उत्तराखंड के जंगलों में एक मशरूम होने की बहुत जादा संभावनाएं सामने आ रही हैं। उत्तराखंड के चम्पावत और बागेश्वर में तो ये बहुतायत में पाया जाता है। इस मशरूम का नाम morel mushrooms है। इस मसरूम को स्थानीय भाषा गढ़वाली जोंसारी हिमंचाली में गुच्छी नाम से जाना जाता है, जबकि इसका वैज्ञानिक नाम मार्कुला एस्क्यूपलेंटा है। हिंदी में इसे स्पंज मशरूम कहा जाता है।
आपको बता दें कि यह मशरूम जनवरी और फ़रवरी की बरसात में उगता है, बरसात के साथ जब बिजली गिरती है तो उग आते हैं। जब धुप खिलती है तो ये भी खिल जाते हैं। इस मशरूम को जंगल से ही प्राप्त किया जा सकता है क्योंकि ये मशरूम अभी तक लेब में या खेत में नहीं उगाया जा सका है।
हल्की और काली मिट्टी में पेड़ों और झाड़ियों के बीच यह अधिक पैदा होती है। बाजार में इसकी कीमत 35 से 40 हजार रुपए प्रति किलो है। इस सब्जी का इस्तेमाल लोग सर्दियों में करते हैं।
यूं तो यह सब्जी औषधीय गुणों से भरपूर है लेकिन इससे नियमित खाने से दिल की बिमारियां दूर हो जाती है। यह सब्जी हार्ट पेशेंट के लिए उपयोगी होती है। हिमांचल प्रदेश में इसका काफी कारोबार होता है, उत्तराखंड में भी यह बहुतायत में होता है। लेकिन इसकी जानकारी के आभाव में लोग इसका फायदा नहीं उठा पाते हैं।
अलग अलग जगह उगने में इसका रंग अलग अलग हो सकता है, जैसे चीड के जंगल में बंद छतरीनुमा आकार की और सेब के बगीचों में गेंहुआ रन की वजनदार, तो देवधार के जंगल में इसका रंग थोडा काला होता है, अन्तराष्ट्रीय बाजार में इसकी भारी मांग है।
इस मशरूम को फाइव सितारा होटलों में सब्जी के लिए परोसा जाता है। इसके अलावा इस मशरूम को पैंसलिन सहित कई अन्य दवाओं में भी प्रयोग किया जाता है।
बरसात के बाद धुप खिलने पर इसे उत्तराखड के कई जंगलों में देखा जा सकता है, वदेशों में इसकी भारी मांग रहती है। हिमांचल में कई लोग जनवरी फरवरी में इस मशरूम से अच्छी खासी रकम कमा लेते हैं। ')}