उत्तराखंड को देवभूमि ऐसे ही नहीं माना जाता है। देवभूमि देवी-देवताओं की निवास स्थली रही है। इसका प्रमाण देने की आवश्यकता ही नहीं है देवगण दुनिया के सामने उनके होने के सपूत इस मिटटी में छोड़ गए हैं।
देवी सीता का जन्म जिस प्रकार रहस्य माना जाता है उसी प्रकार यह भी रहस्य है कि देवी सीता का अंतिम समय कैसा और कहां बीता। ऐसी मान्यता है कि जब राम ने धोबी के कहने पर सीता को वनवास दे दिया और लक्ष्मण से सीता को उत्तराखंड की देवभूमि में छोड़कर आने के लिए कहा था।
राम की आज्ञा का पालन करते हुए लक्ष्मण जी ने सीता को देव प्रयाग से चार किलोमीटर आगे छोड़ा था। रामायण में लंका विजय उपरांत भगवान राम के वापस लौटने पर जब एक धोबी ने माता सीता की पवित्रता पर संदेह किया, तो उन्होंने सीताजी का त्याग करने का मन बनाया और लक्ष्मण जी को सीताजी को वन में छोड़ आने को कहा।
तब लक्ष्मण जी सीता जी को उत्तराखण्ड देवभूमि के ऋर्षिकेश से आगे तपोवन में छोड़कर चले गये। जिस स्थान पर लक्ष्मण जी ने सीता को विदा किया था वह स्थान देव प्रयाग के निकट ही 4 किलोमीटर आगे पुराने बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित है।
तब से इस गांव का नाम सीता विदा पड़ गया और निकट ही सीताजी ने अपने आवास हेतु कुटिया बनायी थी, जिसे अब सीता कुटी या सीता सैंण भी कहा जाता है। यहां के लोग कालान्तर में इस स्थान को छोड़कर यहां से काफी ऊपर जाकर बस गये और यहां के बावुलकर लोग सीता जी की मूर्ति को अपने गांव मुछियाली ले गये।
वहां पर सीता जी का मंदिर बनाकर आज भी पूजा पाठ होता है। बाद में सीता जी यहा से बाल्मीकि ऋर्षि के आश्रम आधुनिक कोट महादेव चली गईं। त्रेता युग में रावण भ्राताओं का वध करने के पश्चात कुछ वर्ष अयोध्या में राज्य करके राम ब्रह्म हत्या के दोष निवारणार्थ सीता जी, लक्ष्मण जी सहित देवप्रयाग में अलकनन्दा भागीरथी के संगम पर तपस्या करने आये थे।
इसका उल्लेख केदारखण्ड में आता है। उसके अनुसार जहां गंगा जी का अलकनन्दा से संगम हुआ है और सीता-लक्ष्मण सहित श्री रामचन्द्र जी निवास करते हैं। देवप्रयाग के उस तीर्थ के समान न तो कोई तीर्थ हुआ और न होगा।
इसमें दशरथात्मज रामचन्द्र जी का लक्ष्मण सहित देवप्रयाग आने का उल्लेख भी मिलता है तथा रामचन्द्र जी क देवप्रयाग आने और विश्वेश्वर लिंग की स्थापना करने का उल्लेख है देवप्रयाग से आगे श्रीनगर में रामचन्द्र जी द्वारा प्रतिदिन सहस्त्र कमल पुष्पों से कमलेश्वर महादेव जी की पूजा करने का वर्णन आता है।
रामायण में सीता जी के दूसरे वनवास के समय में रामचन्द्र जी के आदेशानुसार लक्ष्मण द्वारा सीता जी को ऋषियों के तपोवन में छोड़ आने का वर्णन मिलता है। गढ़वाल में आज भी दो स्थानों का नाम तपोवन है एक जोशीमठ से सात मील उत्तर में नीति मार्ग पर तथा दूसरा ऋषिकेश के निकट तपोवन है।
केदारखण्ड में रामचन्द्र जी का सीता और लक्ष्मण जी सहित देवप्रयाग पधारने का वर्णन मिलता है। इस प्रकार से उत्तराखंड देवो की भूमि माता सीता के अंतिम दिनों के बीते जाने का प्रमाण स्पष्ट रूप से मिलता है। ')}