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Raibaar Uttarakhand > Home Default > Uttarakhand News > देहरादून > दून की गली-गलियों में चुनाव की नहीं, स्कूलों की मनमानी फीस की चर्चा है, आखिर क्यों?
Uttarakhand Newsदेहरादून

दून की गली-गलियों में चुनाव की नहीं, स्कूलों की मनमानी फीस की चर्चा है, आखिर क्यों?

June 5, 2020 3:41 pm
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5 Min Read
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देहरादून के कई प्राइवेट स्कूल कमाई के खेल में इस तरह धंस चुके हैं कि अब वो अपनी पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा काम को अंजाम दे रहे हैं, खैर सरकार और शिक्षा विभाग ऐसे ही सोता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब गरीब बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा एक सपना हो जाएगा और ये स्कूल अमीर लोगों के भी घर बिकवा देंगे।

आजकल देहरादून की गलियों में चुनाव से ज्यादा स्कूल के फीस का मुद्दा ट्रेंड कर रहा है। हालांकि अविभावक अपनी समस्या को खुलकर सामने नहीं ला पा रहे हैं, एडमिशन के समय में तो इतनी लूट हो जाती है कि अविभावक अपना दर्द कहें तो किसे? लूट इतनी खुलम-खुला जो है, शिकायत किसके पास करें लोगों को डर है कि सरकार भी इनके साथ मिली है कहीं सिकायत करने पर उनके बच्चों के भविष्य पर संकट ना आ जाए इसलिए हर कोई अपने गम को छुपा-छुपा कर सामने ला रहा है।

हर साल मां-बाप पर कॉपी-किताबों से लेकर यूनिफार्म, क्राफ्ट स्पोर्ट्स फी का बोझ तो पड़ता ही है, लेकिन निजी स्कूल वसूली के कई और तरीके भी निकाल दिए हैं, ये वो तरीकें हैं जिससे अविभावक पैंसे तो दे रहे हैं लेकिन स्कूल को पूछ नहीं पा रहे कि आखिर इतने पैंसे क्यों?

कुछ स्कूल में जूनियर से सीनियर विंग में जाने पर री-एडमिशन हो रहा है तो कई जगह एक कक्षा से दूसरी कक्षा में जाने के लिए पुन: प्रवेश को लूट-खसोट का नया फंडा चल रहा है। कुल मिलाकर एक ही स्कूल में 12वीं तक की पढ़ाई के लिए कई बार प्रवेश लेना पड़ता है। किताबें इतनी महंगी हैं कि हर कोई सोचने पर भी मजबूर है, यकीन मानिए 3000 हजार रूपये से अधिक की किताबें तो प्ले ग्रुप में पढ़ने वाले बच्चों की हैं, बड़ी कक्षा वालों को तो बड़ी रकम अदा करनी पढ़ती है वो भी मजबूर किया जाता है, कोई मानक नहीं है किताबों का कोई बिल भी अविभावकों को नहीं दिया जाता है।


फरवरी माह से इस तरह बढ़ता है फीस का दबाव-

फरवरी माह में दो महीने की फी के साथ परीक्षा फीस, यानी अगर आपके बच्चे की फीस 2000 रूपये महिना है तो फरवरी में आपको परीक्षा फी समेत 4500 रूपये का भगतान करना होगा, मार्च के महीने में किताबों और यूनिफार्म का खर्चा, मान लीजिये की आपका बच्चा कक्षा 5 का छात्र है तो उसकी किताबें 5000 रूपये से अधिक की पढ़ती हैं।

वहीं ड्रेस समेत आपको 6000 रूपये की राशि स्कूल में जमा करनी होगी, यह राशि हर स्कूल की अलग-अलग है, किसी की ज्यादा तो किसी की कम भी है। अब अप्रैल माह में खेल चलता है री-एडमिशन का, यानी जब बच्चा अगली कक्षा में जाएगा तो उसे कई तरह की फीस वसूली जाती है। इस महीने में भी आपके बजट पर फीस भारी पढ़ जाएगी और आपको एक मोटी रकम स्कूल को देनी होगी।

अब मई का महिना का महिना भी दूर नहीं अब आपसे दो महीने यानी मई और जून की फीस एक साथ ले ली जायेगी, मतलब कि फिर जेब गर्म करके रखिए, नियमों के अनुसार तो जून की फीस नहीं ली जानी चाहिए। लेकिन अविभावक को तो भारी पड़ ही जाता है इस तरह से स्कूल में जिनके दो या तीन बच्चे पढ़ते हैं ये चार महीने उनके लिए किसी मुसीबत से कम नहीं हैं। इन स्कूलों की मनमानी पर सरकार को कड़े एक्शन लेनी जरूरत है। स्कूल काली कमाई का साधन बनते जा रहे हैं। उनपे किसी का लगाम नहीं है. किताबों की बात कर लो चाहे फीस के मानक की हर जगह धज्जीयां उड़ाई जा रही हैं, लोग पूछ रहे हैं सरकार कहाँ हैं? हम अपने ही बच्चों के स्कूल की सिकायत कैसे कर सकते हैं?

अब दैनिक जागरण की इस खबर को पढ़ लीजिये- लोग किस तरह सिकायत कर रहे हैं.. नाम छुपाने की बात कहकर स्कूल की सिकायत हो रही है.. खोप है लोगों के अन्दर- और गुस्सा भी —
https://www.jagran.com/uttarakhand/dehradun-city-schools-recovering-money-in-the-of-re-admission-from-parents-19116818.html

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