उत्तराखंड में डेंगू के कहर से हजारों लोगों की जान खतरे में पड़ गई है। सरकारी आंकड़े तो एक हजार के करीब हैं लेकिन जिस तरह छोटे छोटे अस्पतालों में भी डेंगू के मरीजों की भीड़ लगी है उससे यह स्पष्ट हो गया है कि उत्तराखंड में बताये गए आंकड़ों से कई ज्यादा मरीज हैं।
महंत इंदिरेश अस्पताल में इस साल डेंगू के लगभग 600 मामलों का पता चला है और उनका इलाज किया गया है। कैलाश हॉस्पिटल में 500 बताये जा रहे, मैक्स, सिनर्जी में भारी मात्रा में मरीज हैं, अब जान लीजिए सरकारी अस्पतालों में क्या हाल होगा।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक राज्य में डेंगू के मरीजों की संख्या 1019 तक पहुँच गई है। अकेले देहरादून में करीब 800 से ज्यादा मामले सामने आये हैं। कई पुलिसकर्मी डेंगू के शिकार हैं, पार्किंग एरिया में काम करने वाले, गार्ड की नौकरी करने वाले यहाँ तक कि खुद हॉस्पिटल के स्टाप भी डेंगू की चपेट में आ गए है।
सरकार की और से डेंगू की रोकथाम व बचाव के लिए युद्ध स्तर पर काम किया जा रहा है नगर निगम भी मुस्तैद दिखाई दे रही है, लेकिन इन सब प्रयासों के वाबजूद भी डेंगू तेजी से अपने पांव पसार रहा है। डेंगू के बढ़ते प्रकोप का आम लोगों की जिंदगी पर तगड़ा असर देखने को मिल रहा है अगर किसी को आम बुखार भी है तो वे डेंगू की सम्भावना के चलते अस्पतालों की और दौड़ रहे हैं जिससे अस्पतालों में अस्त-व्यक्त वाला माहौल है।
कहीं बेड नहीं तो कहीं अस्पतालों ने डेंगू के मरीजों को लेना भी बंद कर दिया है। छोटे अस्पतालों में भी बड़ी संख्या में डेंगू के मरीजों का इलाज चल रहा है, इलाज कैसा चल रहा है? इस तरफ भी सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता है।
खैर, सरकार का डेंगू के आंकड़ों पर कंट्रोल नहीं है मरीज का इलाज तो दूर की बात है, सवाल है कि उन रोगियों को रिकॉर्ड क्यों नहीं जिनका निजी अस्पतालों में इलाज चल रहा है? जब इतनी बड़ी संख्या में डेंगू के मरीज सामने आ रहे हैं तो क्या झोलाछाप इसका फायदा नहीं उठाएंगे?
विशेषज्ञों के अनुसार, अब तो डेंगू को सिर्फ मौसम ही रोक सकता है। वर्तमान मौसम मच्छरों के पनपने के लिए अनुकूल बना हुआ है। कभी बारिश पड़ रही है और कभी चटख धूप खिल रही है। आद्रता 80 फीसदी से ऊपर है। ऐसे में अगले कुछ वक्त डेंगू से निजात मिलना मुश्किल है। ध्यान रखिये अपना।
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