चमोली का नन्दा देवी सिद्धपीठ कुरुड़ एक मन्दिर है, जो भगवती नंदा को समर्पित है। यह भारत के उत्तराखंड राज्य के तटवर्ती शहर चमोली जनपद के नन्दानगर में स्थित है। नंदा शब्द का अर्थ जगत जननी भगवती होता है। इनकी नगरी ही नंदा धाम कहलाती है। इस मन्दिर को नंदा का मायका मां नंदा भगवती का मूल स्थान यहां माना जाता है। इस मन्दिर की कैलाश यात्रा नंदा देवी राजजात उत्सव प्रसिद्ध है।
इसमें मन्दिर से नंदा देवी की दोनों डोलिया नंदा देवी डोली, उनके छोटे भाई लाटू देवता और भूम्याल भूमि के क्षेत्रपाल, दो अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथों में विराजमान होकर अपने मायके से ससुराल की यात्रा को निकलते हैं। श्री नंदा देवी राज राजेश्वरी कई नामों से पूरे ब्रह्मांड में पूजी जाती है ।
नंदा देवी राज राजेश्वरी, किरात, नाग, कत्यूरी आदि जातियों के मुख्य देवी थी। इसके साथ ही यह उत्सव उत्तराखंड के कई नंदा देवी मन्दिरों में मनाया जाता है, एवं यात्रा निकाली जाती है। यह मंदिर पहाड़ी परंपराओं से जुड़ा हुआ है। इस मंदिर के मुख्य पुजारी गौड़ ब्राह्मण हैं। वर्तमान में यहां पर दशोली क्षेत्र की नंदा की डोली, तथा बधाण क्षेत्र की नंदा की डोली यहां पर रहती हैं।
दशोली (नंदानगर, कर्णप्रयाग, चमोली ब्लॉक) की नंदा की डोली साल भर यहां विराजमान रहती तथा बधाण की नंदा की डोली भाद्रपद में नंदा देवी जात के बाद थराली में स्थित देवराड़ा मंदिर में स्थापित हो जाती है तथा मकर संक्रान्ति में कुरुड मंदिर में पुनः आती है।
मंदिर का वृहत क्षेत्र 900 स्क्वायर फीट में फैला है और चहारदीवारी से घिरा है। पहाड़ी शैली के मंदिर स्थापत्यकला और शिल्प के आश्चर्यजनक प्रयोग से परिपूर्ण, यह मंदिर, भारत के भव्यतम मंदिरों में से एक है। कुरुड से वेदनी तक प्रतिवर्ष मां श्रीनंदा की लोकजात होती है। जबकि बारह वर्ष या उसके अधिक समय में होने वाली राजजात में मां श्रीनंदा की डोली कुरुड से होमकुंड पहुंचती है।
श्रीनंदा को गढ़वाल रायफल की ईष्ट देवी भी माना जाता है। वर्ष 1768 में गढ़वाल रायफल की ओर से एक घंटा देवी मंदिर में चढ़ाया गया था, जो आज भी मंदिर में विद्यमान है।