उत्तराखंड विकास कर रहा है जी हाँ जरूर विकास कर रहा है लेकिन सही दिशा से नहीं भटकी हुआ दिशा से बहुत विकास हो रहा है जरा गौर कीजिए, उत्तराखंड से जुड़ी खबरों का संसार कितनी तेजी से बदल रहा है। देवभूमि की पहचान वाले इस प्रदेश का मिजाज बेहद शांत और आध्यात्मिक प्रवृति का है, जिसमें अपराध की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती, लेकिन कुछ लोगों ने देवभूमि का अफराद का ऐसा अड्डा बना दिया है कि जानकर हर उत्तराखंडी का खून खोल उठेगा।
कुर्सी की सियासत, घपले-घोटाले, खनन, शराब व जमीन के कारोबार में पनपते माफिया, कर्मचारियों के आंदोलन, मास्टरों और डाक्टरों की कमी का रोना, कमीशनखोरी, सड़क दुर्घटना और छोटे-मोटे अपराधों की खबरों तो रोज ही सुनी जाती हैं, लेकिन क्या आपको एक बात का कुछ समय से अंदेशा हुआ है, उत्तराखंड में बालात्कार, अफहरण के मामलों में भारी इजाफा हुआ है। इतना ही नहीं यहां तो मुख्य राष्ट्रीय राजमार्ग पर छोटे से अस्पताल में किडनी निकालने का गोरखघंधा भी खूब फल फूल जाता है।
सरकारें आती हैं और जाती हैं लेकिन जनता की आम समस्या कभी नहीं सुनी जाती, क्यों भाई ? पलायन और रोजगार को हटा दो साहब ये तो सायद ही एक पहेली रहेगी, ये बताओ जरूरतमंद गावों को सड़क क्यों नहीं मिलती? आज वो लोग आन्दोलन करके दर दर भटकने को क्यों मजबूर हैं, क्यों सालों पुराने वायदे भूल गयी सरकार? कहाँ जाता है घोषणाओं का पैसा? पानी की समस्या आज भी क्यों है अभिशाप? किसान क्यों कर रहे आत्महत्या? कई गांव अँधेरे में हैं, जबकि प्रदेश कई हाजार करोड़ के ऋण में ढूब चूका है।
चलो ये तो विकास की बात है लेकिन कम से कम प्रदेश में शासन व्यवस्था तो सही हो? नकली दवाइयों का कारोबार, ड्रग्स, हत्या, नकली नोट, नकली शराब, जिस्मफरोशी और ब्लैकमेलिंग जैसे अफराद क्यों इतनी तेजी से बढ़ रहे हैं? धर्म की नगरी में क्या क्या हो रहा है कोन दे रहा इन्हें पनाह? क्या इन सब पर लगाम लागाना सरकार के हाथ से बाहर है ?
उत्तराखंड दो-दो अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से लगे प्रदेश की स्थितियां भयावह जरूर हैं लेकिन हमें अपनी सेना पर भी भरोषा करना चाहिए, कई आन्तरिक सीमाएं भी हैं अब प्रदेश में सहारनपुर जिले को मिलाने की बात भी आगे बढ़ाई जा रही क्यों भाई अफराद में कमी आ गयी है जो ऐसे खोफनाक जिले को उत्तराखंड का हिस्सा बनाये जाने की वकालत की जा रही है? आज वह प्रदेश ये कहां पहुंच गया है? आज कौन सा अवैध कारोबार है जिसकी प्रदेश में जड़ें न जमी हो?
नशे का कारोबार इस प्रदेश में किस कदर गहरी जड़ें जमा चुका है इसका अंदाजा इसी बात लगाया जा सकता है कि आए दिन अंतर्राष्ट्रीय बाजार में करोड़ों रुपये कीमत की स्मैक, हेरोइन और अन्य नशीली सामग्री बरामद हो रही है। कभी नैनीताल, कभी देहरादून तो कभी मसूरी, हर जगह नशे का व्यापार पसरा हुआ है। इस कारोबार के जो सरगना हैं, वो गिरफ्त से बाहर हैं।
आपने देखा होगा अब तो प्रदेश में खुले-आम हत्याएं भी होने लगी हैं। खुलेआम लड़कियां अफवाह की जा रही हैं और उनके साथ दुष्कर्म जैसे घिनोने अफराध किये जा रहे हैं, सवाल ये है कि ये बदलती सुर्खियां समाज को, व्यवस्था को डराती नहीं है? इस 18 सालों में विकास को देखने के लिए कुछ भी नहीं दिखा है लेकिन बढ़ते अफराध साफ़ दिख रहे हैं, यही हाल रहे तो भविष्य क्या होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
क्या ऐसे में देवभूमि की पहचान बरकरार रह पाएगी? सवाल बेहद गंभीर है। और इसके लिए दोषी कोई एक सरकार या महकमा विशेष नहीं बल्कि पूरा समाज और पूरी व्यवस्था है, छोटे-छोटे मुद्दों पर सियासत करने वाले लोग, आंदोलन करने वाले लोग, धरना प्रदर्शन करने वाले लोग क्यों नहीं इन घटनाओं पर संजीदगी दिखाते? सरकारों को क्यों नहीं ये चिंता सताती कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए सिस्टम को तैयार किया जाए?
आज भले ही प्रदेश का हुन्नर का दुनिया लोहा मान रही हो लेकिन उत्तराखंड की अन्दरोनी हालात तो किसी से बयान नहीं की जा सकती है, पहाड़ों पर वापिस लौटना हर कोई चाहता है लेकिन सरकार की कई गलत नीतियों के कारण आज हर ग्रामीण गांव छोड़ शहर भागने को मजबूर हो गया है। सरकार की गलत नीति को समझने में देर लगेगी जनाब दरअसल गावों में सरकार शिक्षा, रोजगार, पेयजल व्यवस्था, सड़क जैसी मूलभूत सुविधा जनता को नहीं दे पा रही है। कमाल है जब तक मूल नहीं समझोगे तो समस्या कैसे निपटेगी? विकास जरूर सरकार कर रही है ये हम भी मानते हैं लेकिन आम आदमी का नहीं, वो वहीँ रहेगा उसकी हमेशा वो ही समस्या रहेगी और सरकारें हमेशा विकास का डिंडोरा पिटती फिरेंगी? ')}