केदारनाथ धाम में पुर्निर्माण कार्य जोरों पर हैं, इस साल के अंत तक केदारनाथ दर्शनीय स्थल होने के साथ साथ स्मार्ट धाम बनने जा रहा है। सुविधाओं के मामले में यात्रियों को यातायात की सुविधा तो नहीं मिलेगी लेकिन उन्हें दी जानी वाली विशेष सुविधाएं रोमांचित करने वाली हैं। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि केदारनाथ पुनर्निर्माण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल है।
गौरीकुंड से केदारनाथ तक रोपवे निर्माण के साथ ही यहां बिजली की लाइनें भूमिगत की जाएंगी और संचार नेटवर्क को बेहतर किया जा रहा है। केदारनाथ में पुनर्निर्माण कार्य सीधे प्रधानमंत्री की देखरेख में चल रहे हैं। इस कार्यों में पर्यावरण सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा जा रहा है। भारी हिमपात में नेहरू इंस्टीच्यूट ऑफ माऊंटेनरिंग (एनआईएम) के अधिकारी लगातार काम कर रहे हैं।
केदारनाथ धाम में मंदिर को छोड़कर सब कुछ बदल जायगा, धाम में खुबसूरत पत्थरों को तराशकर रास्ते बनाये जा रहे हैं, बिक्लांग यात्रियों के लिए अलग सी पैदल मार्ग का निर्माण किया जा रहा है। तीन स्तरीय सुरक्षा घेरे का निर्मार्ण भी पूरा हो चूका है, ताकि भविष्य में बाढ़, भूस्खलन, भूकंप जैसी आपदा से प्राचीन मंदिर को सुरक्षित रखा जा सके। साथ ही तीर्थस्थल के दोनों ओर सरस्वती और मंदाकिनी नदियों के तट पर कई घाट बन रहे हैं, ताकि पानी के बहाव तक तीर्थयात्रियों की निर्बाध पहुंच को सीमित किया जा सके।
पुनर्निर्माण योजना में दोनों नदियों के किनारे तीर्थयात्रियों के रुकने ठहरने और अन्य सुविधाओं के लिये जमीन की सतह से निर्धारित ऊंचाई पर ही निर्माणकार्य सुनिश्चित किया गया है। प्रत्येक इमारत का निर्माण नदी के बहाव की दिशा में ही हो रहा है। समुद्रतल से लगभग 11 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ धाम के लिये संशोधित पुनर्निर्माण योजना में पर्यावरण एवं पारिस्थितिकीय तंत्र की चिंताओं का पूरा ध्यान रखा गया है। साथ ही मौसम पर निगरानी के लिये चोराबारी क्षेत्र में दो निगरानी टावर बनाए भी बनाये जाने हैं।
मंदिर परिसर में मुख्य इमारत के चारों ओर 50 मीटर के दायरे में कोई भी निर्माणकार्य नहीं होगा, जिससे निर्माणकार्य की विघ्नबाधा से मुक्त रखने के लिये समूचे परिसर को पूरी तरह से खुला रखा जा सके। इसका मकसद भगदड़ जैसी स्थिति से बचना है। हर साल लगभग सात लाख तीर्थयात्री केदारनाथ के दर्शन के लिये आते हैं। संशोधित योजना में साधकों को ध्यान एवं योग साधना के लिये मंदिर परिसर के आसपास गुफायें और एक संग्रहालय बनाने का भी प्रावधान किया गया है। लगभग 1500 करोड़ रुपये की लागत वाली इस योजना को राज्य सरकार की भागीदारी से पांच साल में पूरी तरह तैयार करना है, जिस तरह से कार्य प्रगति पर है और काम निगरानी में किया जा रहा है लगता है समय सीमा से पहले ही यह कार्य पूरा कर लिया जाएगा। ')}