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उत्तराखंड पर्यटन

उत्तराखंड में है एक ऐसा शिव मंदिर, यहां होते हैं शिव के दर्शन लेकिन नहीं की जाती है पूजा, जानिए क्यों?

Last updated: June 5, 2020 2:01 pm
Debanand pant
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4 Min Read
hathiya dewal
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उत्तराखंड को देवो की भूमि ऐसे ही नहीं कहा जाता है, यहां लोगों के मन में आज भी भगवान् के प्रति जितनी श्रद्धा है उतनी भारत में कहीं और नहीं है। आज हम आपको ऐसे मंदिर के बार में बताने जा रहे हैं जो अपने आप में अदभुत है। इस मंदिर का नाम है एक हथिया देवाल। ये मंदिर ना सिर्फ एक शिव मंदिर है, बल्कि एक कला और शिल्प का शानदार नमूना भी है। मंदिर की स्थापत्य कला नागर और लैटिन शैली की है।

यह मंदिर एक ही रात में और एक ही पत्थर पर तराशा गया मंदिर है। चट्टान को काट कर ही शिवलिंग बनाया गया है। मान्यता है कि यहां शिवजी की पूजा नहीं की जाती है उसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह माना जाता है कि रात्रि में शीघ्रता से बनाये जाने के कारण शिवलिंग का अरघा विपरीत दिशा में बनाया गया है।

जिसकी पूजा फलदायक नहीं होगी बल्कि दोषपूर्ण मूर्ति का पूजन अनिश्टकारक भी हो सकता है। बस इसी के चलते रातों रात स्थापित हुये उस मंदिर में विराजमान शिवलिंग की पूजा नहीं की जाती। इसलिए लोग इस मंदिर के दर्शन मात्र करके लौट जाते हैं।

यह मंदिर पिथौरागढ़ से धारचूला जाने वाले मार्ग पर लगभग सत्तर किलोमीटर दूर स्थित क़स्बा थल से सिर्फ छः किलोमीटर दूर ग्राम सभा बल्तिर में स्थापित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।

 

किंवदंती है कि इस ग्राम में एक मूर्तिकार रहता था जो पत्थरों को काटकर मूर्तियाँ बनाया करता था। एक बार किसी दुर्घटना में उसका एक हाथ चला गया। अब वह एक हाथ के सहारे ही मूर्तियाँ बनाना चाहता था। परन्तु गांव के कुछ लोगों ने उसे यह उलाहना देना शुरू किया कि अब एक हाथ के सहारे वह क्या कर सकेगा?

खिन्न होकर उसने प्रण कर लिया कि वह अब उस गाँव में नहीं रहेगा और वहाँ से कहीं और चला जायेगा। यह प्रण करने के बाद वह एक रात अपनी छेनी, हथौडी सहित अन्य औजार लेकर वह गाँव के दक्षिणी छोर की ओर निकल पडा।

गाँव का दक्षिणी छोर प्रायः ग्रामवासियों के लिये शौच आदि के उपयोग में आता था। वहाँ पर एक विशाल चट्टान थी ।अगले दिन प्रातःकाल जब गाँव वासी शौच के उस दिशा में गये तो पाया कि किसी ने रात भर में चट्टान को काटकर एक देवालय का रूप दे दिया है।

कोतुहल से सबकी आँखे फटी रह गयीं। सारे गांववासी वहाँ पर एकत्रित हुये परन्तु वह कारीगर नहीं आया, वह एक हाथ का कारीगर गाँव छोडकर जा चुका था। मंदिर में शिवलिंग की दशा सही नहीं होने की वजह से गाँव वालों ने यहां पूजा नहीं की

इस मंदिर के बारे में एक अन्य धारणा भी प्रचारित है  कहा जाता है कि एक बार एक राजा ने एक कुशल कारीगर का एक हाथ मात्र इसलिए कटवा दिया की वो कोई दूसरी सुन्दर ईमारत न बनवा सके।

लेकिन राजा कारीगर के हौसले को नहीं तोड़ पाया। उस कारीगर ने एक ही रात में एक हाथ से एक शिव मंदिर का निर्माण किया और हमेशा के लिए वो राज्य छोड़कर चला गया। जब जनता को यह बात मालूम हुई तो उसे बहुत दुख हुआ।

लोगों ने यह फैसला किया कि उनके मन में भगवान भोलेनाथ के प्रति श्रद्धा तो पूर्ववत रहेगी लेकिन राजा के इस कृत्य का विरोध जताने के लिए वे मंदिर में पूजन आदि नहीं करेंगे। ')}

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