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Raibaar Uttarakhand > Home Default > Uttarakhand News > चम चमकी घाम: उत्तराखंड के हिमशिखरों का काव्य
Uttarakhand News

चम चमकी घाम: उत्तराखंड के हिमशिखरों का काव्य

Last updated: June 18, 2025 12:01 pm
Debanand pant
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7 Min Read
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जब मध्य हिमालय की गोद में बसा उत्तराखंड, तब अविभाजित उत्तर प्रदेश का हिस्सा था, तब के उन बर्फीले शिखरों पर सूर्य की प्रथम किरणों का स्पर्श और सूर्यास्त के पश्चात भी चांदी-सी दमकती चोटियों का मनोहारी दृश्य नरेंद्र सिंह नेगी जी जैसे महान गायक और रचनाकार की संवेदनशील दृष्टि से अछूता न रह सका। उनके गीत ‘चम चमकी घाम कान्ठियु मा, हिंवाली काँठी चंदी की बणी गैनी’ में उत्तराखंड के प्राकृतिक सौंदर्य, आध्यात्मिकता और पहाड़ी जीवन की सादगी का ऐसा साहित्यिक और मौलिक चित्रण है, जो हृदय को स्पंदित कर देता है। यह गीत केवल शब्दों का समन्वय नहीं, अपितु हिमालय की आत्मा का काव्य है, जो प्रकृति और मानव के अटूट बंधन को उजागर करता है।

मुखड़ा: चम चमकी घाम कान्ठियु मा

“चम चमा चम चमचम चमचम चम चमकी, चमकी, चम चमकी घाम कान्ठियु मा, हिंवाली काँठी चंदी की बणी गैनी”

{सूरज की किरणें पहाड़ों की बर्फीली चोटियों (हिंवाली काँठी) पर पड़ती हैं, जिससे वे चांदी की तरह चमकने लगती हैं। यह दृश्य सूर्योदय के समय का है, जब सूरज की रोशनी पहाड़ों को जगमगाती है, और बर्फीली चोटियां चांदी-सी धवल दिखाई देती हैं। }

पहला अंतरा: शिव का कैलाशु गायी पैली-पैली घाम

“शिव का कैलाशु गायी पैली-पैली घाम, सेवा लगौणु आई बदरी का धाम… सर्रर्रर फैली, फैली सर्रर्रर फैली घाम डांडो मा, पौन पंछी डाँडी डाली बोटी बिजी गैनी”

{सूरज की पहली किरण सबसे पहले भगवान शिव के निवास कैलाश पर्वत पर पड़ती है। इसके बाद वह भगवान विष्णु के धाम बदरीनाथ की सेवा करने पहुंचती है। फिर सूरज की किरणें धीरे-धीरे पूरे पहाड़ों (डांडो) में फैल जाती हैं। इस रोशनी के साथ हवा (पौन) चलने लगती है, और पक्षी पेड़ों की डालियों पर चहकने लगते हैं। प्रकृति जाग उठती है, और जीवन में हलचल शुरू हो जाती है।}

दूसरा अंतरा: ठण्डु मठु चड़ी घाम फुलूं की पाख्युं मा

“ठण्डु मठु चड़ी घाम फुलूं की पाख्युं मा, लगी कुतग्यली तौंकी नांगी काख्युं मा… खिच्च हसनी, हसनी फूल डाल्युं मा, भौंरा पोथुला रंगमत बणी गैनी”

{सूरज की ठंडी-मिठास भरी किरणें फूलों की पंखुड़ियों तक पहुंचती हैं। यह रोशनी फूलों की नंगी कोख (पंखुड़ियों) को गुदगुदाती है, जिससे फूल हंसते-खिलखिलाते हुए खिलने लगते हैं। फूलों की इस हंसी और सुंदरता को देखकर भंवरे और पक्षी आकर्षित होकर उनके चारों ओर मंडराने लगते हैं, और प्रकृति रंगीन और जीवंत हो उठती है।}

तीसरा अंतरा: डांडी कांठी बिजाली पौंछि घाम गौ मा

“डांडी कांठी बिजाली पौंछि घाम गौ मा, सुनिंद पोड़ी छै बेटि ब्वारी ड्यरो मा… झम्म झौल, झौल, झम्म झौल लगी आंख्युं मा, मायादार आंख्युं का सुपिन्या उड़ी गैनी”

