देहरादून में डेंगू का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा, अब तो हर घर से डेंगू के मरीज सामने आ रहे हैं। डेंगू के मरीजों की कोई गिनती नहीं है। हर अस्पताल फुल है और उनके पास नए मरीज के लिए बेड नहीं है। जागरूकता की भी भारी कमी देखने को मिल रही है। यही वजह है कि डेंगू की पुष्टि होते ही लोग अस्पताल की शरण ले रहे हैं। प्राइवेट अस्पताल वार्ड का मनमाना किराया लेकर इलाज कर रहे हैं। अस्पतालों की इस मनमानी से कई लोग प्रभावित हुए हैं। लोगों को कर्जे लेकर इलाज करना पड़ा है। ऐसे में जागरूकता बेहद जरूरी है इस तरह डेंगू से ही नहीं, लूट से भी बचा सकता है।
देहरादून में भयंकर वाले डेंगू के कारणों का पता लगाने के लिए केंद्र से एक विशेषज्ञों की टीम पहुंची। पत्रकार वार्ता में उन्होंने बताया कि स्ट्रेन बदलना और बारिश कम होना डेंगू के घातक होने का कारण है। विशेषज्ञों ने बताया कि डेंगू से डरें नहीं, समय पर इसकी पहचान कर डॉक्टर्स से उपचार करवा लें।
आँखों में दर्द महसूस होना डेंगू का सबसे बड़ा लक्षण है। डेंगू का वायरस एक तय समय के बाद प्रकृति में बदलाव करता है। इससे वायरस की ताकत बढ़ जाती है। इस कारण पहले की तुलना में यह ज्यादा खतरनाक होता है।
इस साल डेंगू वायरस को मौसम अच्छा मिल गया, इसीलिए इतने मरीज सामने आ रहे हैं। वहीं, कम बारिश की वजह से भी एडीज मच्छर की आबादी बढ़ने से डेंगू का प्रकोप बढ़ा है। उन्होंने बताया कि डेंगू पर 80 प्रतिशत तक मरीजों को बिना भर्ती किये ही ठीक किया जा सकता हैं। वहीं, डेंगू में द्रव्य के प्रोटोकॉल का पालन कर बेहतर उपचार किया जा सकता हैं।
उन्होंने बताया कि प्लेटलेट्स की कमी मरीज की मृत्यु का कारण नहीं होती, डेंगू में मृत्यु रक्त प्रवाह में द्रव्य की कमी से होती है, जिसे शॉक कहते हैं। जब खून में द्रव्य की कमी होती है तो पीसीवी बढ़ने लगता है और यही मौत की वजह बनता है। इसका मतलब यह है कि डेंगू के मरीज में पानी की कमी नहीं होने दी जाए। डेंगू के मरीजों को पानी और ओआरएस का घोल ज्यादा से ज्यादा पिलाना चाहिए। इससे गंभीर से गंभीर मरीज भी बच जाएगा।
डेंगू स्वयं की रोगप्रतिरोधक क्षमता से ठीक होता है। डॉक्टर का तो एक ही काम होता है कि पांच से दस दिन तक डेंगू के मरीज की स्थिति को स्थिर रखना और उसमें पानी की आपूर्ति को बनाए रखना। पीसीवी बढ़ने अथवा खतरे के लक्षण उत्पन्न होने पर मरीज को तुरंत भर्ती कर ड्रिप के माध्यम से ठीक किया जाता है।
मरीज में पानी की शुरुआती आपूर्ति नहीं करके उसे दूसरे शहर ले जाना खतरनाक हो सकता है, क्योंकि बड़े अस्पताल में होने से अधिक महत्वपूर्ण है, जल्दी कम होते द्रव्य की आपूर्ति करना। बुखार को कम करने के लिए एस्पिरिन, ब्रूफेन जैसी दवाएं न लेकर पेरासिटामोल लेना चाहिए। खास ध्यान परहेज को लेकर रखना चाहिये। जिनकी रोग प्रितरोधक छमता कमजोर हैं, उन्हें इलाज की ज्यादा आवश्यकता होती है।
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