देहरादून : ‘पहाड़ के उस पार’ और ‘बरखा रानी’ के पुस्तक लोकार्पण के अवसर पर अध्यक्षता पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी समीक्षक एवं साहित्यकार डॉ० नन्दकिशोर हटवाल कान्ता घिल्डियाल. विक्रम चौहान , मधुबाला ‘ प्रताप सिंह ‘ कलम सिंह चौहान विकास नगर विधायक मुन्ना चौहान संयुक्त निदेशक सूचना विभाग पौध पुष्प मनमोहन सिंह चौहान कान्ता छिलिड्याल लेखिका सुनीता चौहान सरस्वती वंदना श्रावणी सुनीता जी का परिचय पुस्तक के लोकार्पण पर एसोसिएट प्रो० मधु थपलियाल जी ने पाठकीय टिप्पणी देते हुए कहा कि पुस्तक के प्रति आकर्षण तभी बढ़ता है जब वह चित्र खींच पाने में मदद करती है।
लेखिका एवं कवयित्री सुनीता सौम्य और सादगी से भरी हैं । यह उनकी रचनाओं में भी आता है। यदि संवेदनशीलता है तभी लेखक की रचनाएँ पाठकों को भाएगी। मधु थपलियाल जी ने बरखा रानी की कहानियों पर भी चर्चा की। साहित्यकार कान्ता घिल्डियाल जी ने सुनीता जी कृत कविता का पाठ किया। एक दिन फिर लौटेगा दादी-नानी के किस्से कहानियों का घोड़ा का वाचन श्रोताओं को खूब पसंद आया। संगीता-माँ का बांटा कविता का वाचन किया ।
नंदकिशोर हटवाल जी ने कहा कि पहाड़ के उस पार उपन्यास स्त्री के संघर्ष को दिखाता है। वे शोर और विस्फोट से परे चुपचाप लिखने वाली लेखिका हैं। वृन्दा अपने मौसा के साथ रहती है। उपन्यास में हमारा आज दिखाई देता है। वृन्दा की मौसी और मौसा का किरदार भी पहाड़ी परिवेश का है। मौसा दयाल सिंह वृन्दा की शादी कराना चाहते हैं । उपन्यास में शराब का प्रचलन पहाड़ की जटिलताएं रेखांकित हैं ।
वृन्दा की पीड़ा उपन्यास में बड़ी मार्मिकता से आया है। डॉ० हटवाल ने कहा कि वृन्दा कई दिक्कतों के बाद टूटती नहीं। उपन्यास में किसी चमत्कार और विस्फोट जैसा कुछ नहीं होता। वृन्दा शादी के बाद भी पढ़ाई करती है। पढ़ाई पहाड़ का हथियार है । ससुराल सहयोगी दिखाई देता है। इस उपन्यास में शिक्षा की महत्ता बड़ी शिद्दत के साथ आया है। लेखिका की तरह उपन्यास के पात्र भी सादगी से भरे हैं । लेकिन पात्र मजबूती से सकारात्मकता की ओर बढ़ते हैं । वृन्दा के बहाने समाज का चित्रण सामने आया है। उपन्यास में सम्पूर्ण जीवन उस इलाके का सन्तुलन के साथ आया है।
लेखिका ने पहाड़ , प्रकृति और पात्र वर्णन का बहुत विस्तार नहीं दिया है। लेखिका ने उपन्यास के बहाने देशकाल और वातावरण का सुन्दर और संक्षिप्त चर्चा की है। नपा – तुला विवरण रोचक है। शिल्प का चमत्कार भी कई बार बोर करता है। लेकिन यह उपन्यास पठनीयता को बनाए रखता है। आम पाठक के लिए भी यह सरल है। श्री हटवाल जी ने सुझाव दिया कि जौनसार के प्रचलित शब्द , कहावत पर जोर दिया जाना चाहिए ।
डॉo हटवाल ने ‘ बरखा रानी’ पुस्तक पर बोलते हुए कहा कि बाल लेखन चुनौतीपूर्ण होता है।
सरल लिखना सरल नहीं होता । बाल साहित्य सिद्धि जैसा काम है। आधुनिक समाज का वर्णन भी लेखिका ने संवेदनशीलता के साथ किया है। इस संग्रह में बाइस कहानियाँ हैं । कहानियों में विविधता है। प्रेरित करती हैं । हमने अपने परिवेश का बाल साहित्य बचपन में नहीं पढ़ा । हमें अपने अंचल की खूबसूरती को कहानियों में लाना चाहिए | अपना अनुभव संसार भी साहित्य में शामिल किया जाना चाहिए ।
