फूलों की घाटी में दुनियाभर में पाए जाने वाले फूलों की 500 से अधिक प्रजातियां मौजूद हैं। हर साल देश विदेश से बड़ी संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं। यह शोधकर्ताओं के आकर्षण का केंद्र है। उत्तराखंड के चमोली जिले में पवित्र हेमकुंड साहब मार्ग पर स्थित फूलों की घाटी को उसकी प्राकृतिक खूबसूरती और जैविक विविधता के कारण 2005 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया।
87.5 वर्ग किमी में फैली फूलों की घाटी न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। महाभारत काल में भी इसका जिक्र आया है महाभारत काल के वन पर्व में इस घाटी को नंदन कानन अथवा स्वर्ग में इंद्र का उपवन कहा गया है।
पर्वतारोही फ्रेक स्माइथ की खोज गढ़वाल के ब्रिटिशकालीन कमिश्नर एटकिंसन ने अपनी किताब हिमालयन गजेटियर में 1931 में इसको नैसर्गिक फूलों की घाटी बताया। वनस्पति शास्त्री फ्रेक सिडनी स्माइथ जब कामेट पर्वत से वापस लौट रहे थे तो फूलों से खिली इस सुरम्य घाटी को देख मंत्रमुग्ध हो गए। 1937 में फ्रेक एडिनेबरा बाटनिकल गार्डन की ओर से फिर इस घाटी में आए और तीन माह तक यहां रहे।
500 से अधिक प्रजाति के फूल-
फूलों की घाटी में 500 से अधिक प्रजाति के फूल अलग-अलग समय पर खिलते हैं। यहां पर उगने वाले फूलों में पोटोटिला, प्राइमिला, एनिमोन, एरिसीमा, एमोनाइटम, ब्लू पॉपी, मार्स मेरी गोल्ड, ब्रह्म कमल, फैन कमल जैसे कई फूल खिले रहते हैं।
कैसे पहुंचे फूलों की घाटी-
फूलों की घाटी पहुंचने के लिए सड़क मार्ग से उत्तराखंड के चमोली जिले में गोविंदघाट तक पहुंचा जा सकता है। यहां से 14 किमी. की दूरी पर घांघरिया है। जिसकी ऊंचाई 3050 मीटर है। यहां लक्ष्मण गंगा पुलिया से बायीं तरफ तीन किमी की दूरी पर फूलों की घाटी है। आपको बता दें कि हेमकुंड साहिब साहिब जाने और फूलों की घाटी का आनंद एक साथ लिया जा सकता है
कब आएं फूलों की घाटी-
फूलों की घाटी एक जून से 31 अक्तूबर तक खुली रहती है। मगर यहां पर जुलाई प्रथम सप्ताह से अक्तूबर तृतीय सप्ताह तक कई फूल खिले रहते हैं। यह तितलियों का भी संसार है। इस घाटी में कस्तूरी मृग, मोनाल, हिमालय का काला भालू, गुलदार, हिमतेंदुआ भी दिखता है।
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