बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद होनी की अंतिम प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। कपाट बंद होने से पहले यहाँ पांच दिनों तक विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इसी दौरान पुजारी जी को साड़ी पहननी पड़ती है मंदिर के रावल यानी पुजारी सखी बनकर लक्ष्मी मंदिर में जाते हैं वो स्त्री वेष धारण करते हैं और लक्ष्मी के विग्रह को गोद में उठाकर मंदिर के अंदर भगवान के सानिध्य में रखते हैं। यहां मान्यता यह कि उद्धव ही कृष्ण के बाल सखा है और उम्र में बड़े, इसलिए लक्ष्मी जी के जेठ हुए। हिन्दू परंपरा के अनुसार जेठ के सामने बहू नहीं आती है। इसलिए पहले जेठ बाहर आयेंगे तब लक्ष्मी को विराजा जाएगा।
बद्रीनाथ धाम में श्री बदरीनारायण भगवान के पांच स्वरूपों की पूजा अर्चना होती है। विष्णु के इन पांच रूपों को ‘पंच बद्री’ के नाम से जाना जाता है। बद्रीनाथ के मुख्य मंदिर के अलावा अन्य चार बद्रियों के मंदिर भी यहां स्थापित है। श्री विशाल बद्री पंच बद्रियों में से मुख्य है। कहते हैं जब गंगा देवी पृथ्वी पर अवतरित हुई तो पृथ्वी उनका प्रबल वेग सहन न कर सकी। गंगा की धारा बारह जल मार्गो में विभक्त हुई। उसमें से एक है अलकनंदा का उद्गम। यही स्थल भगवान विष्णु का निवास स्थान बना और बद्रीनाथ कहलाया।
एक अन्य मान्यता है कि प्राचीन काल में यह स्थल जंगली बेरों से भरा रहने के कारण बद्री वन भी कहा जाता था। कहते हैं यहीं किसी गुफा में वेदव्यास ने महाभारत लिखी थी और पांडवों के स्वर्ग जाने से पहले यही अंतिम पड़ाव था। जहां वे रूके थे।
सबसे बड़ी धारणा ये है कि जब भगवान विष्णु योगध्यान मुद्रा में तपस्या में लीन थे तो बहुत अधिक हिमपात होने लगा। भगवान विष्णु हिम में पूरी तरह डूब चुके थे। उनकी इस दशा को देख कर माता लक्ष्मी का हृदय द्रवित हो उठा और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बेर (बदरी) के वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगीं। माता लक्ष्मीजी भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से बचाने की कठोर तपस्या में जुट गयीं ।
कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं। तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है सो आज से मुझे बदरी के नाथ-बदरीनाथ के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बदरीनाथ पड़ा।
19 नवंबर को बदरीनाथ मंदिर कपाट बंद होंगे। इससे पहले भगवान का शृंगार पुष्पों से किया जाएगा। अब तक भगवान आभूषणों और दिव्य वस्त्रों में रहते हैं। मगर कपाट बंद होने के दिन भगवान के संपूर्ण विग्रह को हजारों फूलों से सजाया जाएगा। न सिर्फ भगवान का श्रृंगार फूलों से होगा बल्कि संपूर्ण मंदिर परिसर फूलों से सजा होगा। 19 नवंबर को जब कपाट बंद होंगे तो उससे पूर्व बदरीनाथ गर्भगृह में विराजित कुबेर जी और उद्धव जी के विग्रह को सम्मान पूर्वक बाहर लाया जाएगा। इन्हें दूसरे दिन पांडूकेश्वर लाया जाता है। ')}