सचिन उनियाल रुद्रप्रयाग :
चैत्र मास की संक्रान्ति को उत्तराखण्ड में ‘फूलदेई’ के नाम से एक लोक पर्व मनाया जाता है, जो बसन्त ऋतु के स्वागत का त्यौहार है। इस दिन छोटे बच्चे सुबह ही उठकर जंगलों की ओर चले जाते हैं और वहां से प्योली/फ्यूंली, बुरांस, आडू, खुबानी व पुलम आदि के फूलों को चुनकर इन्हें चावल के साथ हर घर की देहरी पर लोकगीतों को गाते हुये जाते हैं और देहरी का पूजन करते हुये गाते हैं
प्रकृति और फूलों के साथ गूंथा हुआ ‘फूलदेई’ पर्व फूल चुनने के साथ ही उनके ईश्वर को अर्पण का पर्व है। जिसमें बच्चे गांव के घर-घर में जाकर गांव के सभी घरों की देहरी पर फूल बिखेरते हैं और उस घर पर फूलदेई गीत गुनगुनाते हैं। बच्चों को इसके बदले गुड़, चांवल और सिक्के प्रदान किये जाते हैं।
मान्यता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने गोपी एवं ग्वालों के संग रासलीला के माध्यम से वसंत का स्वागत किया था, वहीं वर्तमान समय में बच्चे सूर्य ढलने के बाद फ्यूंली, बुरांश, पैय्या आदि के फूलों को ¨रगाल की बनी टोकरियों में सजाने की परम्परा है, लेकिन अब टोकरियां नहीं दिख रही हैं। अधिकांश स्थानों पर सुबह सवेरे बच्चे बिना डोली के ही वसंत के गीत गाकर मठ-मंदिर एवं घरों की चौखट फूल डालते हैं।
कई स्थानों पर बच्चे समूह में घोघा देवता (फूलदेई) की डोली को भी सजाकर बसंत गीतों के साथ झूम-झूमकर नचाते हैं। आठवें दिन बच्चे सभी घरों से भोजन सामग्री व पूजा सामग्री को इकट्ठा कर सामूहिक भोज तैयार किया जाता है। इसके बाद बच्चे गोगा देवता की पूजा-अर्चना एवं भोग लगाने के बाद ही भोजन को खुद ग्रहण करते हैं।
कई स्थानों पर केवल गोगा देवता की डोलियों न ले जाकर पत्थरों पर बने गोगा देवता की मूर्ति की पूजा की जाती है। ख़ास कर यह प्रकृति से प्रेम का अनोखा त्यौहार है इसी थीम पर आज बच्चों ने फुलदेई के लिए फूल की टोकरी तैयार की है। बच्चों में त्यौहार को लेकर खुशी का महोला है आप सभी को फूलदेई की अग्रिम शुभकामनायें। ')}