उत्तराखंड के एक पूर्व सरकारी अधिकारी की मेहनत रंग लाई तो एक बेशकीमती जंगल तैयार हो गया। अब इस जंगल के बीचों बीच रेलवे स्टेशन का काम होना है लेकिन जब इस जमीन की कीमत का हिसाब किताब हुआ तो मानो रेलवे अधिकारियों के पसीने छूट गए। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन के लिए सर्वे के दौरान मथेला में एक बड़ा रेलवे स्टेशन बनाने का फैसला किया था। इस लाइन की जद में पूर्व सरकारी अधिकारी अनिल किशोर जोशी की जमीन भी आ गई। जिन्होंने 34 लोगों की उपजाऊ भूमि को बाकायदा एक एग्रीमेंट के तहत लेकर वहां सात लाख शहतूत और तीन लाख अन्य फलों के पौधे लगाए। अब वो सब पेड़ बन चुके हैं ओर खूब फलों की खेती हो रही है।
जोशी के जंगल में 7 लाख से ज्यादा शहतूत के और बाकी 3 लाख में कुछ संतरे, आम और अन्य फलों के पेड़ है। नियम के अनुसान जिसकी जमीन होती है मुआवजा उसे ही मिलता है। नियमों के तहत एक फलदार पेड़ खासकर संतरे के प्लांट की कीमत 2196 रुपये बनती है इसमें शहतूत के वृक्षों की कीमत बहुत कम लगाई गई थी इसलिए हाई कोर्ट तक मामला पहुँच गया। सुनवाई के दौरान जज ने उद्धान विभाग से पूछा कि क्या शहतूत के पेड़ को फलदार माना जा सकता है तो विभाग ने उसे फलदार वृक्ष माना। यानी उसका मुआवजा भी बाकी फलदार प्लांट के बराबर होगा। फिलहाल मामला ट्राइब्यूनल में हैं जिसमें जज अभी नियुक्ति नहीं हुए हैं। इसलिए मामला फंसा हुआ है। लेकिन फिलहाल यह कह सकते हैं कि अनिल जोशी की मेहनत से जुड़ी यह खबर सोशल मीडिया पर दमदार तरीके से फ़ैल गई है। अब रेलवे नई लाइन बिछाने के लिए अगर इन पेड़ों को काटता है तो उसे 400 करोड़ का मुआवजा देना होगा। यह एक बड़ी रकम होती है, जिसके लिए रेलवे के अधिकारियों के पसीने छूटे हुए हैं।