डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला:
देवभूमि उत्तराखंड सदियों से साधकों की तपस्थली रहा है। हिमालय के सुदूर अंचल में ऋषि विद्वानों को आज भी तपस्यारत देखा जा सकता है। स्वामी विवेकानंद को भी इस पहाड़ी अंचल से बेहद लगाव था। फिर चाहे वो देहरादून हो या अल्मोड़ा। उन्होंने अपने जीवन के कई दिन यहां ना केवल गुजारे, बल्कि इस जगह को अपना साधनास्थल भी बनाया।
पूरी दुनिया को भारतीय आध्यात्मिक ज्ञान से रूबरू कराने वाले स्वामी विवेकानंद दो बार उत्तराखंड की राजधानी देहरादून आए थे। कहा जाता है कि पहली बार स्वामी विवेकानंद साल 1890 में देहरादून आए थे। अपनी यात्रा के दौरान वो बद्री नारायण सेवा इलाके में पड़े अकाल के बाद श्रीनगर गए थे, यहां से टिहरी के रास्ते वो देहरादून पहुंचे। शिकागो के धर्म सम्मेलन में 11 सितंबर 1893 को भारतीय संस्कृति व दर्शन के पक्ष में अपने क्रांतिकारी विचारों से दुनिया को स्वामी विवेकानंद ने चकित किया था।
देश में हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन स्वामी जी के कटे हुए बालों को भी प्रेरणास्रोत मानते थे। कनाडा में भारत के उच्चायुक्त पद से 1992 में सेवानिवृत्त गिरीश एन मेहरा की किताब ‘नियरर हेवन देन अर्थ’ पुस्तक में उन्होंने इसका वर्णन भी किया है।स्वामीनाथन ने पुस्तक में बताया है कि अल्मोड़ा स्थित कुंदन हाउस में 1964 में विख्यात विज्ञानी बोसी सेन ने प्रार्थना सभा आयोजित कराई थी। सभा में एक डिबिया में सुरक्षित रखे स्वामी जी के कुछ बालों को कनाडा के कृषि विज्ञानी ग्लेन एंडरशन और उनके सिर पर रखा गया।
कामना की गई कि देश में खाद्यान्न की कमी को दूर करने संबंधी उनकी गेहूं परियोजना को सफलता मिले। संन्यास लेने के इच्छुक बोसी को स्वामी विवेकानंद के पहले शिष्य सदानंद (गुप्त महाराज) ने विज्ञान के क्षेत्र में ही आमजन केंद्रित शोध करने के निर्देश दिए थे। इसी निर्देश का पालन करते हुए वह अल्मोड़ा पहुंचे थे। जहां उन्होंने विश्व स्तरीय विवेकानंद कृषि अनुसंधान संस्थान की नींव रखी।
1963 में स्वीडन में आयोजित ह्वीट जेनेटिक्स सिम्पोजियम के दौरान कनाडा के कृषि विज्ञानी डा. ग्लेन एंडरसन की प्रतिभा से प्रभावित होकर डा. स्वामीनाथन ने उन्हें भारत बुलाया था। यहां पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश व बिहार के कृषि फार्मों का भ्रमण करने के बाद वह अल्मोड़ा स्थित डा. बोसी सेन की प्रयोगशाला में पहुंचे थे।2007 में प्रकाशित पुस्तक में डा. स्वामीनाथन ने बताया है कि जुलाई 1968 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के गेहं क्रांति (ह्वीट रिवोल्यूशन) पर डाक टिकट जारी करने के बाद उन्होंने इसकी सफलता के पीछे की आध्यात्मिक शक्ति को लेकर आभार व्यक्त किया था। पुस्तक के लेखक पूर्व उच्चायुक्त गिरीश एन मेहरा 1960 में अल्मोड़ा के उपायुक्त थे।
इस दौरान वह विज्ञानी बोसी के शोध कार्यों से प्रभावित हुए थे।स्वामी विवेकानंद का उत्तराखंड की धरती से खास लगाव था। हिमालय की गोद में बसेदेवभूमि की खूबियां ही कुछ ऐसी हैं जहां महान विभूतियों ने तपस्या की और आत्मज्ञान हासिल किया। दुनिया के लिए प्रेरणास्रोत महान संत स्वामी विवेकानंद अपने जीवन के अंतिम समय उत्तराखंड के लोहाघाट स्थित अद्वैत आश्रम में बिताना चाहते थे। देवभूमि में पांच बार आध्यात्मिक यात्रा कर चुके युगपुरुष की उत्तराखंड से कई स्मृतियां जुड़ी हैंहिमालय की चौथी यात्रा मई-जून 1898 में की थी।
