बैसाखी के दिन और शनिवार दोपहर करीब ढाई बजे 10 से अधिक ढोल-दमाऊं की जोड़ियों की थाप और रणसिंह की गर्जना के बीच जाख देवता ने अग्निकुंड में नृत्य कर उसके कई चक्कर लगाए। यह दृश्य देखने के लिए सुबह से भी मंदिर में एकत्रित हुई थी मंदिर परिसर में बीते तीन दिन से आयोजन की तैयारियां शुरू हो गई थी। कोठेड़ा के पुजारियों, देवशाल के वेदपाठियों और नारायणकोटि के सेवक- श्रद्धालुओं द्वारा जाख मंदिर परिसर में अग्निकुंड की रचना की थी
गुप्तकाशी (रुद्रप्रयाग), देवशाल गांव में स्थित है प्रसिद्ध भगवान का मंदिर-
जाख देवता का मंदिर गुप्तकाशी क्षेत्र के देवशाल गॉव मैं स्थित है जाख देवता यक्ष व कुबेर के रुप में भी माने जाते है! जाख मंदिर में बैशाखी पर्व पर विशेष रूप से आस्थावान लोगों के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। जाखमेला धार्मिक भावनाओं एवं सांस्कृतिक परम्पराओं से जुड़ा हुआ है। इस मेले में भगवान जाखराजा के पश्वा दहकते अंगारों के बीच नृत्य कर श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देते हैं, मेले का यह दृश्य आस्थावान लोगों को अपने ओर आकर्षित करता है। दूर दराज से बड़ी संख्या में भक्त इस अवसर पर दर्शन हेतु पहुंचते हैं।
ऊखीमठ के विभिन्न गांवों के साथ ही बड़ी संख्या में लोगों की आस्था जाख मेले से जुड़ी हुई है। यह मेला प्रतिवर्ष बैशाखी के दिन ही लगता है। चौदह गांवों के मध्य स्थापित जाखराजा मंदिर में प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष वर्ष भी देवशाल व कोठेडा के ग्रामीणों के आपसी सहयोग से मेले की तैयारियां की थी मेला शुरू होने से दो दिन पूर्व से भक्तजन बड़ी संख्या में पौराणिक परंपरानुसार नंगे पांव, सिर में टोपी और कमर में कपड़ा बांधकर लकडियां, पूजा व खाद्य सामग्री एकत्रित करते हैं तथा भव्य अग्निकुंड तैयार किया जाता है। इस अग्निकुंड के लिए हर वर्ष अस्सी कुंतल से अधिक कोयला एकत्रित किया जाता है।
जाख देवता क्यों करते हैं अग्निकुंड मैं नृत्य –
जाख, यक्ष का दूसरा रूप है। वनवास में रह रहे पांडव जब एक पोखर में प्यास बुझाने पहुँचे तो पोखर के रखवाले यक्ष के सवालों का जवाब न देने के कारण मर गये। अन्ततः युधिष्ठिर ने सभी प्रश्नों का उत्तर देकर अपने भाइयों के प्राण बचाये। किंवदन्ती है कि वह जलाशय यही है। अब उस जलाशय में पेड़ों के टुकड़े काटकर धधकती अग्नि में जाख देवता लाल-लाल अंगारों पर नाचता है। माना जाता है कि उस पल देवता को कोयलों की जगह पानी ही नजर आता है।
आश्चर्य वाली बात यह है कि नर देवता लगभग 3 मिनट तक इस अग्निकुण्ड में नाचता है, परन्तु उसके नंगे पैरों पर लेशमात्र भी प्रभाव नहीं पड़ता। लोग आँखें फाड़कर इस दृश्य को देखते हैं। इस दिन हजारों की संख्या में स्थानीय लोगों के साथ देश-विदेश के पर्यटक भी उपस्थित रहते हैं। अग्निकुण्ड की राख लोग अपने घर ले जाते हैं। मान्यता है कि यह भभूत हर मर्ज की दवा है। यह रहस्य अभी भी वैज्ञानिकों के लिये खोज का विषय है। ')}