उत्तराखंड के गंगोलीहाट के गांव भुवनेश्वर में पाताल भुवनेश्वर गुफा स्थित है। गंगोलीहाट से यह मात्र 14 किमी दूरी पर है यह गुफा पिथौरागढ़ जिले में मौजूद है। पौराणिक कथा और लोकगीतों में इस भूमिगत गुफा के बारे में कहा जाता है कि यहां भगवान शिव और तैंतीस करोड़ देवता विद्यमान हैं। यह गुफा प्रवेश द्वार से 160 मीटर लंबी और 90 फीट गहरी है पाताल भुवनेश्वर में गुफा में आपको कई ऐसे दृश्य देखने को मिलते हैं जिन्हें देखने के बाद इंसान सोचने पर मजबूर हो जाता है।
गुफा के अंदर जाने के लिए लोहे की जंजीरों लगी हुईं है। गुफा में शेष नाग को पृथ्वी पकड़े देखा जा सकता है।इस गुफा में चार खंभा है जो चार युगों अर्थात सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलियुग को दर्शाते हैं। इनमें पहले तीन आकारों में कोई परिवर्तन नही होता। जबकि कलियुग का खंभा लम्बाई में अधिक है और इसके ऊपर छत से एक पिंड नीचे लटक रहा है, जिसमें एक गहरा रहस्य छुपा है मान्यता है कि जब कलियुग का खम्बा छत से मिल जायेगा उस दिन ये दुनिया समाप्त हो जाएगी।
इस गुफा में एक हजार पैर वाला हाथी भी बना हुआ है ऐसी मान्यता है कि इस गुफा में एक साथ केदारनाथ, बद्रीनाथ, अमरनाथ के दर्शन होते हैं। इसे दुर्लभ दर्शन माना जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार त्रेता युग में अयोध्या के सूर्यवंशी राजा ऋतुपर्ण द्वारा यह गुफा खोजी गई। मान्यता है कि रानी दमयंती ने एक बार राजा नल को पराजित किया और रानी दमयंती के रोष से बचने के लिए राजा नल ने ऋतु पर्ण से याचना की कि वह उसे उसकी पत्नी दमयंती से बचाये। ऋतुपर्ण राजा नल को हिमालय के सघन वन क्षेत्र में ले गये और वहां रुकने के लिए कहा। वापसी में राजा ऋतुपर्ण को एक हिरण के सौन्दर्य ने मोह लिया, जो घने जंगलों में भाग गया। उन्होंन हिरण का पीछा किया किन्तु वह कहीं नहीं मिला। थक कर वह एक पेड़ के नीचे लेट गये।
सपने में उसी हिरण ने राजा ऋतुपर्ण से कहा कि वह उसका पीछा करना छोड़ दें। नींद टूटी तो उन्होंने अपने को एक गुफा के मुहाने पर पाया। फिर वे गुफा के भीतर जाने के लिए बढ़े तो द्वारपाल ने रोक दिया। परिचय के उपरान्त वहां विराजमान शेषनाग जी ऋतुपर्ण को अपने फन पर बिठाकर गुफा में ले गये और उन्हें उस दिव्यलोक के दर्शन कराये जहां पर तैंतीस करोड़ देवी देवता विराजमान थे।
द्वापर में कुरुक्षेत्र युद्ध के पश्चात अपने गुरुजनों एवं बंधु बांधवों की हत्या के पाप से बचने के लिए पाण्डवों ने हिमालय में प्रस्थान किया। यहां से गुजरते हुए पाण्डवों ने गुफा में कुछ दिन भगवान शिव की आराधना की। माना जाता है कि तत्पश्चात गुफा तब खुली जब आठवीं सदी में कत्यूरी शासनकाल के दौरान आदि शंकराचार्य यहा आये थे उन्होंने यहाँ शिव की पूजा अर्चना की और यहाँ पर चांदी का एक शिवलिंग भी स्थापित किया।
गुफा के अंदर यह है गणेश जी का सिर जो इस कथा की याद दिलाता है कि भगवान शिव ने गणेश जी का सिर काट दिया था। कहतें हैं कि एक बार भगवान शिव ने क्रोधवश गणेशजी का सिर धड़ से अलग कर दिया था, बाद में माता पार्वतीजी के कहने पर भगवान गणेश को हाथी का मस्तक लगाया गया था, लेकिन जो मस्तक शरीर से अलग किया गया, वह शिव ने इस गुफा में रख दिया था।
पाताल भुवनेश्वर के बारे में स्कन्ध पुराण के मानस खण्ड में विस्तृत विवेचना की गई है कि जो भी मनुष्य उस अलौकिक पारब्रह्म के अस्तित्व को लेकर थोड़ी सी भी शंका करता है उसे पाताल भुवनेश्वर के दर्शन अवश्य कर लेना चाहिए प्रकृति के इस रूप को निकट से देखने से मन में रोमांच भर जाता है।
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