समुद्र तल से 1676 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मां कुंजापुरी मंदिर एक पौराणिक एवं पवित्र सिद्ध पीठ है। टिहरी जिले में चंबा मार्ग स्थित हिंडोलाखाल से हरे भरे जंगलों से होते हुए अदली में इस सिद्धपीठ के दर्शन होते हैं। नवरात्रि सीज़न में यहां पर्यटकों की भारी संख्या रहती है। इस साल नवरात्रि में नौ दिन का सिद्धपीठ कुंजापुरी पर्यटन व विकास मेले का आयोजन होगा जहां दूर-दूर से लोग आएंगे। मंदिर समिति द्वारा श्रद्धालुओं को भी हर संभव सुविधाएं प्रदान की जाती है। आने वाले चैत्र नवरात्रों में आप भी यहां आकर मा कुंजापुरी के दर्शन कर भारतीय संस्कृति की अनुपन आस्था और विश्वास को नजदीक से जरूर देखें।
कुंजापुरी मंदिर की दूरी नरेंद्र नगर से सिर्फ 7 किमी, ऋषिकेश से 15 किमी और देवप्रयाग से 93 किमी है। सड़क मार्ग से यहां पहुंचा जा सकता है। 308 सीढ़ियां चढ़कर माता के दर्शन होते हैं। मंदिर में पहुंचकर आप हिमालय पर्वतमाला के सुंदर दृश्य हिमालय के स्वर्गारोहनी, गंगोत्री, बंदरपूँछ, चौखंबा और भागीरथी घाटी के ऋषिकेश, हरिद्वार और दूनघाटी के दृश्य देख सकते हैं। इस मन्दिर से सूर्योदय और सूर्यास्त का बहुत ही सुन्दर दृश्य दिखाई देता है। मंदिर परिसर में “सिरोही” का एक वृक्ष है , जिस पर भक्तगण देवी मां से मन्नत मांगकर चुन्नियां तथा डोरियां बांधते हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना जगद्गुरु शंकराचार्य ने की थी।
क्यों पड़ा कुंजापुरी नाम-
शक्ति पीठ उन जगहों पर हैं जहां भगवान् शिव द्वारा बाहों में हिमालय की ओर ले जा रहे देवी सती (भगवान् शिव की पत्नी एवं राजा दक्ष की पुत्री) के मृत शरीर के अंग गिरे थे देवी सती के पिता राजा दक्ष के द्वारा भगवान शिव के बारे में अपमानजनक बातें सुनने पर सती यज्ञ कुण्ड में जल गई थी, जब भगवान शिव को सती की मृत्यु का पता चला तो वे शोक में चले गए और सटी के पार्थिव शरीर को लेके हिमालय की ओर निकल पड़े, शिव की उदासीनता को तोड़ने और सृष्टी को बचाने के लिए भगवान् विष्णु ने शिव द्वारा ले जा रहे सती के शरीर को सुदर्शन चक्र से काट दिया जिससे सती के अंग 51 भागों में विभाजित होकर पहाड़ियों पर गिर गए थे।
इस स्थान पर देवी सती का वक्षभाग (कुंज) गिरा था , जिस कारण इस स्थान का नाम “कुंजापुरी” पड़ा। इस मंदिर की विशेष बात यह है कि कुंजापुरी देवी मंदिर में भंडारी राजपूत पुजारी होते है। यह मन्दिर भक्तों की अटूट आस्था का केन्द्र है। कहा जाता है कि यहां आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।