मां सुरकंडा देवी मन्दिर उत्तराखंड के टिहरी जिले के चम्बा से 20 किलोमीटर दूर ओर कादुलखाल से मात्र 2 किलोमीटर पैदल दूरी पर स्थित है। यह मन्दिर समूद्र तट से 2757 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस मन्दिर से उत्तराखंड की हसीन वादियों के नजारे मन को शान्त करते हैं कल कल हवा के झोंके माता का आशिर्वाद अपने भक्तों पर बरसातें हैं।
यहां इस मन्दिर परिसर मे भगवान शिव ओर हनुमान को समर्पित मन्दिर की भी स्थापना की गई है। हर साल मई के महिनेमे यहां गंगा दशहरा पर्व का हर्सो उल्लास के साथ आयोजन किया जाता है यहां हर साल लाखों की संख्या मे श्रद्धालु आते हैं माता का आशिष लेने के लिऐ लोग माता के ऊंचे मन्दिर की चढाई बिना थकान चड़ते हैं।
यह एक प्रमुख तीर्थस्थल के साथ सुन्दर पर्यटक स्थल भी है। मन्दिर के नजदीक ही होटल आदि की प्रयाप्त व्यस्थाऐं हैं। यहां पहुंना जैसे स्वर्ग में पहुँच जाने के समान है, इतना शांत, इतना मनोहर, इतना खूबसूरत हर कोई सोचता है जन्नत तो यहीं है हम कहा कहा भटक गए।
राजा दक्ष की पुत्री सती का विवाह भगवान शिव से हुआ था। त्रेता युग में दानवों की पराजय के बाद राजा दक्ष को देवताओं का प्रजापति चुना गया। उन्होंने कंखाल में एक यज्ञ का आयोजन कर इसे मनाया। चूंकि भगवान शिव ने दक्ष को प्रजापति बनाने का विरोध किया था, इसलिए दक्ष ने भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया।
अपने घर कैलाश शिखर से शिव और सती ने सभी देवताओं को जाते हुए देखा तब उन्हें मालूम हुआ कि उन दोनों को निमंत्रित नहीं किया गया था। सती अपने पति का यह अपमान देखकर यज्ञ स्थल पर गई और हवन कुंड में स्वयं को स्वाहा कर दिया। जब तक शिव वहां पहुंचे, वह जलकर सती हो चुकी थी।
भगवान शिव ने हवन कुंड से सती के शव को अपने कंधे पर रखकर चल पडे। वर्षों तक वे क्रोध एवं चिंतामग्न होकर घूमते रहे। इस संकटपूर्ण स्थिति पर विचार करने के लिए सभी देवताओं की एक बैठक हुई क्योंकि वे जानते थे कि भगवान शिव अपने क्रोध से संसार को नष्ट करने की क्षमता रखते हैं।
अंत में, यह तय हुआ कि भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल करें। शिव की जानकारी के बिना ही भगवान विष्णु ने सती के शव को 52 टुकडों में सुदर्शन चक्र से काट दिया। जहां कहीं भी भूमि पर यह टुकडा गिरा वह सिद्ध पीठ या शक्ति पीठ बन गया।
जहां सती की गर्दन गिरी सुरकंडा देवी का मंदिर बना, इसी प्रकार जहां उनके शरीर का निचला भाग गिरा चन्दबदनी देवी और जहां उनके शरीर के ऊपर का भाग गिरा कुंजा देवी मंदिर स्थापित हुआ ये तीनों मंदिर इस क्षेत्र के धार्मिक त्रिकोण हैं और एक-दूसरे से अवलोकित भी हैं। ')}