क्या आप जानते हैं कि माँ नन्दा देवी राजराजेश्वरी का मायका एक ऐसा गाँव है उत्तराखण्ड के चमोली जिले के घाट क्षेत्र मे ये कुरूड़ गाँव है इसी कुरुड़ गाँव से माँ नन्दा की यात्रा शुरू होती है। जिसे स्थानीय भाषा मे नन्दा देवी राजजात कहते है।
जहां पत्थरों का एक जंगल है। चारों ओर पत्थर ही पत्थर। पत्थर भी छोटे मोटे नही बड़े बड़े पत्थर विशालकाय हाथी जितने या उससे भी बड़े बड़े पत्थरों का जखीरा।
एक और दिलचस्प बात कि इन पत्थरों का रंग काला है एक इतिहास को बयान करते ये पत्थर अपने आप में एक ऐतिहासिक धरोहर है।
इन पत्थरोँ के इतिहास के बारे मे बुजुर्ग कहते हैं कि द्वापर युग मे एक राक्षस अपना साम्राज्य फैलाते फैलाते दशौली के इस गाँव में आ धमका लेकिन यहाँ माँ ऩन्दा भगवती का थान स्थान होने के कारण वह राक्षस माँ नन्दा के साथ युद्ध करने लगा ।शस्त्रों से पराजित करके माँ ने राक्षस को सम्मुख बिन्सर की पहाड़ी मेँ फेँक दिया लेकिन वो चुप ना बैठा उसने बिन्सर की पहाड़ी का आधा पहाड़ माँ के थान स्थान भद्रेश्वर पर्वत पर दे मारा जहां माँ नन्दा देवी विराजमान थी लेकिन माँ भगवती के शरीर से टकराते ही ये पत्थर हजारो टुकड़ों मे इस स्थाने के चारों ओर कुछ स्थानों पर पड़ गये।
तब माँ ने त्रिशूल के एक वार से उस राक्षस का अन्त कर दिया लेकिन ये विशालकाय पत्थर यही पड़े रहे तथा इन टुकड़ों का आकार विशालकाय जानवरों जैसा है। बाद मे माँ नन्दा देवी इन पत्थरों मे शिला रूप मे बस गई।
अब धीरे धीरे स्थानीय लोग इन पत्थरोँ को तोड़कर अपने घर बना रहे हैं लगता है कि जैसे रूपकुण्ड का इतिहास मिट रहा है वैसे ही इस गाँव (कुरुड़) का इतिहास भी मिट जाएगा। फिलहाल लोगों को इस बारे जागरूक किया है ओर इस क्षेत्र को पर्यटन के लिए आगे बढ़ाया जा रहा है अगर आप भी इस इतिहास का मुआयना कर ना चाहते हैं तो नन्दादेवी राजजात में आप यहां जा सकते हैं। ')}