इस बीच अत्यधिक श्रम के चलते उनका स्वास्थ्य खराब रहा। इस यात्रा के दौरान उन्होंने अल्मोड़ा के थॉमसन हाउस से प्रबुद्ध भारत पत्रिका का फिर से प्रकाशन आरंभ किया। 222 साल पुराने देवदार के वृक्ष के नीचे भगिनी को दीक्षा दी। इस यात्रा में उन्होंने रैमजे इंटर कॉलेज में पहली बार हिंदी में भाषण दिया था। उनके इस भाषण से लोग काफी प्रभावित हुए थे।उत्तराखंड में उनकी अंतिम यात्रा वर्ष 1901 में मायावती के अद्वैत आश्रम में हुई थी। आश्रम को बनाने वाले कैप्टन सेवियर की मृत्यु पर 170 किलोमीटर की दुर्गम यात्रा कर वह तीन जनवरी, 1901 को अद्वैत आश्रम लोहाघाट पहुंचे और 18 जनवरी, 1901 तक रहे। इस दौरान उन्होंने तप किया था।
जैविक खेती की बात की, आज भी आश्रम में जैविक खेती हो रही है।विवेकानन्द साल 1897 में उत्तराखंड आए। स्वामी विवेकानंद से प्रभावित होकर स्वामी करूणानंद ने 1916 में यहां आश्रम बनाया। साथ ही रामकृष्ण मिशन धर्मार्थ औषधालय भी शुरू किया गया। 1890 में स्वामी विवेकानंद कलकत्ता से से सीधे उत्तराखंड पहुंचे। नैनीताल से बद्रीकाश्रम की ओर जाते हुए तीसरे दिन कोसी नदी तट पर ध्यानमग्न हो गए। यहां पर उन्हें दिव्य अनुभूतियां हुईं। अल्मोड़ा के कसार देवी स्थित मंदिर में भी स्वामी विवेकानंद ने गहन साधना की थी।
1897 में उन्होंने देवलधार बागेश्वर में भी 47 दिन बिताए थे। चंपावत स्थित मायावती आश्रम की स्थापना स्वामी विवेकानंद के शिष्य ने की थी। ऋषिकेश स्थित चंद्रेश्वर महादेव मंदिर एवं कैलाश आश्रम में भी स्वामी विवेकानंद तपस्यारत रहे। कहा जाता है कि स्वामी विवेकानंद ने जहां-जहां साधना की, वहां आज भी अद्भुत ऊर्जा महसूस की जा सकती है। देश के विचारवान युवाओं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी आदि अनेकानेक लोगों के आदर्श स्वामी विवेकानंद ने आज के ही दिन यानी 11 सितंबर 1893 को शिकागो (अमेरिका) में आयोजित धर्म संसद में अपने संबोधन- ‘मेरे अमेरिका वासी भाइयो और बहनो से शुरू कर विश्व को चमत्कृत कर दिया था।
आज भारत को समूचे विश्व में पहली बार गौरवान्वित करने वाले उस दिन को 125 वर्ष पूरे हो गए हैं। स्वामी विवेकानंद युवाओ के प्रेरणास्रोत हैं। उनकी विचार धारा को युवाओं के समक्ष रखने के लिए पिछले 20 वर्षों से अनवरत कार्यक्रम किए जा रहे हैं। स्वामी का अपने जीवन काल में देश के युवाओं के प्रति अनुग्रह अधिक रहा हैं। उनके प्रत्येक भाषण में युवाओं के लिए कोई न कोई प्रेरणा सदैव रहती है।
वह भारतीय युवाओं की शिक्षा के लिए अत्यधिक गंभीर मुद्रा में कहते थे कि लक्ष्य विहीन हो रहे आज के भारतीय युवा जो भौतिक सुख के पीछे भागते हुए मानसिक तनाव और थकान झेल रहे हैं। इस अवस्था में स्वामी विवेकानंद क ओर से सुझाया गया आध्यात्मिक मार्ग बहुत ही कारगर साबित हो सकता है। भारत और दुनिया के युवाओं को प्रभावित करने वाले महापुरुषों में स्वामी विवेकानंद एक बड़ा नाम है। उनके शिकागो में वर्ष, 1893 में दिए गए भाषण ने उन्हें भारतीय दर्शन और अध्यात्म का अग्रदूत बना दिया। तब से लेकर आज तक उनके विचार युवाओं को प्रभावित करते रहे। स्वामी विवेकानंद का मानना था कि अधिकतर युवा सफल और अर्थपूर्ण जीवन जीना चाहते हैं, लेकिन अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए शारीरिक रूप से तैयार नहीं है। देवभूमि उत्तराखंड की इस जगह से था स्वामी विवेकानन्द को बेहद लगाव था.