हमारे उत्तराखंड मे ऐसे कई फूल ओर पौधे मौजूद हैं, जिसकी खूबसूरती ओर गुण हर मायने मे बेमिसाल है, ओर इन्हीं मे से कुछ तो देवीय शक्तियों वाले माने जाते हैं। कमल का फूल हम जानते हैं जो कि कीचड़ मे खिलता है लेकिन हमारी ही धरती के दुर्गम इलाकों मे ऐसा कमल भी पाया जाता है, जो बर्फ की पहाडियों पर खिलता है जिसका नाम ब्रह्मकमल है बह्माकमल का वानस्पतिक नाम ससोरिया ओबिलाटा है।
ये एक ऐसा कमल है जो कि आलोकिक शक्तियों से परिपूर्ण है। यह अत्यन्त सुन्दर चमकते सितारे जैसा आकार लिऐ मादक सुगन्ध वाला कमल है। इस कमल को हिमालय फूलों का सम्राट कहा जाता है।
इस कमल की विशेषता यह है कि इसके खुलने पर इसमे ब्रह्मादेव ओर त्रिसूल की आकृति बनती है। बह्माकमल देवताओं का प्रिय पुष्प होता है। इसमे जादुई प्रभाव भी पाया जाता है इसका खिलना देर रात शुरू होता है ओर मध्यरात्री तक इसका खिलना बन्द हो जाता है,सुबह तक यह मुरझा जाता है।
यह पुष्प साल भर में एक ही बार खिलता है और एक पौधे पर एक ही पुष्प खिलता है। इस फूल को जो खिलते हुऐ देखता है वो भाग्यशाली होता है। ब्रह्म कमल एक रहस्यपूर्ण कमल है ,जो हिमालय में 11 हजार से 17 हजार फुट की ऊंचाइयों पर पाया जाता है। इसे सुखाकर कैंसर रोग की दवा के रुप में इस्तेमाल किया जाता है। इससे निकलने वाले पानी को पीने से थकान मिट जाती है।
इस पुष्प के बारे में मान्यता है कि माता पार्वती के अनुरोध पर बह्रमा जी ने बह्रमाकमल का निर्माण किया था भगवान शिव ने जब गणेश जी के कटे हुऐ मस्तक पर एक हाथी का सिर रखा तब उन्होने बह्रमाकमल के जल से उनके मस्तक पर पानी छिड़क दिया था और गणेश जी को नया जीवन मिला था।
इस पुष्प की मादक सुगंध का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है जिसने द्रौपदी को इसे पाने के लिए व्याकुल कर दिया था। जिसके बाद उन्होंने इस पुष्प को लाने के लिए भीम को भेजा था। द्रोपदी ने जब इस पुष्प को खिलते देखा था तो वह अपने सारे दुःख और थकान भूल गयी थी।
अपनी देवीय गुणों के चलते इस पुष्प को उत्तराखंड का राज्य पुष्प घोषित किया गया यहां ब्रह्मकमल बदरीनाथ, रुद्रनाथ, केदारनाथ, कल्पेश्वर आदि ऊच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है। केदारनाथ और बद्रीनाथ के मंदिरों में ब्रह्म कमल चढ़ाने की परंपरा है। खुद ब्रह्माकमल फूल की भी देवीय शक्तियों के चलते पूजा की जाती है ')}