उत्तराखंड में आज के समय में एक ऐसा गांव है जहां ‘भगवान की कसम’ खाकर आसानी से लाखों का लोन मिल जाता है चलिए जानते हैं इस बारे में पूरी जानकारी और भेद-
आज के समय में बैंक से लोन लेना कितना मुश्किल हो गया है। कैसे भी करके ले-देकर बैंक से लोन मिलने की उम्मीद भी जागती है तो इतनी सारी फॉर्मेलिटीज होती हैं कि इंसान परेशान ही हो जाता है। लेकिन भारत में एक गांव ऐसा भी है जहां पर सिर्फ भगवान की कसम खाने पर ही लोन मिल जाता है।
उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल में स्थित गंगी गांव अपनी इसी खासियत की वजह से प्रसिद्ध है कि यहां पर किसी भी व्यक्ति को सिर्फ ‘भगवान की कसम’ खाने पर ही आपको लोन मिल जाता है। इस गांव में भगवान सोमेश्वर की कसम खाकर कोई भी व्यक्ति लोन ले लेता है और यह लोन इस कसम के बदले बहुत आसानी से मिल भी जाता है। इस गांव में लोन लेते समय गारंटी के तौर पर भगवान की कसम खिलवाई जाती है।
इस गांव के बीच में ही भगवान सोमेश्वर का एक मंदिर स्थित है और जब किसी को भी लोन लेना होता है तो वह इस मंदिर के प्रांगण में दिया जलाकर भगवान सोमेश्वर की कसम खा लेता है जो की लिए जा रहें लोन की वापसी की गारंटी होती है। बताया ये भी जाता है कि इस गांव में कई साहूकार हैं जिसकी वजह से इस गांव को साहूकार विलेज भी कहा जाता है।
आपको बता दें कि ग्रामीण यहां अपनी कमाई की रकम जमा करते हैं और उसे जरूरत मंद को व्याज पे दिया जाता है जो व्याज का पैसा होता है उसे गाँव के हित में खर्च किया जाता है यानी जो पैसा जमा करता है उसे बहुत कम व्याज मिलता है लेकिन उस व्याज के जादातर हिस्से को ग्रामीण कार्यों के लिए इस्तेमाल किया जाता है व्याज भी भगवन सोमेश्वर महदेव की कसम खाने मात्र से दिया जाता है आज तक कोई भी ऐसा केश नहीं हुआ है कि किसी ने कर्जा ना लौटाया हो।
इस गांव के लोगों द्वारा अभी तक केदार घाटी के लोगों को सबसे ज्यादा पैसा लोन के रूप में दिया गया है। केदार घाटी के अलावा यहां पर भिलंगना घाटी तथा गंगोत्री के साथ ही रूद्रप्रयाग और गुप्तकाशी जैसे और भी कई स्थानों के लोगों को भगवान सोमेश्वर की कसम दिला कर लोन दे दिया जाता है। बात यह है कि यदि विश्वास हो तो कोई भी किसी को कुछ भी दे ही सकता है, इस प्रकार की लोन व्यवस्था करके इस गांव ने अब तक हजारों जरुरतमंद लोगों की मदद का जो इतिहास रचा है वह काबिले तारीफ है।
वैसे हमारे उत्तराखंड में लोन कागजों से कम और भरोसे से जादा दिया जाता है लेकिन आज समय की बदलती परिस्थितियों में ऐसा सिर्फ उन्ही गांव में ही हो सकता है जहां सालों पहले से ये परम्परा है। वो भगवान को आज भी अपना साक्षी मानते हैं। उन्हें पूजते हैं, नचाते हैं और खुशहाल जीवन जीते हैं। ')}