उत्तराखंड के विकास के लिए सड़क मार्गों का विकास बेहद आवश्यक है। यह विकास पर्यावरण को ध्यान में रखकर होना चाहिए। सुप्रीम फैसले के बाद अब चार-धाम परियोजना में सड़क की चौड़ाई कम हो जाएगी।
हालांकि अभी भी लोग कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट होने की वजह से चौड़ीकरण को लेकर अभी स्थिति बदल सकती है। फिलहाल उत्तराखंड में सड़क मार्गों को लेकर गहमा-गहमी का माहौल है, कहीं चारधाम परियोजना को ठप करवाने वालों पर लोग भड़के हुए हैं तो कहीं खुद को पर्यावरण प्रेमी घोषित करने वाले पर्यावरणविदों के खिलाफ लोगों का गुस्सा देखने को मिल रहा है।
उत्तरकाशी जिले में सोमवार को गंगोत्री राजमार्ग पर भटवाड़ी स्थित पुल पर स्थानीय नोगों ने सांकेतिक धरना देकर ऐसे लोगों के खिलाफ नारेबाजी करते हुए बाकायदा पुतले फूंककर प्रदर्शन किया।
लोगों का कहना है कि ये लोग वही हैं जो भगीरथी घाटी में विकास के दुश्मन हैं। लोहारीनाग योजना को बंद करके यही लोग अब ड्रीम प्रोजेक्ट आल वेदर पर कमीशन न मिलने से इसकी चौड़ाई घटाने का षडयंत्र रच आल वेदर की चौड़ाई कम कर अदालत को भी गुमराह कर रहे हैं।
आक्रोशित लोगों का कहना था कि इन्ही के द्वारा कामर, स्याबा, सालंग, भंगेली सडक में भी रोड़ा अटकाया था। प्रदर्शनकारियों ने ऐलान किया कि वे विकास पर रोड़ा डालने वालों के खिलाफ संघर्ष जारी रखेंगे। प्रधान संगठन ने 17 सितंबर को अर्ध नग्न होकर और सिर मुंडवा कर तथाकथित पर्यावरणविदों का पिंडदान देने का फैसला किया है।
दूसरी तरफ सोशल मीडिया ट्वीटर पर उत्तराखंड के युवाओं का कुछ NGO के खिलाफ गुस्सा भी देखने को मिला है, नवीन पंत नाम के यूजर्स ने ट्वीटर पर लिखा है कि ”पूरे उत्तराखंड में ये एनजीओ फैले हैं कृषि क्षेत्र में तो इनकी भरमार है। जब आपके पास सभी विभाग अपना उत्तरदायित्व निभाने में सक्षम हैं तो ये एनजीओ के नाम पर राजकोष में सुराख बनाने की क्या जरूरत है यही कारण भी है कि उत्तराखंड विकास में पीछे रह गया इन सब एनजीओ का बहिष्कार होना चाहिए।”
उत्तराखंड में सुंदरलाल बहुगुणा, गौरा देवी, जगत सिंह जंगली और चंदन नयाल जैसे पर्यावरण प्रेमी हुए हैं, लेकिन वे उत्तराखंड के विकास में बाधक कभी नहीं बने। बल्कि आज का सच्चा पर्यावरण प्रेमी यही चाहता है कि हर विकास कार्य पर्यावरण का ध्यान रखकर दिया जाय। लेकिन आज के समय में उत्तराखंड में जो हो रहा है उसने लोगों के मन में उथल-पुथल पैदा कर दी है। हर नई सड़क का विरोध हो रहा है। बड़ी मुश्किल से बड़ी सड़क को पास किया जाता है और फिर जब उसपे काम शुरू होता है तो उसको बीच में या ठीक पूरा होने से पहले रोक दिया जाता है, यही बात गले नहीं उतर रही है।
ट्वीटर पर ही एक यूजर्स ने लिखा कुछ दिल्ली और देहरादून में बैठकर कुछ लोग अपने आपको पर्यावरण प्रेमी बोलते हैं और फिर पहाड़ में विकासकार्यों को रोककर पहाड़ के युवाओं के भविष्य के साथ खेलते हैं। आखिर कब तक यह चलेगा।