ताकत वतन की हमसे है, इज्जत वतन की हमसे है। सैनिकों के सम्मान में लिखा यह चर्चित गीत उत्तराखंड के बहादुर बेटों ने पूरी तरह से अपने जीवन में उतार लिया है। देश के लिए बलिदान देने में उत्तराखंड पहले नंबर पर है।
कारगिल युद्ध से अब तक 19 साल में राज्य के 363 बहादुर बेटे शहादत दे चुके हैं। ये कुर्बानियां न केवल जम्मू-कश्मीर बल्कि, देश के विभिन्न हिस्सों में देश की रक्षा के लिए दी गई हैं। यह आंकड़ा सेना के जवानों का है। इसमें अद्धसैनिक बलों के शहीदों की संख्या शामिल नहीं है।
सैनिक कल्याण निदेशालय के एक आंकड़े के अनुसार देश के लिए बलिदान देने वाले राज्यों में उत्तराखंड सबसे ऊपर है। सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास निदेशालय के पूर्व निदेशक ब्रिगेडियर (सेनि) एके बहुगुणा के अनुसार वर्ष 2008 में निदेशालय ने इसका सर्वेक्षण किया था।
आबादी, आकार के अनुपात में शहादत की संख्या के लिए उत्तराखंड सबसे आगे है। दूसरा नंबर हिमाचल प्रदेश का है। वर्तमान में उत्तराखंड के एक लाख से ज्यादा लोग देश के विभिन्न मोर्चों पर मुस्तैदी से डटे हुए हैं। उत्तराखंड के सीने पर इस वक्त परमवीर चक्र से लेकर मेंशन इन डिस्पैच स्तर के 1282 मेडल चमचमा रहे हैं।
हर माह दो शहादत देता है उत्तराखंड-
देहरादून। वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध के बाद से अब तक के रिकार्ड के मुताबिक औसतन उत्तराखंड के दो जांबाज शहादत दे रहे हैं। इन 19 साल में राज्य के 363 सैनिक शहीद हुए हैं। ये शहादतें ऑपरेशन रक्षक, ऑपरेशन मेघदूत, ऑपरेशन संग्राम, ऑपरेशन राइनो समेत विभिन्न सैन्य आपरेशन के दौरान हुई हैं। अन्य मोर्चों पर आज भी सैनिक डटे हैं।
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