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उत्तराखंड पर्यटन

उत्तराखंड में है एक ऐसा मंदिर, यहां मरा हुआ प्राणी भी हो जाता था जिन्दा, यकीन नहीं तो जानिए

Last updated: June 5, 2020 1:41 pm
Debanand pant
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5 Min Read
lakhamandal-madir
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जन्म और मृत्यु अटल सत्य हैं, इन्हें सिक्के के दो पहलू कहा जाना भी गलत नहीं है। जन्म के बाद मृत्यु होना निश्चित है और मृत्यु के बाद शरीर त्यागकर आत्मा का दूसरे शरीर में प्रवेश कर पुन: जन्म लेना भी निर्धारित है। कहते हैं आत्मा एक बार जिस शरीर को छोड़ देती है, उसमें पुन: प्रवेश नहीं करती। वह अपने लिए एक नए शरीर की तलाश करती है। इसलिए मृत्यु के बाद किसी का वापस लौटकर आना संभव नहीं है, कम से कम उस शरीर में तो नहीं जिसे आत्मा पहले ही त्याग चुकी है। लेकिन ईश्वर के चमत्कार के आगे प्रकृति को भी झुकना ही पड़ता है।

जन्म और मृत्यु, इन दोनों पर ईश्वर का अधिकार है और ईश्वर चाहे तो वह प्रकृति के उस नियम को भी तोड़ सकता है जो मृत्यु के बाद व्यक्ति के पुन: जीवित होने से जुड़ा है अगर हम आपसे ये कहें कि मृत्यु के बाद भी लोग जीवित होते थे, आपको ये मजाक से ज्यादा और कुछ नहीं लगेगा। लेकिन इस बात में सच्चाई है, चलिए आपको उस मंदिर के बारे में बताते हैं-

देहरादून से 128 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यमुना नदी की तट पर लाखामंडल मंदिर परिसर है यह जगह गुफाओं और भगवान शिव के मंदिर के प्राचीन अवशेषों से घिरा हुआ है। माना जाता है कि इस मंदिर में प्रार्थना करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिल जाती है। यहां पर खुदाई करते वक्त विभिन्न आकार के और विभिन्न ऐतिहासिक काल के शिवलिंग मिले हैं।

इसके विषय में माना जाता है कि महाभारत काल में पांडवों को जीवित आग में भस्म करने के लिए उनके चचेरे भाई कौरवों ने यहीं लाक्षागृह का निर्माण करवाया था। ऐसी मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान इस स्थान पर स्वयं युधिष्ठिर ने शिवलिंग को स्थापित किया था। इस शिवलिंग को आज भी महामंडेश्वर नाम से जाना जाता है।  लिंग महापुराण के अनुसार यह भगवान शिव का पहला शिवलिंग था। इस शिवलिंग के स्थापित होने के बाद स्वयं भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी ने शिवलिंग की पूजा की थी।

जहां युधिष्ठिर ने शिवलिंग स्थापित किया था वहां एक बहुत खूबसूरत मंदिर बनाया गया था। शिवलिंग के ठीक सामने दो द्वारपाल पश्चिम की तरफ मुंह करके खड़े हुए दिखते हैं। कहानियों के अनुसार पुराने समय में किसी मृत शव को इन द्वारपालों के सामने रखकर मंदिर के पुजारी उस पर पवित्र जल छिड़क देते जिससे मृत व्यक्ति कुछ समय के लिए पुन: जीवित हो उठता था।

जीवित होने के बाद वह भगवान का नाम लेता था और उसे गंगाजल प्रदान किया जाता था। गंगाजल ग्रहण करते ही उसकी आत्मा फिर से शरीर त्यागकर चली जाती थी, हालांकि आज के समय में घोर कलयुग के चलते ऐसा चमत्कार देखने को नही मिलते, इस मंदिर में दो द्वारपाल में से एक का हाथ कटा हुआ है। अब ऐसा क्यों हैं यह बात आजतक एक रहस्य ही बना हुआ है।

महामंडलेश्वर शिवलिंग के विषय में माना जाता है कि जो भी स्त्री, पुत्र प्राप्ति के उद्देश्य से महाशिवरात्रि की रात मंदिर के मुख्य द्वार पर बैठकर शिवालय के दीपक को एकटक निहारते हुए शिवमंत्र का जाप करती है, उसे एक साल के भीतर पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।

जब भी कोई व्यक्ति इस शिवलिंग का जलाभिषेक करता है तो उसे इसमें अपने चेहरे की आकृति स्पष्ट नजर आती है। स्थानीय लोगों का मानना है कि यहां आने वाला कोई भी व्यक्ति खाली हाथ नहीं लौटता, भगवान महादेव अपने दर पर आने वाले भक्तों की मनोकामना अवश्य ही पूरी करते हैं।

यहां दो फुट की खुदाई करने से ही यहां हजारों साल पुरानी कीमती मूर्तियां मिलती हैं, इसी कारण इस स्‍थान को आर्किलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की निगरानी में रखा गया है। लाखा मंडल में नए निर्माण पर रोक लगाया गया है। परिस्थितियों के मुताबिक कभी भी इस जगह को खाली करवाया जा सकता है। ')}

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