(garhwali jokes) नमस्कार! हमारी गढ़वाली-कुमाउनी लोकभाषा कागजों पर जरूर कम लिखी-पढ़ी जाती है लेकिन आज इसे बोलने-बच्याने वालों की संख्या करोडो में हैं। लोगों को अभी भी अपनी भाषा का मोल समझ नहीं आया है हालांकि धीरे-धीरे लोकभाषाओं को पाठ्यक्रम के साथ भी जोड़ा जा रहा है जो कि एक अच्छी पहल कही जा सकती है।
खैर हम आज आपको इस बारे में परेशान करने नहीं आये हैं, बल्कि हंसाने आए हैं। हम आपके लिए कुछ गढ़वाली जोक्स(garhwali jokes) लेकर आये हैं जो कि आपको हंसाने के गुदगुदाने के लिए काफी हैं। अगर आप ये जोक्स को पढ़ेंगे तो हंसी नहीं रोक पाएंगे और रोकना भी क्यों है हंसी तो अच्छी होती है। हमारे स्वास्थ्य के लिए भी और आस-पास के वातावरण के लिए भी, इसलिए खूब हंसिए। फॉरवर्ड भी कीजिए।-
पहला जोक्स-
पडोस्यांण :- दीदी जी तुमर ब्यौ थेई एतगा साल व्हे गयीं पर, आज दिन्न तक हंमते ज्यठा जी कु नाम नि बताई कभी, क्या नाम दीदी जरा बातें दे ..?
दीदी :- अरे भुल्ली आज किले पुछणी छै तु नाम ऊँकु नाम फलाणु सिंह च….क्य बात च कुछ उटगाम त नि कार ऊँल?
पडोस्यांण :– अरे दीदी कुछ उटगाम न पर एक बात बता तिल अपडु कजे की “घुन्ति” पेणा (अंगुठ्या चुसणा ) कि आदत कन्क्वेकि छुडाई पर?
दीदी :- अरे भुल्ली ज्यादा कुछ न मि ऊँका सुलार ढीला सिलवान्दु तब्ब दिन्न भर द्वी हत्त सुलार ही समलण फर लग्यां रैंदी तब्ब घुन्ति कबरी पेण 😁🤣🤣🤣😍
दूसरा जोक्स-
मंगतू :- आजकल लॉकडाउन माँ बल घरेलू हिंसा बहुत ज्यादा बढ़ ग्याई बल फिर तेरा क्या हाल छिन भुला देबू ?
देबू :- देख भेजी मैं त खैड़ कट्यार .झाड़ू-पोछा भांण्डा-बर्तन ..मोल-पात टाइम पर करी देन्दु। फिर हम किले पिटें?😍😍😍😍😍
तीसरा जोक्स-
मंगतू नाई की दुकान पर दाढ़ी बणवाण खुणि चली ग्या साब। नाई न सर-सर क्रीम वलु बुरुस घुमाई
मंगतू- भैया यौं पिचग्या गलोडुं का चक्कर मा ह्यार हमेशा कई बाल छुट्टी जन्दी यांकू क्या इलाज च?
नाई- हां साब अभी देखदु। गोल लकड़ी की गोटी च घिच्चा पर रखल्या। (अब्ब साब चक्का चक्क दाढ़ी बणीगे, लेकिन गोटी मंगतू का गला परे अटकी गे)
मंगतू- लकड़ी कि गोली अगर कैका पेट म चली जाली त तब्ब क्या व्हालु रे, टेल मि फास्ट ..?
नाई ल ब्वाल :- अबे ह्यार भुल्ला तू घब्रान्दी भौत छे भें, क्वी बात नीच, लकड़ी कि गोली पेट मा अगर चली भी जाली त तू भोल सुबेर छुल्या-छल्या के मेमा वापस दे जाई तब्ब “जन्न अब्ब तक्क हौरि लोग दे जन्दी “😁😁😁😁😁😁😁
चौथा जोक्स-
कजे :- मिथे मालुम च, तिल्ल कभी क्वी भी काम ढंग से करण नीच कि सौं खाईकी अयीं छै मैत बटिकी, त्यार दिमाग म त गोबर भ्वरयूं च भगि गोबर….
