पहाड़ की होली पर पलायन का असर तो हम काफी सालों से देख रहे थे लेकिन इस साल कोरोना वायरस का असर भी इस त्यौहार पर साफ दिखाई दे रहा है। उत्तराखंड के शहरों में होली ठीक-ठाक मनाई गई। वहीं, पहाड़ों में इस बार होली फीकी रही। पहले ही पलायन की मार झेल रहे पहाड़ों में इस बार कोरोना वायरस की चर्चा भी रही और लोगों ने रंगों का बेहद कम इस्तेमाल किया। ग्रामीणों की मानें तो इस बार ठण्ड भी बहुत अधिक है जिसके लिए पानी की होली बिलकुल भी नहीं खेली जा सकती। कोरोना वायरस की चर्चा की वजह से रंग लगाने में परहेज किया गया।
उत्तराखंड में जहां इस बार होली की धूम रही वहां इको फ्रेंडली रंगों का क्रेज रहा, लोकगीतों पर झूमते हुए लोगों ने एक दुसरे को गुलाल लगाई और होली की बधाईयां दी। कुमाऊं की प्रसिद्ध खड़ी होली पर भी कोरोना वायरस का असर दिखा, खड़ी होली गायन में कई होल्यार मास्क लगाकर होली गाते नजर आये, नैनीताल में राम सेवक सभा की और से आयोजित होली जुलूस में जमकर इको फ्रेंडली गुलाल उड़ाया गया। जौनपुर में पहाड़ी गीत संगीत के साथ होली मनाई गई।
लेकिन बीते कुछ सालों में होली का जो स्वरूप है वह मूल स्वरूप से जुदा हो गया है। पहले गाँवों के होली के मौके पर पूरा दिन होली खेलकर ही निकल जाता था, लोग रिश्तेदारों के घर-घर जाकर खुशियां बांटते थे। अब ऐसा नहीं है होली के मौके पर कुछ लोग पूरे दिन घर में दुबके रहते हैं। शाम में कुछ दोस्तों या रिश्तेदारों से मिलकर औपचारिकताएं पूरी करते हैं। कुछ लोग केवल टीका लगवाकर हाथ जोड़ ले रहे हैं। पानी की होली इस बार बहुत कम खेली गई, कुल मिलाकर कहें तो इस बार होली के त्यौहार पर कोरोना के साथ-साथ मौसम की मार भी पड़ी है।