उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सरकार को बड़ा झटका दिया है। हाईकोर्ट ने देहरादून के मास्टर प्लान को निरस्त करते हुए मास्टर प्लान पास करने वाले संबंधित अधिकारियों पर 5 लाख का जुर्माना लगाया है। साथ ही न्यायलय ने देहरादून के चाय बागानों को पूर्व की स्थिति में लाने के आदेश भी दिए।
शुक्रवार को वरिष्ठ न्यायमूर्ति राजीव शर्मा एवं न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। मामले के अनुसार देहरादून निवासी एमसी घिल्डियाल ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसे कोर्ट ने जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था। मामले के अनुसार याचिकाकर्ता ने देहरादून की 2005 से 2025 की महायोजना को चुनौती दी थी। याचिका में कहा था कि महायोजना तैयार करते समय यूपी महायोजना व विकास अधिनियम 1973 के प्रावधानों के साथ केंद्र सरकार की ओर से 1988 और 2001 में जारी अधिसूचना जिसमें दून घाटी को इको सेंसिटिव जोन घोषित किया गया था।
इसके कारण दून घाटी में किसी भी परियोजना को लागू करने से पूर्व केंद्र सरकार की अनुमति लेनी आवश्यक थी। याचिका में कहा गया था कि सरकार ने केंद्र सरकार की अनुमति मिले बिना ही देहरादून महानगर परियोजना लागू कर दी और प्राकृतिक जल की निकासी का कोई मानक नहीं रखा।
याचिका में कहा कि महायोजना में लगभग 124 एकड़ भूमि को खुर्दबुर्द कर दिया गया है। जिसमें विशेषकर टी स्टेट स्थित चाय बागान को जेसीबी मशीन द्वारा अन्यत्र स्थापित कर दिया गया। इस प्रकरण में राज्य सरकार ने अपने जवाब में कहा कि महानगर परियोजना बनाते समय उन्होंने अनुमति लेने के लिए 16 सितंबर 2005 को केंद्र सरकार को पत्र भेजा था, लेकिन केंद्र सरकार ने तीन साल तक अनुमति नहीं दी, जिस कारण वर्ष 2008 व 2013 में सरकार ने माहयोजना लागू कर दी।
पक्षों की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने महायोजना पास करने वाले अधिकारियों पर 5 लाख रूपये का अर्थदण्ड लगाया। कोर्ट ने देहरादून की 2005 से 2025 तक की महायोजना को भी निरस्त कर दिया। वहीं देहरादून के टी स्टेट को पूर्व की तरह बनाने के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने यह भी आदेशित किया है कि मास्टर प्लान बनाते समय सभी स्थानों व नियमों का ध्यान रखा जाय। ')}