विमला जी ने बँटवारा कविता पढ़ी । पहाड़ के उस पार और बरखा रानी की लेखिका सुनीता चौहान जी ने कहा कि
लेखिका जब लिखती हैं तो अपने संघर्ष लिखती हैं । वे किसी के खिलाफ नहीं लिखती हैं । वह अपने जैसों के लिए भी लिखती हैं । हम नकारात्मकता से जूझते हैं लेकिन नकारात्मकता नहीं फैलाते । उन्होंने कहा कि वरिष्ठ रचनाकारों के परामर्श से नवोदित आगे बढ़ते हैं । बच्चों को समझना भी अपने आप में चुनौतीपूर्ण है। मैं बच्चों से जुड़ा रहना चाहती हूँ । एक सुकून मिलता है। बच्चों को बहुत सारी स्थितियाँ – परिस्थितियाँ प्रभावित करती हैं । ऐसे में उन्हें साहित्य आनंदित करता है। आज का परिवेश भी बच्चों को तनाव देता है।
बच्चों को नकारात्मक माहौल कौन दे रहा है ? सुनीता जी ने कहा कि हमें बच्चों को उनके बाल मनोविज्ञान को समझना होगा । बच्चों की पीड़ाएँ हैं । वह साहित्य में आए । बच्चों पर लिखना और बच्चों के लिए लिखना दोनों अलग बातें हैं । बच्चों को प्यार और संग की आवश्यकता है। उन्होंने सबका आभार प्रकट किया ।
विकासनगर के विधायक माननीय मुन्ना चौहान जी ने कहा कि बच्चे के चेहरे में यदि मुस्कराहट ले आए तो समझिए आपने ईश्वर का साक्षात् कर लिया ।
उन्होंने बतौर मुख्य अतिथि कहा कि बच्चों के साथ धैर्य , समर्पण और सकारात्मकता की आवश्यकता है। आज समाज को मशीन बना दिया गया है। उन्होंने फिनलैण्ड का उदाहरण देते हुए कहा कि वे बच्चों को पूरा बालपन जीने का अवसर तो दें ।
हमारे पुरखे पर्यावरण और विज्ञान को लोक से जोड़ते थे । हमारी परम्पराएँ , संस्कृति और लोक व्यवहार भी साहित्य का हिस्सा होना चाहिए । उन्होंने कहा कि प्रकृति , विज्ञान और विकास का तालमेल भी ज़रूरी है। किताबें सुकून देती हैं । डिजीटल तकनीक नींद उड़ा देती हैं । स्टीरियो टाइप लाइफ से मुक्त हमें साहित्य करता है। इंसानियत का कोई विकल्प नहीं है । कोरोना ने बता दिया । दया , करुणा का महत्व हमेशा रहेगा ।
लीलाधर जगूडी जी ने कहा कि होने के बाद जो होता है वही अनुभव है। पाठक ही कल के लेखक हैं । साहित्य की जिम्मेदारी है मनुष्य को बेहतर बनाना है। साहित्य भी मनुष्य के हित में ले जा सकता है । साहित्य में बहुत ऐसा होता है जो यथार्थ मे नहीं होता । बहुत यथार्थ में है लेकिन साहित्य में नहीं शामिल होता । साहित्य हमेशा अपना काम करता है। फेसबुक ठेसबुक है। हम वहाँ सब कुछ हैं। सर्वेसर्वा है।
अशुद्धियाँ से अधिक विचार हैं । विचार साहित्य में अपना काम करता है । हर लेखक को अपने बचपन का एक टुकड़ा अपनी जेब में रखना चाहिए । आप बचपन को दोहरा नहीं सकते । आप बुढ़ापे में अपने बचपन को याद कर सकते । किसी ने कहा भी है कि एक जीवन जीने के लिए काफी नहीं है। उन्होंने कहा कि आज स्वागत दिवस है । मूल्यांकन का नहीं । लोकार्पण तो स्वागत का समय है।
पाठक रचनाओं को पढ़कर मूल्यांकन कर लेंगे । उन्होंने फ्रेंच भाषा का उदाहरण दिया । उन्होंने कहा कि अंग्रेज़ी और फ्रैंच का समृद्ध परिवेश एक दिन में नहीं हुआ । भाषाएँ दूसरी भाषाओं से भी समृद्ध होती हैं । हमें भाषा को समृद्ध करना चाहिए । नए शब्दों को शामिल करना चाहिए । एक बड़ा लेखक वही है जो अन्तिम समय तक स्वयं को शुरुआती लेखक समझता रहे ।