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उत्तराखंड पर्यटन

रुद्रनाथ मंदिर यहां होती है शिवजी के मुख की पूजा, जानिए रुद्रनाथ मंदिर क्यों है विख्यात

Last updated: April 11, 2022 2:52 pm
Debanand pant
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4 Min Read
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उत्तराखंड मे भगवान शिव का ऐसा मन्दिर है जहां भक्तों को पहूंचने मे बहुत कठिनाईयों का सामना करना पढ़ता है लेकिन जब यहाँ पहुंचता है तो जो आशीर्वाद मिलता है उसकी कल्पना आप भी नहीं कर सकते जब तक आप यहाँ घुमने ना जाओ। वो जगह है रूद्रनाथ मन्दिर ।

रुद्रनाथ मन्दिर उत्तराखण्ड के चमोली जिले में स्थित भगवान शिव का प्राचीन मन्दिर है। जो कि पंचकेदार में से एक माना जाता है। समुद्रतल से 2290 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रुद्रनाथ मंदिर भव्य प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण है। रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शंकर के एकानन यानि मुख की पूजा की जाती है जबकि संपूर्ण शरीर की पूजा नेपाल की राजधानी काठमांडू के पशुपतिनाथ में की जाती है। रुद्रनाथ मंदिर के सामने से नन्दा देवी और त्रिशूल की हिमाच्छादित चोटियां दिखाई देती हैं बुग्याल से भरे मैदान यहां का आकर्षण बढाती हैं।

मान्यता है कि इस जगह पर पांडवों ने द्रोपदी संग यहां पर भगवान् शिव की तपस्या की थी। इस स्थान की यात्रा के लिए सबसे पहले गोपेश्वर पहुंचना होता है जो कि चमोली जिले का मुख्यालय है। गोपेश्वर एक आकर्षक हिल स्टेशन है जहां पर ऐतिहासिक गोपीनाथ मंदिर है। इस मंदिर का ऐतिहासिक लौह त्रिशूल भी आकर्षण का केंद्र है। गोपेश्वर पहुंचने वाले यात्री गोपीनाथ मंदिर और लौह त्रिशूल के दर्शन करना नहीं भूलते। गोपेश्वर से करीब पांच किलोमीटर दूर है सगर गांव। बस द्वारा रुद्रनाथ यात्रा का यही अंतिम पडाव है। इसके बाद जिस दुरूह चढाई से यात्रियों और सैलानियों का सामना होता है वो अकल्पनीय है। सगर गांव से करीब चार किलोमीटर चढने के बाद यात्री पहुंचता है पुंग बुग्याल।

यह लंबा चौडा घास का मैदान है जिसके ठीक सामने पहाडों की ऊंची चोटियों को देखने पर सर पर रखी टोपी गिर जाती है। गर्मियों में अपने पशुओं के साथ आस-पास के गांव के लोग यहां डेरा डालते हैं, जिन्हें पालसी कहा जाता है। अपनी थकान मिटाने के लिए थोडी देर यात्री यहां विश्राम करते हैं। ये पालसी थके हारे यात्रियों को चाय आदि उपलब्ध कराते हैं।

आगे की कठिन चढाई में जगह-जगह मिलने वाली चाय की यही चुस्की अमृत का काम करती है। पुंग बुग्याल में कुछ देर आराम करने के बाद कलचात बुग्याल और फिर चक्रघनी की आठ किलोमीटर की खडी चढाई ही असली परीक्षा होती है। चक्रघनी जैसे कि नाम से प्रतीत होता है कि चक्र के सामान गोल। इस दुरूह चढाई को चढते-चढते यात्रियों का दम निकलने लगता है। चढते हुए मार्ग पर बांज, बुरांश, खर्सू, मोरु, फायनिट और थुनार के दुर्लभ वृक्षों की घनी छाया यात्रियों को राहत देती रहती है।

रास्ते में कहीं कहीं पर मिलने वाले मीठे पानी की जलधाराएं यात्रियों के गले को तर करती हैं। इस घुमावदार चढाई के बाद थका-हारा यात्री ल्वीटी बुग्याल पहुंचता है जो समुद्र तल से करीब 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ल्वीटी बुग्याल से गापेश्वर और सगर का दृश्य तो देखने लायक है ही, साथ ही रात में दिखाई देती दूर पौडी नगर की टिमटिमाती लाइटों का आकर्षण भी कमतर नहीं।

ल्वीटी बुग्याल में सगर और आसपास के गांव के लोग अपनी भेड-बकरियों के साथ छह महीने तक डेरा डालते हैं। अगर पूरी चढाई एक दिन में चढना कठिन लगे तो यहां इन पालसियों के साथ एक रात गुजारी जा सकती है। यहां की चट्टानों पर उगी घास और उस पर चरती बकरियों का दृश्य पर्यटकों को अलग ही दुनिया का अहसास कराता है। यहां पर कई दुर्लभ जडी-बूटियां भी मिलती हैं।

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