देहरादून : प्रसिद्ध साहित्यकार जितेन ठाकुर ने कहा है कि, एक लेखक की सबसे बड़ी ताकत उस बात में होती है कि उनकी लेखनी पाठकों के साथ संबद्ध होती है। उन्होंने कहा साहित्य को तीन श्रेणी में वर्गीकृत कर सकते हैं एक साहित्य सरोकार भरा साहित्य, जो समय और समाज की नब्ज पर उंगली रख कर प्रश्न खड़ा करता है जैसे कबीर! दूसरा साहित्य आनंद लोक की स्थापना करता है जैसे अवसाद, कुंठा, दुख दर्द को कम करता है, ऐसे संसार में ले जाता है! तीसरा मनोरंजन भरा साहित्य, जो लोकप्रिय होने के कारण लोगों में पढ़ने की रुचि पैदा करता है। तीनों साहित्य का अपना अपना महत्व है।
राष्ट्रीय स्तर के प्रसिद्ध साहित्यकार ठाकुर आज मंगलवार को द्रोण होटल, देहरादून के एक हॉल में कैप्टन रघुवीर सिंह चौहान के कहानी संग्रह “बँधी हुई आस” के लोकार्पण समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि कैप्टन चौहान ने बहुत ही मार्मिक ढंग से कहानियों का वर्णन किया है और विषयों का सुंदर चयन किया है। उन्होंने कहा कैप्टन चौहान को फौजी की डायरी भी लिखनी चाहिए अपने अनुभव के ऊपर।
प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता पद्मश्री कल्याण सिंह रावत ने कहा है कि साहित्य समय और समाज को बतता है, और यह लिखना जरूरी है। बुग्याल पर उत्तराखंड की आज की पीढ़ी अनजान है। बुग्याल के बारे में केरल वालों से अपेक्षा नहीं रख सकते हैं। इस तरह की बहुत सी चीजों को साहित्य में लिखा जाना चाहिए। साहित्यिक कृतियों से पीढियाँ समय को पता करेंगी!
साहित्यकार शूरवीर रावत ने कहा कि, कैप्टन चौहान का पहला कहानी संग्रह है। उनकी इससे पहले जीवन के विविध आयामों को लेकर संस्मरणों की एक किताब आई थी, ‘जीवन पथ से’। कहानी संग्रह में उनकी कुल तेरह कहानियां हैं। गढ़वाल के सुदूर चमोली जनपद में एक कृषक परिवार में जन्मे कैप्टन चौहान की कहानियों में सेना वाला रोबदार नहीं झलकता है, बल्कि पहाड़ की पीड़ा को अधिक स्थान मिला है। भाषा, शैली और शिल्प की दृष्टि से कहानियों भले ही अधिक प्रभावित नहीं करती हैं, किन्तु प्रेमचंद की कहानियों की भांति पात्रों के चयन और कथानक पर विशेष ध्यान दिया गया है।
कैप्टन चौहान ग्राम मोणा, पट्टी तल्ला दशोली, चमोली गढ़वाल, के निवासी हैं। वह 32 साल सेना में रहे हैं। उनका कहानी संग्रह “बँधी हुई आस” बिनसर प्रकाशन देहरादून ने प्रकाशित किया है। इस अवसर पर लेखक कैप्टन रघुवीर सिंह चौहान, पर्यावरण कार्यकर्ता चंदन सिंह नेगी, वरिष्ठ पत्रकार अर्जुन सिंह बिष्ट, शीशपाल गुसाईं, चंद्रा स्वामी, आरपी नौटियाल, अनेक साहित्यकार और पत्रकार मौजूद थे।