उत्तराखंड आज अपनी स्थापना के 17 साल पुरे कर चूका है। 9 नवम्बर, 2000 को आज ही के दिन सत्ताइसवें राज्य के रूप में उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ था। राज्य के लिए कई आन्दोलन कारियों ने अपना बहुमूल्य बलिदान दिया था।
उनका बस एक सपना था कि पहाड़ों की बदहाल जिंदगी को बदला जा सके। कोई उनकी भी खैर पूछे, पहाड़ के युवा को रोजगार मिले और अच्छी शिक्षा मिले। लेकिन राज्य के गठन होने के पश्च्यात जो पलायन की बयार चली वो आज भी नहीं थम पा रही है।
रोजगार और शिक्षा ये 2 मुद्दे ऐसे रहे हैं जिसने उत्तराखंड को लगभग आधा कर दिया है। इन 17 सालों में चार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। जिनमें राष्ट्रीय पार्टिया कांग्रेस और बीजेपी ने सरकार बनाई। लेकिन इन चार चुनाव में ही उत्तराखंड राज्य ने 10 मुख्यमंत्री देख लिए।
उत्तराखंड की बदहाली के लिए जिम्मेदार माने तो किसे? ऐसे में सोचा जा सकता है कि इन 17 सालों में प्रदेश के जनप्रतिनिधियों ने मात्र प्रदेश की जनता को बेवकूफ बनाकर लूटने का काम किया है। आज पहाड़ के पहाड़ खाली हो गए हैं। युवाओं ने रोजगार के लिये प्रदेश से बाहर का रुख कर लिया है।
पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम ही नहीं आती वो जैसे बहकर किसी अन्य प्रदेश में जाकर उन लोगों के काम आ रही है जो वास्तव में इसके हक़दार नहीं हैं। अभी भी कई गांव ऐसे हैं जहां पर सड़क और बिजली तक नहीं है।
शिक्षा का विकास बड़े पैमाने पर हुआ लेकिन सिर्फ शहर में ही शिक्षा की दशा सुधर पायी गाँव आज भी शिक्षा के अभाव में पलायन ले लिए मजबूर है। राज्य की प्रति व्यक्ति आय में जरूर 10 गुना तक बढ़ोतरी हुई लेकिन सरकार की और से रोजगार के लिए कोई ख़ास कदम नहीं उठाये गए। जिसके चलते युवाओं को पलायन के लिए मजबूर होना पढ़ा।
जरूर राज्य के युवाओं ने देश में विभिन्न क्षेत्रों में उच्च पदों पर कार्य कर उत्तराखंड का गौरव बढ़ाया, खेल, विज्ञान और सेवा क्षेत्र में उत्तराखंड का खूब बोलबाला रहा। मूलभूत सुवधाओं के आभाव में सक्षम युवाओं ने जैसे कैसे अपने आप को ओरों के साथ खड़ा किया आज उत्तराखंड की किसी पहचान का मोहताज नहीं है।
राज्य में पर्यटन को लेकर रोजगार की अपार संभावनाएं हैं बशर्तें सरकार इस पर पूरा जोर लगाकर इमानदारी से अपना काम करे। अब उम्मीद करते हैं कि अपनी युवा अवस्था में प्रवेश कर रहा ये प्रदेश भविष्य में उन सपनों को हकीकत कर पाए जिसका सपना इस प्रदेश के आंदोलनकारियों ने अपनी आखों में बसाकर शहादत को चूंमा था।
तमाम दुश्वारियां झेल चुके प्रदेश को इस बार देश की डबल इंजन नरेन्द्र-त्रिवेन्द्र की सरकार पर बहुत भरोषा है, देखना होगा कि अगले कुछ साल उत्तराखंड के लिए कितने फायदेमंद होते हैं?
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