रामनगर की रहने वाली मीनाक्षी खाती दिल्ली में होनी वाली राष्ट्रीय पर्यटन पर्व में अपने हाथ से निर्मित ऐपण की प्रदर्शनी लगायेंगी। महात्मा गांधी जयंती के मौके पर होने वाली यह प्रदर्शनी 2 से 6 अक्टूबर तक चलेगी, इस दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम, शिल्प बाजार और फूड कोर्ट का आयोजन किया जाएगा। इनमें देश की सांस्कृतिक विविधता, लोक एवं शास्त्रीय नृत्य एवं संगीत, हस्तकला, हथकरघा और विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों की पाक-कला का समन्वय होगा।
इस आयोजन में ‘ऐपण गर्ल’ के नाम से मशहूर हुई मीनाक्षी खाती अपनी ऐपण कला का जोहर दिखाएंगी। सोशल मीडिया पर उनकी इस कला की बहुत ज्यादा तारीफ होती है। मीनाक्षी विभिन्न प्रकार के चित्र बनाकर घर के आंगनों, दरवाजों, दीवारों, मंदिरों को सजाती हैं, इसके साथ ही मीनाक्षी ने वर्तनों पर जैसे चाय के कप, पूजा की थाली, रिंग, नेम प्लेट से लेकर चाबी के छल्ले सहित विभिन्न प्रकार अभिनव प्रयोग ऐपण कला को लेकर किया है। हर किसी ने इसकी बहुत तारीफ की है।
फिलहाल पर्यटन पर्व के लिए मीनाक्षी ने पहाड़ कॉलिंग थीम पर विशेष ऐपण तैयार किए हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर तस्वीरें भी शेयर की हैं। मीनाक्षी अपने स्कूल और काॅलेज में अपने सहपाठियों को भी ऐपण कला सिखा रही हैं। उन्होंने ऐपण कला को नया लुक दिया भी दिया है ताकि इस कला को बढ़ावा मिल सके। उम्मीद है कि उनकी इस कला को उत्तराखंड के बाद देश और विदेश से भी सराहना मिलेगी।
क्या है ऐपण कला–
“ऐपण कला” जिसे भारत के अन्य राज्यो में अलग-अलग नाम से जाना जाता है, को कुमाऊँ क्षेत्र में विशेषकर महिलाओं द्वारा ही घरों में सजावट के रूप में बनाया जाता हैं। यह कुमाऊं की एक लोक चित्रकला की शैली है, परंपरागत ऐपण प्राकृतिक रंगों से बनाए जाते हैं जैसे गेरू (एक प्रकार की लाल मिट्टी जो पहाड़ में पाई जाती है) और चावल के आटे (चावल के आटे में पानी मिलाकर उसे थोड़ा पतला बनाया जाता है जिसे स्थानीय भाषा में बिस्वार कहते हैं) से बनाई जाती है।
इससे महिलाएं विभिन्न प्रकार के चित्र बनाकर घर के आंगनों, दरवाजों, दीवारों, मंदिरों को सजाती हैं, जिन्हें ऐपण कहते हैं। जो घर की सुंदरता को तो बढ़ाते ही हैं, साथ ही साथ मन में पवित्रता का भाव भी पैदा कर देते हैं। ऐपण का अर्थ लीपने से होता है और लीप शब्द का अर्थ अंगुलियों से रंग लगाना है।
ऐपण बनाने वक्त महिलाएं चांद, सूरज, स्वास्तिक, गणेश, फूल—पत्ते, बेल—बूटे, लक्ष्मी के पैर, चौखाने, चौपड़, शंख, दिये, घंटी आदि चित्र खूबसूरती से जमीन पर उकेरती हैं। जिस जगह पर ऐपण बनाने होते हैं, उस जगह की पहले गेरू से पुताई की जाती है उसके बाद उसमें बिस्वार से डिजाइन बनाये जाते हैं। रंग और कूची की इसी कला को “उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र” में ऐपण कला नाम से जाना जाता है।
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