कज्याँण :- अरे त, तुम फुण्ड जाओ यखम बटिकी, म्यार दिमाग किले चटणा छवा तबबब ……🤣🤣🤣🤣🤣🤣
पांचवा जोक्स-
टीचर :- हाँ जी ब्वालो तुमारू नाम क्याच? अर यू नाक कैल करण रे साप ?
फुरिया :- गुरजी म्यारु नाम फलाणु च और घार फन्न फुरिया बोल्दा सब्ब मेखुणी !
टीचर :- वाह जी वाह नाम त भल्लू च, पर यन बतावा फुरिया जी कि ताजमेहल कख चा !
फुरिया :- कुजाण गुरजी यु मीथै त पता नीच कख च ताजमहल !
टीचर :- गुस्सा मा नीच पता अभी खड़ा ह्वे जा टेबल मा!(फुरिया टेबल पर खड़ा होण का बाद):- पर गुरजी मीथै त अज्जि भि नि देखेणुच ! ताजमेहल 😍😍😍😍😍
छठा जोक्स-
एक शराबी अपनी घरवाली मा बुनू : – मी अगर
उत्तराखंड कु मुख्यमंत्री होंदु त मी उत्तराखंड
की तस्वीर बदल देन्दु ..
शराबी की घरवाली:- निर्भागी पैली अपणु पैजामा त
बदल, सुबेर बिटिकी मेरु सलवार पैरीकी छै घुम्णु लग्युं। 😁😁😁😁😁😁😁😁😁😁
सातवां जोक्स-
कजे गुस्सा मा :- ये तिल्ल मेखुणी कुकुर ब्वाल हैं?
कज्याँण :- कज्याँण सरमा सरीमी चुप्प्प .!!!
कजे फिर से :- ये तू सुणनी छे क्या तिल्ल मेखुणी कुकुर ब्वाल ना …?
कज्याँण :- फिर से एक दम्मम चुपपपपप …!!!
कजे :- अरे निर्बागी त्वेथे सूनेणु नीच क्या, बुने तिल्ल मेखुणी कुकुर ब्वाल ना …?
कज्याँण :- जोर से, नि ब्वाल मिल्ल सिन्न कुच्छ ना प्लीज तुम भुकुणु बन्द कारा अब्ब्ब… 🤣🤣🤣🤣🤣🤣
आठवाँ जोक्स (सबसे खतरनाक आखिर तक पढ़ियां लो)
एक बुढ़िड़ी सिनेमा हाल मा लिम्का की बोतल लेकी बैठी छायी। त साब बुढ़ीड़ी लिम्का कि बोतल थे कभी 15 मिनट मा गिच्चु फर लगाणी त कभी 20 मिनट बाद मा।
अब्ब बगल वाली सीट मा बैठयूं मंगतू भुला ये सब देखणु छई, थोड़ी देर बाद मंगतू तैं बुढ़ीड़ी देखी कि आयी गुस्सा,
अर्रर वैन ल बुढ़िड़ी हाथ फर बटिकी लिम्का की बोतल लच्छ लूछ, और घट्ट घट्ट घट्ट एक ही …सास मा सरा बोतल खाली कैरिक …
मंगतू बुढ़ीड़ी खुणी बुनु :- इन्न पिन्दी लिम्का बोडी, क्या लगीं छायी तु सुडुक्कक सुडुक्कक्कक्क, या तेफर सगोर जी नीच, सगोर भी हर्च बोडी त्यारु, कख माचे हर्ची छवीं छी बोडिकी तेरी भी ..।
बुढ़िड़ी :- पर ह्ये बेटा किले हुणु छे तु मेफर गुस्सा, अरे लाटा मि त बोतल म दिलबाग गुटखा चपायिकी थूकणु छायी रे ..l 😍😍😍😍😍
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