उत्तराखंड को कई धार्मिक स्थानों और देवी-देवताओं के वास होने के कारण से ‘धरती पर स्वर्ग’ और ‘देव भूमि’ कहा जाता है, और यह कहना भी उचित है क्योंकि देवभूमि से जुड़ी पौराणिक कथाओं का जिक्र हमारे प्रसिद्ध ग्रंथों में किया गया है जिनके अनुसार, उत्तराखंड के गढ़वाल में हिमालय के बंदरपूंछ में स्थित ‘स्वर्गारोहिनी’ चोटी से ही स्वर्ग का रास्ता जाता है। क्योंकि इस रास्ते से पांडव स्वर्ग की और गए थे।
क्या है इस स्थान की विशेषता-
स्वर्गारोहिनी विश्व विख्यात तीर्थस्थल है। उत्तराखंड में चमोली जिले में स्थित ऊंचाई -17,987 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ आने वाले तीर्थयात्रियों का कहना है कि इस स्थान पर देवीय नूर है यहाँ की खूबसूरती भी सर्वोपरि है। यहां अपार शांति और स्वर्ग में होने का एहसास प्राप्त होता है। उत्तराखंड से स्वर्गारोहिनी तक का रास्ता काफी कठिन है। साथ ही यह पूरा स्थान बर्फ से ढके होने के कारण इसकी खूबसूरती में चार-चांद लगाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार स्वर्गारोहिणी ही एकमात्र ऐसा मार्ग है जहां से मनुष्य मानव रूप में स्वर्ग तक पहुंच सकता है।
पांडवों की स्वर्ग यात्रा-
श्री कृष्ण सहित पूरे यदुवंशियों के मारे जाने से दुखी पांडव भी परलोक जाने का निश्चय करते है और इस क्रम में पांचो पांडव और द्रोपदी स्वर्ग पहुँचते है। जहां द्रोपदी, भीम, अर्जुन, सहदेव और नकुल शरीर को त्याग कर स्वर्ग पहुँचते है वही युधिष्ठिर सशरीर स्वर्ग पहुँचते है। यात्रा करते-करते पांडव हिमालय तक पहुंच गए। हिमालय लांघ कर पांडव आगे बढ़े तो उन्हें बालू का समुद्र दिखाई पड़ा। इसके बाद उन्होंने सुमेरु पर्वत के दर्शन किए।
स्वर्ग जाने के रास्ते में सरस्वती नदी ने पांडवों की यात्रा रोक दी पांडवों ने सरस्वती से रास्ता मांगा लेकिन सरस्वती माता ने रास्ता देने से इन्कार कर दिया फिर बलशाली भीम ने 2 बड़े पत्थर के खण्ड उठाकर नदी पर पुल बना दिया था जिसमे होकर पांडवो ने आगे का रास्ता शुरू किया था यह रास्ता बहुत ही कठिन था।
पांचों पांडव, द्रौपदी तथा वह कुत्ता तेजी से आगे चलने लगे। तभी द्रौपदी लड़खड़ा कर गिर पड़ी….द्रौपदी को गिरा देख भीम ने युधिष्ठिर से कहा कि- द्रौपदी ने कभी कोई पाप नहीं किया। तो फिर क्या कारण है कि वह नीचे गिर पड़ी। युधिष्ठिर ने कहा कि- द्रौपदी हम सभी में अर्जुन को अधिक प्रेम करती थीं। इसलिए उसके साथ ऐसा हुआ है। ऐसा कहकर युधिष्ठिर द्रौपदी को देखे बिना ही आगे बढ़ गए।
थोड़ी देर बाद सहदेव भी गिर पड़े। भीमसेन ने सहदेव के गिरने का कारण पूछा तो युधिष्ठिर ने बताया कि सहदेव किसी को अपने जैसा विद्वान नहीं समझता था, इसी दोष के कारण इसे आज गिरना पड़ा है। कुछ देर बाद नकुल भी गिर पड़े। भीम के पूछने पर युधिष्ठिर ने बताया कि नकुल को अपने रूप पर बहुत अभिमान था। इसलिए आज इसकी यह गति हुई है।
थोड़ी देर बाद अर्जुन भी गिर पड़े। युधिष्ठिर ने भीमसेन को बताया कि अर्जुन को अपने पराक्रम पर अभिमान था। अर्जुन ने कहा था कि मैं एक ही दिन में शत्रुओं का नाश कर दूंगा, लेकिन ऐसा कर नहीं पाए। अपने अभिमान के कारण ही अर्जुन की आज यह हालत हुई है। ऐसा कहकर युधिष्ठिर आगे बढ़ गए।
थोड़ी आगे चलने पर भीम भी गिर गए। जब भीम ने युधिष्ठिर से इसका कारण तो उन्होंने बताया कि तुम खाते बहुत थे और अपने बल का झूठा प्रदर्शन करते थे। इसलिए तुम्हें आज भूमि पर गिरना पड़ा है। यह कहकर युधिष्ठिर आगे चल दिए। केवल वह कुत्ता ही उनके साथ चलता रहा।
युधिष्ठिर कुछ ही दूर चले थे कि उन्हें स्वर्ग ले जाने के लिए स्वयं देवराज इंद्र अपना रथ लेकर आ गए। तब युधिष्ठिर ने इंद्र से कहा कि- मेरे भाई और द्रौपदी मार्ग में ही गिर पड़े हैं। वे भी हमारे हमारे साथ चलें, ऐसी व्यवस्था कीजिए। तब इंद्र ने कहा कि वे सभी पहले ही स्वर्ग पहुंच चुके हैं। वे शरीर त्याग कर स्वर्ग पहुंचे हैं और आप सशरीर स्वर्ग में जाएंगे। इंद्र की बात सुनकर युधिष्ठिर ने कहा कि यह कुत्ता मेरा परम भक्त है। इसलिए इसे भी मेरे साथ स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिए, लेकिन इंद्र ने ऐसा करने से मना कर दिया।
काफी देर समझाने पर भी जब युधिष्ठिर बिना कुत्ते के स्वर्ग जाने के लिए नहीं माने तो कुत्ते के रूप में यमराज अपने वास्तविक स्वरूप में आ गए (वह कुत्ता वास्तव में यमराज ही थे)। युधिष्ठिर को अपने धर्म में स्थित देखकर यमराज बहुत प्रसन्न हुए। इसके बाद देवराज इंद्र युधिष्ठिर को अपने रथ में बैठाकर स्वर्ग ले गए। यही जगह ‘स्वर्गारोहिणी’ के नाम से विख्यात हो गई।