देहरादून: श्याम बेनेगल को याद करते हुए दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से आज सायं 4:00 बजे उन पर केंद्रित वृतचित्रों व उनसे कार्यों के पुर्नमूल्याकंन पर एक कार्यक्रम आयोजित किया. इस आयोजन में उनके वृतचित्र फिल्मों, प्रमुख परियोजनाओं और कार्यों के निजी पुर्नमूल्यांकन पर छोटी -छोटी फ़िल्में प्रदर्शित की गयीं.
कार्यक्रम में इरम गुफरान द्वारा पीएसबीटी के साथ बनाई गई एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म शामिल थी और दो साक्षात्कार जिसमें श्याम बेनेगल अपने दो महत्वपूर्ण कार्यों – भूमिका, एक प्रारंभिक फिल्म, और भारत एक खोज, दूरदर्शन के लिए बनाया गया एक महाकाव्य धारावाहिक के संदर्भ में अपनी प्रेरणाओं और कार्य प्रक्रियाओं को समझाते हैं।
अंत में भारतीय शास्त्रीय संगीत के गुरु मल्लिकार्जुन मंसूर और राजशेखर मंसूर पर आधारित एक संगीतमय लघु फिल्म दिखाई गयी।
इरम गुफरान की कृति श्याम बेनेगल की फिल्मों पर आधारित एक डॉक्यूमेंट्री है, जो उनके काम के माध्यम से भारत में नए सिनेमा आंदोलन के समय, लोकाचार और चिंताओं की पड़ताल करती है। यह महान फिल्म निर्माता के दिमाग में झांकने और सिनेमा बनाने के लिए उनकी प्रेरणाओं और आवेगों को समझने का एक प्रयास है।
यह संगीतमय फिल्म मल्लिकार्जुन मंसूर और राजशेखर मंसूर को श्रद्धांजलि स्वरूप है। यह कलात्मक उपलब्धियों की महान ऊंचाइयों पर पहुंचने के बाद भी अपनी विनम्र नीरस मिट्टी से जुड़े रहने की अद्वितीय भारतीय क्षमता को प्रदर्शित करती है।
मूलतः यह एक बोधिसत्व भावना से प्रेरित फिल्म है।
उल्लेखनीय है कि श्याम बेनेगल (14 दिसम्बर 1934 – 23 दिसम्बर 2024) एक भारतीय फिल्म निर्देशक, पटकथा लेखक और वृत्तचित्र फिल्म निर्माता थे। उन्हें अक्सर समानांतर सिनेमा के अग्रदूत के रूप में जाना जाता है, उन्हें व्यापक रूप से 1970 के दशक के बाद के सबसे महान फिल्म निर्माताओं में से एक माना जाता है। उन्हें अठारह राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, एक फिल्मफेयर पुरस्कार और एक नंदी पुरस्कार सहित कई पुरस्कार मिले हैं। 2005 में, उन्हें सिनेमा के क्षेत्र में भारत के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 1976 में, उन्हें भारत सरकार द्वारा देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म श्री से सम्मानित किया गया था, और 1991 में, कला के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
23 दिसंबर 2024 को 90 वर्ष की आयु में मुंबई के वॉकहार्ट अस्पताल में उनका निधन हो गया। उन्होंने 1962 में गुजराती में अपनी पहली डॉक्यूमेंट्री फिल्म घेर बैठा गंगा (गंगा के दरवाजे पर) बनाई। बेनेगल की पहली चार फीचर फिल्में – अंकुर (1973), निशांत (1975), मंथन (1976) और भूमिका (1977) – ने उन्हें उस दौर की नई लहर फिल्म आंदोलन का अग्रणी बना दिया। बेनेगल की “मुस्लिम महिला त्रयी” फिल्में मम्मो (1994), सरदारी बेगम (1996), और जुबैदा (2001) सभी ने हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता। बेनेगल ने सात बार हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता है। उन्हें 2018 में वी. शांताराम लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम के आरम्भ में केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने अतिथियों व उपस्थित लोगों का स्वागत किया. संचालन कार्यक्रम सलाहकार श्री निकोलस ने किया.
इस अवसर पर, विभापुरी दास,नवल शर्मा, मालविका चौहान, बिजू नेगी,अश्वविनी त्यागी, के बी नैथानी, दयानन्द अरोड़ा,आलोक सरीन,ए पी सिंहसुंदर सिंह बिष्ट, कल्याण बुटोला,उषा नौडियाल,श्रीमती एन रवि शंकर, वर्षा नेगी, एम एस रावत, अरुण असफल और डॉ. लालता प्रसाद सहित लेखक, पत्रकार, साहित्यकार व युवा पाठक उपस्थित रहे ।