देहरादून: राज्य के तीन जिलों, टिहरी, बागेश्वर और चमोली के डॉक्टर टीबी के मरीजों के इलाज की रिपोर्ट अपडेट नहीं कर रहे हैं। यह बात राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के मिशन निदेशक जुगल किशोर पंत ने एक टीबी समीक्षा बैठक के दौरान कही। पंत ने चेतावनी दी कि यदि वे टीबी रोगियों के डेटाबेस को ठीक से बनाए रखने में विफल रहते हैं तो अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
उन्होंने कहा कि इन तीनों जिलों टिहरी, चमोली और बागेश्वर में, टीबी के मामलों में केवल 23, 28 और 35 प्रतिशत अपडेट क्रमशः सरकार को सूचित किए जा रहे हैं। ऐसे में भारत से इस बीमारी को मिटाने के लिए केंद्र द्वारा दी गई 2025 की समय सीमा में उत्तराखंड की संभावना कम हो जाएगी।
उन्होंने कहा कि कोई भी अस्पताल जो टीबी के रोगी के बारे में सूचित नहीं करता है, तो उसके डॉक्टर को दो साल सजा का प्रावधान है, टीबी मरीज को बिना उपचार अथवा अपूर्ण उपचार के साथ छोडऩा एक प्रकार का सामाजिक अपराध है। समस्त क्षय रोग अधिकारियों को निर्देश दिए कि निजी चिकित्सकों एवं प्राईवेट अस्पतालों के स्तर पर उपचार ले रहे टीबी मरीज का नोटिफिकेशन और ब्योरा सरकारी आंकड़ों में दर्ज कराएं ।
यह अजीब है कि भले ही निजी डॉक्टरों को टीबी के मामलों की रिपोर्ट करने के लिए सरकार द्वारा 10,000 रुपये का भुगतान किया जाता है, लेकिन वे प्रक्रिया में ठीक से भाग नहीं ले रहे हैं। अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी टीबी रोगियों का पता लगाया जाए, रिपोर्ट किया जाए और उनका इलाज किया जाए।
आपको बता दें कि टीबी के मामलों की रिपोर्टिंग और इलाज में उत्तराखंड भारत में 12 वें स्थान पर है। वर्तमान में, राज्य में 38,867 टीबी रोगी पंजीकृत हैं, जिनमें से 35,873 का उपचार योजना के तहत किया जा रहा है। रोगी को सरकार की और से पूर्ण उपचार तक 500 रूपये प्रतिमाह प्रोत्साहन राशि दी जाती है।
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