन गद्दी स्थल तुंगनाथ मन्दिर मक्कूमठ में विराजमान होगी। एक नवम्बर से भगवान तुंगनाथ की शीतकालीन पूजा मक्कूमठ में विधिवत शुरू होगी। इस वर्ष भगवान तुंगनाथ के दर पर 15 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने दर्शन कर पुण्य अर्जित किया। कपाट बन्द होने के पावन अवसर पर केदारनाथ के पूर्व पुजारी गुरू लिंग द्वारा लगभग ढाई लाख की लागत से भगवान तुंगनाथ को दो रूपछड़ी अर्पित की। ')}