नैनीताल भारत के उत्तराखण्ड राज्य का एक प्रमुख पर्यटन नगर है। यह नैनीताल जिले का मुख्यालय भी है। कुमाऊँ क्षेत्र में नैनीताल जिले का विशेष महत्व है। देश के प्रमुख क्षेत्रों में नैनीताल की गणना होती है।
नैनीताल का मुख्य आकर्षण यहाँ की झील है। स्कंद पुराण में इसे त्रिऋषि सरोवर कहा गया है। कहा जाता है कि जब अत्री, पुलस्त्य और पुलह ऋषि को नैनीताल में कहीं पानी नहीं मिला तो उन्होंने एक गड्ढा खोदा और मानसरोवर झील से पानी लाकर उसमें भरा। इस झील के बारे मे कहा जाता है यहां डुबकी लगाने से उतना ही पुण्य मिलता है जितना मानसरोवर नदी से मिलता है। यह झील 64 शक्ति पीठों में से एक है।
आज भी नैनीताल जिले में सबसे अधिक ताल हैं। इसे भारत का लेक डिस्ट्रिक्ट कहा जाता है, क्योंकि यह पूरी जगह झीलों से घिरी हुई है। ‘नैनी’ शब्द का अर्थ है आँखें और ‘ताल’ का अर्थ है झील। झीलों का शहर नैनीताल उत्तराखंड का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है।
बर्फ़ से ढ़के पहाड़ों के बीच बसा यह स्थान झीलों से घिरा हुआ है। इनमें से सबसे प्रमुख झील नैनी झील है जिसके नाम पर इस जगह का नाम नैनीताल पड़ा है। नैनीताल को जिधर से देखा जाए, यह बेहद ख़ूबसूरत है।
नैनी झील के उत्तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर स्थित है। 1880 में भूस्खलन से यह मंदिर नष्ट हो गया था। बाद में इसे दुबारा बनाया गया। यहां सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है। मंदिर में दो नेत्र हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं।
नैनी झील के बारें में माना जाता है कि जब शिव सती की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहे थे, तब जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। नैनी झील के स्थान पर देवी सती की आँख गिरी थी। इसी से प्रेरित होकर इस मंदिर की स्थापना की गई है। माँ नैना देवी की असीम कृपा हमेशा अपने भक्तों पर रहती है। हर वर्ष माँ नैना देवी का मेला नैनीताल में आयोजित किया जाता है।
निकटवर्ती पर्यटन स्थल नैनीताल के पर्यटन स्थल हनुमानगढ़ी, काठगोदाम, भवाली, नौकुचियाताल, सात ताल, नैनीताल, भीमताल , नल -दमयन्ति ताल, रामगढ़, नैनीताल, मुक्तेश्वर, खुर्पाताल, काशीपुर, द्रोणा सागर, गिरीताल हैं।
जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान यह गौरवशाली पशु विहार है। नैनीताल जनपद में यह उद्यान विस्तार लिए हुए है। दिल्ली से मुरादाबाद – काशीपुर – रामनगर होते हुए कार्बेट नेशनल पार्क की दूरी 290 किमी है। कार्बेट नेशनल पार्क में पर्यटकों के भ्रमण का समय नवंबर से मई तक होता है।
बसों में अनुभवी मार्गदर्शक होते हैं जो पशुओं की जानकारी, उनकी आदतों को बताते हुए बातें करते रहते हैं। यहाँ पर शेर, हाथी, भालू, बाघ, सुअर, हिरण, चीतल, साँभर, पाण्डा, काकड़, नीलगाय, घुरल और चीता आदि ‘वन्य प्राणी’ अधिक संख्या में मिलते हैं। इसी प्रकार इस वन में अजगर तथा कई प्रकार के साँप भी निवास करते हैं।
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