शीशपाल गुसाईं जी की फेसबुक वाल से
1930 में देहरादून में विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर विरोध स्वरूप धरना दिया था। रेसकोर्स और आरा घर के बीच के से गुजर रहा था तो कभी यह मास्टर जी का हिस्सा था, उन्होंने स्कूल बनाएं और अपनी जगह दान दे दी थी आज यहां बड़ी-बड़ी हवेलियां है सरकारी इमारते हैं लेकिन मास्टर रामस्वरूप का नाम कहीं दिखाई नहीं देता।
मास्टर रामस्वरूप नकोटी ने 22 अप्रैल 1930 को नमक सत्याग्रहियों के दूसरे जत्थे का नेतृत्व किया था। आपने खाराखेत पहुँच कर नमक बनाया देहरादून के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की बात करें, तो मास्टर रामस्वरूप नकोटी का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। उन्होंने 22 अप्रैल 1930 को नमक सत्याग्रहियों के दूसरे जत्थे का नेतृत्व किया था। इन्होंने खाराखेत पहुँच कर नमक बनाया, वापस लौटते वक्त जब कौलागढ़ में नमक को सुखा रहे थे, तब अंग्रेज पुलिस दल ने उन पर झपटा मार कर नमक छीन लिया, और मास्टर जी की छाती में पैर रख कर उनके दोनों हाथ पकड़ लिये थे। लेकिन यह महान सेनानी विचलित नहीं हुआ।
अप्रैल 1930 के प्रथम सप्ताह में मास्टर जी देहरादून में पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने विदेशी कपड़ों की दुकानों में धरना दिया था। 1920 के महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के लिए मास्टर जी ने मास्टरी से त्यागपत्र दे दिया था और पूरी तरह से आंदोलन में कूद पड़े थे। 1921 में हर्रावाला स्टेशन पर वॉलिंटियर भर्ती करने के लिए एक बड़ी सभा उन्होंने कराई थी।
1929 में महात्मा गांधी ने देहरादून की यात्रा की थी। उनकी राजनीतिक कांफ्रेंस का आयोजन मास्टर जी सहित कुछ चुनिंदा लोगों ने किया था। उन्होंने इस कॉन्फ्रेंस को सफल करने के लिए बड़ा परिश्रम किया था। 26 जनवरी 1930 को स्वाधीनता घोषणा पत्र उन्होंने पढ़कर सुनाया था। फिर सारे जिले में सभाओं का तांता लग गया था। मास्टर जी बड़े लोकप्रिय होने लग गए थे।
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन देशभर में शुरू हो गया था। मास्टर जी को 10 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर देहरादून जेल भेज दिया गया। बाद में उन्हें अन्य मित्रों के साथ सेंट्रल जेल आगरा स्थानांतरित किया गया। आगरा सेंट्रल जेल से 10 नवंबर सन 1943 को उन्हें रिहा किया गया। आगरा सेंट्रल जेल में उन्हें टिहरी गढ़वाल राज्य के श्रीदेव सुमन और मशहूर अंग्रेजी के पत्रकार श्याम चन्द सिंह नेगी मिले थे। उन्हें राज द्रोह में आगरा जेल में बंद किया गया था। मास्टर जी का जन्म टिहरी गढ़वाल राज्य की बमुण्ड पट्टी के कुडियालगांव में नकोटी परिवार में हुआ था।
इसलिए उन्होंने अपनी नाम के आगे नकोटी लगा दिया था। वह देहरादून के उस वक्त के बड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। मास्टर जी ने टिहरी प्रजामंडल आंदोलन में भाग लिया था। देश ने आजादी के दिन देखे, तो मास्टर जी की स्वीकारोक्ति देहरादून में बढ़ गई थी। उन्हें जनता द्वारा देहरादून नगर पालिका का अध्यक्ष चुना गया। उनका कार्यकाल 14 नवंबर 1957 से 12 दिसंबर सन 1964 तक रहा। वह लोकप्रिय और साधारण चेयरमैनो में रहे। रेसकोर्स में आज भी उनके नाम मास्टर रामस्वरूप विद्यालय है।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मास्टर जी की देहरादून में इतनी लोकप्रियता थी कि,उन्हें जनता ने 1967 में निर्दलीय विधायक निर्वाचित कर लखनऊ विधानसभा में भेजा था। उन्होंने नित्यानंद स्वामी को हराया था।
वह देहरादून के आराघर में रहते थे, 13 जुलाई 1977 को 81 बरस की उम्र में उनका देहांत हो गया था। उनकी पत्नी उमा देवी भी स्वतंत्रता संग्राम में जेल यात्रा कर चुकी थीं। आराघर मोहल्ले को मास्टर रामस्वरूप नगर रखने का निर्णय भी हुआ था।