उत्तराखंड की दो बेटियाँ कुशिका शर्मा और कनिका शर्मा ने अपनी अच्छी ख़ासी मोटी तनख़्वाह की नौकरी को तवज्जो ना देकर रुख किया अपने गाँव का। दिल्ली जैसे महानगर की सुख सुविधाएं सिर्फ इसलिए छोड़ दी ताकि पहाड़ों को फिर से जीवन दे सकें। जी हाँ कुशिका और कनिका शहर में रहकर अपनी जिंदगी बड़े आराम से गुजार रही थीं लेकिन उन्होंने अनुभव किया कि रोज की भागदौड़ में वो सुकून नहीं था जो पहाड़ की वादियों में था। दोनों बहनों ने तय किया कि वो सब कुछ छोड़कर उत्तराखंड में बसे अपने गाँव मुक्तेश्वर में जाकर गाँव की प्रगति में अपना योगदान देंगी।
परिवार का समर्थन मिला और उन्होंने गाँव जाकर रास्ता चुना ऑर्गेनिक खेती के प्रति जागरूकता लाने का। मुक्तेश्वर जाकर दोनों बहनों ने ‘दयो – द ओर्गानिक विलेज रिसॉर्ट‘ का शुभारंभ किया और स्थानीय लोगों को जैविक खेती के प्रति जागरूक करने लगी। साथ ही अब दोनों बहनों की कोशिश अपना कार्यक्षेत्र विस्तारित करने की है ताकि उत्तराखंड के अन्य गाँवों को भी जागरूक किया जा सके। साथ वे अब कृषि उत्पादों को बेचने के लिये सप्लाई चेन बनाने की भी योजना पर कार्य कर रही हैं।
कुशिका और कनिका ने अपनी स्कूली शिक्षा उत्तराखंड के नैनीताल और रानीखेत से पूरी की। स्कूली शिक्षा पूर्ण होने के बाद कुशिका ने एम.बी.ए करने का निर्णय लिया। एम.बी.ए करने के बाद कुशिका ने करीब चार साल तक गुड़गांव की एक मल्टी नेशनल कंपनी में बतौर सीनियर रिसर्च एनालिस्ट के रूप में कार्य किया। तो वहीं दूसरी ओर उनकी बहन कनिका ने दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया से अच्छे अंको के साथ मास्टर्स की डिग्री हासिल की जिसके बाद कनिका को हैदराबाद में आंत्रप्रेन्योरशिप में स्कॉलरशिप मिल गई। अपने-अपने कार्य क्षेत्रों में दोनों बहनों को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ काम करने का अवसर मिला।
एक दिन विचार के बाद दोनों बहनों ने अपने गाँव के शांतिपूर्ण स्वच्छ वातावरण में रहते हुए जैविक खेती करने का दृढ़ निश्चय किया और अपनी नौकरी को अलविदा बोल कर अपने परिवार के साथ अपने गांव मुक्तेश्वर आ गयी। अपने गाँव में जैविक खेती के विकास के संकल्प को लेकर कुशिका व कनिका ने किसानों से बात करने से पहले स्वयं जैविक खेती और जीरो बजट खेती कैसे की जाती है इसका प्रशिक्षण लेना प्रारम्भ किया। इस तरह की खेती के प्रशिक्षण के दौरान दोनों ने दक्षिण भारत व गुजरात के कई राज्यों का दौरा किया। पूर्ण प्रशिक्षण लेने के बाद साल 2014 में दोनों बहनों ने मिलकर मुक्तेश्वर में 25 एकड़ जमीन पर खेती का कार्य शुरू किया। साथ ही अन्य लोगों का रुख गाँवों की ओर करने हेतु ‘दयो – द ओर्गानिक विलेज रिसोर्ट’ की स्थापना की।
दयो – द ऑर्गेनिक विलेज रिसोर्ट को सैलानियों से बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। 5 कमरों वाले मुक्तेश्वर के इस रिसोर्ट में कमरों का नामकरण भी किया गया है जो संस्कृत भाषा से लिए गए प्रकृति के पांच तत्वों पर आधारित है। रिसोर्ट के कमरो के नाम है उर्वी, इरा, विहा, अर्क और व्योमन। यह अपने आप में अनोखा है। यहां आने वाले सैलानियों को यह सुविधा दी जाती है कि वो फॉर्म में जाकर अपने हाथों से अपनी पसंद की सब्जियों को तोड़ सकते हैं और रिसॉर्ट के शेफ को देकर मनपसंद खाना बनवा सकते हैं।
उनके रिसॉर्ट में इस समय करीब 20 लोग काम कर रहे हैं। रिसोर्ट की बाकी जमीन पर ये बहनें अपनी खेती का काम कर रही हैं। इसके साथ ही दोनो बहने गाँव के बच्चों को शिक्षा के प्रति भी जागरूक कर रही है। पर्यटन विकास और आजीविका के अवसर उपलब्ध कराने को ध्यान में रखते हुए ही कुशिका और कनिका ने सबसे पहले स्थानीय लोगों को हॉस्पिटैलिटी का प्रशिक्षण दिया। जिसका परिणाम यह है कि आज खेती से लेकर किचन तक का सारा काम स्थानीय लोग स्वयं संभाल रहे हैं और उन्हें आर्थिक सहायता भी प्राप्त हो रही है। आज उनकी ऑर्गनिक खेती तो छा ही गया है इसके अलावा उनका रिसोर्ट दुनियाभर में नाम कमा रहा है।
आज कुशिका और कनिका ना केवल अपने इस काम से बहुत खुश और उत्साहित हैं बल्कि आसपास रहने वाले ग्रामीण लोगों को रोजगार उपलब्ध करवा रही जिससे पलायन की समस्या को हल किया जाए। जैविक खेती के प्रति भी जागरूक कर रही है जो गाँव के लोगों को एक दिशा प्रदान करने का कार्य है। राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत कुशिका शर्मा को ऑर्गेनिक खेती में महारत के लिए सम्मान से नवाजा। दोनों बहनों अपने काम के लिए पहचाने जाने लगी हैं। उनका काम पूरे राज्य के युवाओं को प्रेरित कर रहा हैं। हम अपने लिए अच्छा करेंगे तो वो दूसरों को भी फायदा देगा। दोनों अपने काम से पूरे राज्य में रोजगार के अवसर खोजने का संदेश युवाओं को दे रहे हैं ताकि ये उत्तराखण्ड पलायन की बीमारी से निजात पा सकें।
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