लोक विधाओं और लोक भाषा के जबरदस्त जानकार, कालजयी लोक कवि, प्रकृति प्रदत्त आवाज के बादशाह रहे गायक चंद्र सिंह राही आज भले ही हमारे बीच न हों लेकिन उनके गीत आज भी उत्तराखंड की पहचान को बुलंदियों पर पहुंचा रहे हैं। गढ़वाली-कुमाऊनी भाषा के बीच एक भाषा होती थी जो सिर्फ चंद्र सिंह राही जी ही जानते थे। खैर राही जी के बारे में आप लोग भी अच्छी तरह परिचित होंगे।
अभी हम आपको चंद्र सिंह राही जी के उस गीत की बात करेंगे जो इन दिनों उत्तराखंड में ट्रेंड कर रहा है। दरअसल, उनका यह गीत ‘चैत की चैत्वाली’ और ‘फ्योंलड़िया’ से भी आगे निकल गया है। चंद्र सिंह राही जी के इस गीत को अपनी आवाज दी थी मशहूर कुमाउनी गायक स्वर्गीय पप्पू कार्की जी ने। दुःख की बात यह है कि आज हमारे बीच पप्पू कार्की जी भी नहीं रहे, लेकिन उनकी आवाज आज सबकी जुबान पर है, गीत का नाम है- फ्वां बागा रे।
नीलम कैसेट द्वारा 12 जुलाई को रिलीज किये गए इस गीत को अब तक 72 लाख से ज्यादा लोग देख चुके हैं। इतने कम समय में गीत की पॉपुलैरिटी को देखते हुए लगता है कि चंद्र सिंह राही जी के बोल एक बार फिर युवाओं को पहाड़ी संगीत की और खींच लाये हैं। गीत नए गायक कलाकारों ने जरूर गाये हैं लेकिन चंद्र सिंह राही जी ने उस वक्त ही इन गीतों में मिठास घोल दी थी। जो आज भी लोगों की जुबान से हटते ही नहीं हैं।
‘सौली घुरा घुर दगड़या, ‘जरा ठंडू चला दे, जरा मठू चला दे, भाना रे रंगीली भाना, सतपुली का सैणा, हिलमा चांदी कु बटना जैसे कालजयी गीतों के रचनाकार चंद्र सिंह राही के कई गीतों को नए अंदाज में युवा कलाकारों ने गाया है। हर बार लोग उन्हें शान से सुनते और गुनगुनाते हैं।
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