दिल्ली हाई कोर्ट ने सेना में भर्ती के लिए लाई गई अग्निपथ योजना को चुनौती देने वाली सभी याचिकाएँ खारिज कर दीं। कोर्ट ने कहा है कि अग्निपथ योजना सेना को बेहतर करने और देश में लाई गई योजना है। इसलिए सरकार के इस फैसले पर हस्ताक्षेप करने की कोई वजह नहीं दिखाई देती।
खारिज की गई इन याचिकाओं में से 5 में अग्निपथ योजना को चुनौती दी गई थी। वहीं 18 याचिकाओं में पिछली भर्ती योजना के अनुसार नियुक्ति करने की माँग की गई थी। अदालत ने सभी 23 याचिकाओं को खारिज करते हुए अपने फैसले में कहा है, “इस अदालत को अग्निपथ योजना में हस्तक्षेप करने की कोई वजह नहीं मिली। सभी याचिकाएँ खारिज की जाती हैं। हम इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि यह योजना देश के हित में शुरू की गई थी।” अग्निपथ योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं के अलावा अदालत ने सशस्त्र बलों में भर्ती से संबंधित कुछ विज्ञापनों के खिलाफ दायर याचिकाओं को भी खारिज कर दिया और स्पष्ट किया कि ऐसे उम्मीदवारों को भर्ती का अधिकार नहीं है। पीठ ने पिछले साल 15 दिसंबर को याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश हुईं अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी और केंद्र सरकार के स्थायी वकील हरीश वैद्यनाथन ने कहा कि अग्निपथ योजना सशस्त्र बल के लिए भर्ती में सबसे बड़े नीतिगत बदलावों में से एक है और यह एक आदर्श बदलाव लाएगी। भाटी ने कहा, ’10 लाख से अधिक उम्मीदवारों ने हमारे द्वारा दी गई दो साल की आयु सीमा छूट का लाभ उठाया है… बहुत सी बातें हम हलफनामे में नहीं कह सकते हैं, लेकिन हमने प्रामाणिक तरीके से काम किया है।’ उच्च न्यायालय ने केंद्र से भारतीय सेना में ‘अग्निवीर’ और समान पद पर काबिज नियमित सिपाहियों के अलग-अलग वेतनमानों पर स्पष्टीकरण देने को भी कहा।