उत्तराखंड की सिर्फ देवों की भूमि ही नहीं बल्कि वीरों की भूमि भी हैं यहां से निकले सबसे जवान सेना में हैं और सबसे ज्यादा जवान अपनी शहादत भी दे चुके हैं। कई जाबज सैनिकों की वीरता के किस्से आपने सुने होंगे, मेजर जसवंत बिष्ट की कहानी अपने सुनी ही होगी उन्होंने 1962 की लड़ाई में चीन की सीमा पर एक पूरी बटालियन को अकेले ही 72 घंटे अकेले ही रोक के रखा था।
आज भी हमारे जवानों की बहादुरी की कहानियां देखने को मिल रही हैं। यहां हर रोज आतंकवाद की लड़ाई में हमारे वीर बहादुर जवान डटकर दुश्मन से मुकाबले करते हैं। 14 फरवरी को हुए
आइईडी ब्लास्ट में देश ने अपने 40 जवान खो दिए थे, अभी देश अपने इन जवानों को अंतिम विधाई ही दे रहा था कि खबर आई कि दुश्मनों द्वारा बिछाई गई आइईडी को डिफ्यूज करते समय देहरादून निवासी मेजर चित्रेश बिष्ट शहीद हो गए हैं।
मेजर चित्रेश की शहादत की खबर सुनते ही पूरा उत्तराखंड एक बार फिर शोक में डूब गया। मेजर चित्रेश बिष्ट सेना के बहादुर सिपाई थे। बड़े अभियानों में वह सेना की पहली पसंद रहते थे।
मेजर चित्रेश न केवल आइईडी को डिफ्यूज करने में माहिर थे, बल्कि कई बार दुश्मनों के दांत भी खट्टे कर चुके थे। जब बॉर्डर पर पेट्रोलिंग के दौरान मेजर चित्रेश के छह साथियों पर घात लगाए बैठे दुश्मनों ने हमला किया, मेजर चित्रेश की सूझबूझ ने सभी को सुरक्षित निकाल लिया। उस दौरान हमले के बाद कैंप पहुंचे चित्रेश की बहादुरी की यूनिट के कर्नल ने भी खूब तारीफ की थी।
मेजर चित्रेश बिष्ट सेना की महज छह साल की नौकरी में 24 से ज्यादा आइईडी डिफ्यूज कर चुके थे। शनिवार को भी वह चार आइईडी को डिफ्यूज कर पांचवीं में विस्फोट की चपेट में आकर शहीद हो गए। इंजीनियरिंग कोर में मेजर चित्रेश आइईडी डिफ्यूज करने में हमेशा सबसे आगे रहते थे।
सेना के कई ऑपरेशनों में मेजर चित्रेश ने अहम भूमिका निभाई। सेना ने भी चित्रेश की बहादुरी और कार्य क्षमता का आकलन कर उन्हें एनएसजी के लिए चयनित किया। इसके लिए मेजर चित्रेश ने परीक्षा पास कर ली थी। मगर, छोटे से मेडिकल दिक्कत से वह अनफिट हो गए थे। अभी भी चित्रेश एनएसजी में आने की तैयारी कर रहे थे।
चित्रेश में जोश और जुनून ऐसा था कि पूरी टीम को पीछे कर वह हर काम में खुद आगे रहते थे। मेजर चित्रेश के पिता भी कहते हैं कि पहली बार सोनू जब एनएसजी ट्रेनिंग के लिए गया तो पांव में दिक्कत हो गई। उसे वापस लौटना पड़ा। बावजूद इसके वह एनएसजी में जाने के लिए फिर तैयारी करने लगा। दूसरी बार भी पांव में दिक्कत की वजह से वह एनएसजी में नहीं जा पाया।
जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले में तैनात रहे मेजर चित्रेश बिष्ट की शहादत के बाद उनके पराक्रम और देश रक्षा में दर्शाए गए अदम्य साहस की चारों तरफ चर्चा है। हमने एक और वीर जवान खो दिया। नम आखों से श्रधांजली.. चित्रेश बिष्ट अमर रहे.. जय हिन्द.. जय भारत..।
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