समूद्र तल से 2277 मीटर ऊंचाई पर मां चन्द्रबदनी मन्दिर माता के 52 शक्तिपीठों मे से ऐक है। मां भगवती का यह मन्दिर श्रीनगर टिहरी मोटर मार्ग पर है इस रास्ते के बीच मे चन्द्रकूट पर्वत है जिस पर्वत की चोटी पर मां भगवती का प्राचीन मन्दिर स्थापित है। यह मंदिर देवप्रयाग से सिर्फ 35 किलोमीटर ओर नरेन्द्रनगर से 109 किलोमीटर दूरी पर है।
एक बार राजा दक्ष ने हरिद्वार(कनखल) में यज्ञ किया। दक्ष की पुत्री सती ने भगवान शंकर से यज्ञ में जाने की इच्छा व्यक्त की लेकिन भगवान शंकर ने उन्हें वहां न जाने का परामर्श दिया। मोहवश सती ने उनकी बात को न समझकर वहां चली गयी।
पिता के घर में अपना और अपने पति का अपमान देखकर भाववेश में आकर उसने अग्नि कुंड में गिरकर प्राण दे दिये। जब शिवजी को इस बात की सूचना प्राप्त हुई तो वे स्वयं दक्ष की यज्ञशाला में गये और सती के शरीर को उठाकर आकाश मार्ग से हिमालय की ओर चल पड़े। वे सती के वियोग से दुखी और क्रोधित हो गये जिससे पृथ्वी कांपने लगी।
अनिष्ट की आशंका से भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के अंगों को छिन्न–भिन्न कर दिया। भगवान विष्णु के चक्र से कटकर सती के अंग जहां–जहां गिरे वहां शक्तिपीठ स्थापित हुए। चन्द्रकूट पर्वत पर सती का धड़(बदन) पड़ा इसलिये यहां का नाम चन्द्रबदनी पड़ा।
कहा जाता है कि यहां शिव भगवान ने सत्ती के विरह में व्याकुल होकर सत्ती का स्मरण किया था। जिसके बाद मां सत्ती ने भगवान शिव को चन्द्र रूप शीतल मुख में दर्शन दिए थे जिसके बाद शिव भगवान का का शोक दूर हो गया था। यहां माता की पूजा यंत्र के रूप में होती हैं।
चन्द्रकूट पर्वत पर जाते समय ऐसा लगता है मानो हम आसमान छूने जा रहे हो। पहाड़ पर सीधी चढ़ाई है तो कहीं पथरीले और घने बांज‚ बुरांस के जंगल हैं सुबह साम माता की पुजा अर्चना की जाती है। लाखों लोग दूर सूदूर से मां के दर्शनो के लिऐ आते हैं।
मां चन्द्रबदनी आस्था का अटूट चिन्ह मन्दिर है शदियों से लोगों ने माता के बदलते स्वरूप को देखा है जहां पहले बलि देकर माता को खुश करने प्रयत्न किया जाता था लेकिन आज यहां सात्विक विधि – विधान श्रीफल, छत्र, फल ओर पुष्प के द्धारा पूजा की जाती है। ')}