देहरादून : उत्तराखण्ड राज्य के निर्माण का मकसद था कि यहाँ की जनता की अपनी सरकार हो व हमारी बात आसानी से अपने हुक्मरानों तक पँहुच जाए, कई लंबे आंदोलन व संघर्ष के बूते राज्य निर्माण हुवा, जिसमे 42 शहादते भी दी गयी। राज्य निर्माण हुवा, लेकिन परिस्थिति 8 नवम्बर 2000 से ही राज्य के खिलाफ होनी शुरू हो गयी, जब 9 नवम्बर 2000 हेतु पहले गिफ्टेड मुख्यमंत्री के लिए उत्तराखण्ड के लालची नेताओं ने राज्य की अवधारणा व आंदोलन में जान देने वालों की परवाह किये बगैर सीएम के लिए दावे जताने शुरू कर दिए। जो बदस्तूर आज (25 फरवरी 2020) तक जारी है , पहाड़ की हम जैसी साधारण जनता इनके लालच पर वगैर ध्यान दिए, इसी में खुश हो गयी कि हमे राज्य मिल गया। लेकिन सत्ता के संपोलों ने 8 नवम्बर 2000 की पटकथा को आज तक भी जारी रखा और अपने निजी स्वार्थ के लिए पहाड़ की साधारण जनता को बरगलाने में कामयाब होते रहे।
आज स्थिति ऐंसी हो गयी कि उत्तर प्रदेश में रहते हुए जो सम्मान व इज्जत पहाड़ों के निवासियों को मिलती थी वह आज उत्तराखण्ड में नही दिखती। फायदा सिर्फ चंद सत्ता के जोंको को हुवा व उनके कुछेक चाटुकार इसका फायदा उठाने में कामयाब हो गए, वर्तमान में राज्य किस ओर जा रहा है इस पर चिंतन तो हरेक कर रहा है लेकिन समाधान किसी के पास नही है। दिल्ली के आशीर्वाद की सरकार कुछ करने का मन भी बनाती है लेकिन उसकी कुर्सी जो पहले से ही तीन टांगों पर है, उसे खींचने के लिए उसके अपने लाइन में खड़े हैं।
हाल ही में 16 फरवरी को फारेस्ट गॉर्ड की भर्ती परीक्षा हुई जिसमें धांधली के आरोप लगे हैं, ऐंसे में परीक्षा कराने वालों की जिम्मेदारी बनती है कि गलती क्यों हुई? धुंवा उठने का मतलब होता है कि चिंगारी कहीं न कहीं रही होगी, इस पोस्ट में इसका संदर्भ इसलिए लिया कि राज्य में उच्च पदों पर बैठे अस्थायी अध्यक्ष या प्रबन्ध निदेशक राज्य को व्यक्तिगत आय अर्जित करने का साधन समझ बैठ हैं और सबकुछ देखते हुए भी कड़क छवि के मुखिया इनपर लगाम नही लगा पा रहे है यह समझ से परे है।
जब एक अधिकारी रिटायर हो गया तो उसको संविदा या अन्य माध्यम से उच्च निर्णायक पदों पर नही बिठाना चाहिए, कारण वह अपनी सर्विस की सारी सुविधाएं पेंशन आदि प्राप्त कर चुका होता है इसलिए वो कोई गलती कराता भी है तो भी सरकार उसका कुछ नही बिगाड़ सकती, राज्य के निगमों की हालत खराब करवाने में भी ऐंसे ही नियुक्तियां जिम्मेदार रही, सेटिंग से अयोग्य या प्राइवेट सेक्टर के व्यक्ति को बाहर से लाकर निगम के उच्च पदों पर बिठाना निगम का भट्टा बिठाना जैंसे है।
यदि सरकार आयोगों , निगमों या किसी प्राधिकरण में कोई नियुक्ति कर ही रही है और आईएएस बिठाना अति आवश्यक है तो किसी भी सरकारी विभाग में सेवारत अधिकारी को प्रतिनियुक्ति या विभागीय अधिकारी को यह जिम्मेदारी दी जानी चाहिए, जिससे वह कोई गलती करने से पूर्व यह अवश्य सोचेगा कि जिंदगी भर की नौकरी पर दांव न लगायी जाए, वरना संविदा पर नियुक्त मुखिया तो घोटाला करके झोला उठा कर चल देगा। इसलिए राज्य को संविदा या पुनर्नियुक्ति (उच्च अधिकारियों) का अड्डा न बनाये।