{सूरज की किरणें पहाड़ों और घाटियों से होती हुई गांवों तक पहुंचती हैं। इस रोशनी के साथ गांव की बेटियां और बहुएं (ब्वारी) अपने घरों में सुंदर दिखने लगती हैं। उनकी आंखों में प्रेम और सपने झिलमिलाने लगते हैं, जैसे सूरज की रोशनी ने उनके मन के सपनों को उड़ान दे दी हो। यह पंक्तियां पहाड़ी महिलाओं की सादगी और सुंदरता को दर्शाती हैं।}

चौथा अंतरा: छुयु मा मिसे गिनि पंदेरो मा पंदेनी

“छुयु मा मिसे गिनि पंदेरो मा पंदेनी, भांडी भुर्ये गिनी तौंकी छुई नि पुरेनी… खल्ल खते खते खल्ल खते घाम मुख्डियो मां, पितलणया मुखड़ी सुना की बणी गैनी”

{पहाड़ी महिलाएं चूल्हे में आग जलाकर खाना बनाती हैं, और बर्तनों को मांजती हैं, लेकिन उनकी मेहनत पूरी नहीं होती। सूरज की रोशनी जब उनके चेहरों पर पड़ती है, तो उनके पसीने से नहाए चेहरे पीतल की तरह चमकने लगते हैं। यह पंक्तियां पहाड़ी महिलाओं की मेहनत और उनकी मेहनत से चमकती सुंदरता को दर्शाती हैं।}

पांचवां अंतरा: दोफरा मा लगी जब बणू मा घाम तैलू

“दोफरा मा लगी जब बणू मा घाम तैलू, बैठी ग्येनी घस्येनी बिसैकी डाला छैलू… गर्रर निंद, गर्रर निंद पोड़ी छैल मा, आयी पतरोल अर घस्येनी लुछे गैनी”

{दोपहर के समय, जब सूरज की गर्मी जंगलों में तेल की तरह चमकने लगती है, घास काटने वाली महिलाएं (घस्येनी) पेड़ की छांव में विश्राम करने बैठ जाती हैं। थकान के कारण उन्हें गहरी नींद आ जाती है, और नींद में वे अपने प्रिय (पतरोल) को याद करती हैं। यह पंक्तियां मेहनत के बाद विश्राम और प्रेम की भावनाओं को दर्शाती हैं।}

छठा अंतरा: भ्यखुनी को शीलू घाम पैटण बैठी गे

“भ्यखुनी को शीलू घाम पैटण बैठी गे, डांडीयु का पिछड़ी जून हैसण बैठीगे… झम्म रात रात, झम्म रात पोड़ी रौलियो मा, पौन पंछी डाँडी डाली बोटी स्पेयी गैनी”

{सूरज ढलने के बाद, जब ठंडी हवाएं चलने लगती हैं, पहाड़ों की ढलानों पर चांदनी बिखरने लगती है। लोग रात में अपने घरों (रौलियो) में सोने की तैयारी करते हैं। हवा और पक्षी शांत हो जाते हैं, और प्रकृति भी रात के लिए सोने लगती है। यह पंक्तियां दिन के अंत और रात की शांति को दर्शाती हैं।}

नेगी जी के इस गीत में उत्तराखंड के प्राकृतिक सौंदर्य और पहाड़ी जीवन का एक खूबसूरत चित्रण है। सूर्योदय से शुरू होकर सूर्यास्त और रात तक, यह गीत प्रकृति और मानव जीवन के बीच गहरा तालमेल दिखाता है। सूरज की किरणें पहले कैलाश और बदरीनाथ जैसे पवित्र स्थानों को छूती हैं, फिर पहाड़ों, फूलों, पक्षियों और गांवों तक पहुंचती हैं। साथ ही, यह गीत पहाड़ी महिलाओं की मेहनत, सादगी और सपनों को भी उजागर करता है। उनकी दिनचर्या, प्रेम और थकान के पल गीत में जीवंत हो उठते हैं।

गीत का हर शब्द उत्तराखंड की आत्मा को छूता है। यह प्रकृति के रंग, पहाड़ों की चमक, और यहाँ के लोगों के जीवन को एक काव्यात्मक रूप देता है। ‘हिंवाली काँठी चंदी की बणी गैनी’ की पंक्ति बार-बार दोहराई जाती है, जो बर्फीली चोटियों की चांदी-सी चमक को हर बार नया रंग देती है। यह गीत केवल सुनने का नहीं, बल्कि महसूस करने का अनुभव है, जो उत्तराखंड की हर सांस में बस्ता है।
शीशपाल गुसाईं

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