उत्तराखंड के टिहरी राजपरिवार की राजमाता कमलेंदुमति शाह पहली निर्दलीय लोकसभा सदस्य थीं। वो 1952 में गढ़वाल, बिजनौर लोकसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव जीती थी। दरअसल, 1949 में टिहरी का भारतीय संघ मे विलय के बाद तत्कालीन राजा नरेंद्र शाह की मृत्यु हो गई। तब राजा के उत्तराधिकारी मानवेंद्र शाह को चुनाव लड़ने की सलाह दी गई पर उनका पर्चा खारिज हो गया। फिर रानी कमलेंदुमति निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उत्तरी। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी कृष्णा सिंह को 13,982 मतों से हराकर जीत दर्ज की और दिल्ली लोकसभा में पहुंची। इसके बाद उन्होंने महिला एवं बाल संस्थाएं (लाइसेंसिंग) बिल -1954 पर लोकसभा में चर्चा करवाई थी यह उनका निजी विधेयक था।
कमलेंदुमति शाह का जन्म 20 मार्च 1903 में हिमाचल प्रदेश के क्योंथल राजघराने में जन्म हुआ। 13 साल की उम्र में ही उनका विवाह टिहरी के महाराजा श्री नरेंद्र शाह से हुआ। कमलेंदुमति को हिंदी, अंग्रेजी व फ्रेंच का अच्छा ज्ञान था, लेकिन वो गढ़वाली भाषा में ही लोगों से वार्तालाव करती थी। कोई गढ़वाली होते हुए भी हिंदी में बात करता तो वो उनसे नाराज हो जाती थी।
सांसद बनने के बाद कमलेंदुमति जी ने पहाड़ की महिलाओं, बुर्जुर्गों और शिक्षा के लिए कार्य करना शुरु किया, महाराजा नरेंद्रशाह ट्रस्ट की स्थापना की जिसमे उन्होंने राज्य के अनाथ, बेसहारा व विधवा महिलाओं के लिए स्कूल खोला। अन्धे और वृद्धों के लिए अंध और वृद्ध विद्यालय की स्थापना की। बालिकाओं के लिए माध्यमिक विद्यालय व महाविद्यालय खुलवाए। कमलेंदुमति को उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए 1958 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। इस तरह उत्तराखंड से पद्मभूषण प्राप्त करने वाली वह पहली सख्सियत बनी।
20 मार्च 1963 को उनके 60 वें जन्मदिन पर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने टिहरी पहुंचकर बालिका कॉलेज का उद्धघाटन किया था। यह कॉलेज उन्हीं के नाम से जाना गया। शहर के जल समाधि लेने पर इस कालेज ने भी समाधि ले ली थीं। 15 जुलाई 1999 को मस्तिष्क कैंसर से उनका निधन हुआ, लेकिन भारत के इतिहास में पहली निर्दलीय सांसद और उत्तराखंड की पहली पद्मभूषण पानी वाली पहली महिला के रुप में उनका नाम हमेशा अमर रहेगा।