उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। बदरी, केदार, गंगोत्री और यमुनोत्री चार धामों के यहां स्थित होने से यह देश भर के करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र भी है, लेकिन राज्य में ऐतिहासिक, पौराणिक मंदिरों की परंपरा इन्हीं चार धामों पर खत्म नहीं होती, बल्कि यहां कई ऐसे मंदिर स्थित हैं, जिनका धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। इन्हीं में से एक है टिहरी जनपद स्थित बूढ़ाकेदार।
यह मंदिर टिहरी गढ़वाल के थाती कठूड़ नाम पर स्थित है बूढ़ा केदार मंदिर में भगवान शिव अपने वृद्ध रूप में विराजमान है यहां पर भगवान शिव ने पांडवों को वृद्ध के रूप के दर्शन दिए थे।
स्कंद पुराण के केदारखंड में भगवान बूढ़ा केदार का जिक्र सोमेश्वर महादेव के रूप में किया गया है जिसमें कहा गया है भगवान शिव बाल गंगा और धर्म गंगा नदियों के संगम पर पांडवों को वृद्ध रूप में दर्शन देकर अंतर्ध्यान हो गए थे। इस तरह से वृद्ध ब्राह्मण में दर्शन देने के कारण सदाशिव भोलेनाथ वृद्ध केदारेश्वर या बूढ़ा केदारनाथ कहलाने लगे बूढ़ा केदार उत्तराखंड का पांचवा धाम भी कहलाता है।
उत्तराखण्ड में बूढ़ाकेदार का एक ऐतिहासिक महत्व है। यहाँ पर बूढ़ा केदार बाबा का पौराणिक मंदिर है, जिसके दर्शन करने आज भी सैकड़ों पैदल तीर्थ यात्री हर साल आते हैं। जब तक उत्तराखण्ड में सड़कों का विकास नहीं हुआ था, तीर्थयात्रियों के लिये बूढ़ाकेदार का एक महत्वपूर्ण स्थान रहता था।
सड़कों के विकास के साथ तीर्थयात्री भी सुविधाभोगी बने और उनका बूढ़ाकेदार आना कम हुआ। ऐसा एक स्थानीय बुजुर्ग बता रहे थे। पहले यमुनोत्री, गंगोत्री के बाद तीसरा धाम केदारनाथ माना जाता था। बूढ़ाकेदार के बारे में कहते हैं कि बाबा केदार यहाँ कुछ समय तक रुके थे। किसी बंगाली रचनाकार ने बूढ़ाकेदार को ‘सागरमाथा’ नाम देकर अलंकृत किया है।
भिलंगना ब्लाक में कई ऐसे पर्यटक स्थल है जो नैसर्गिक सुंदरता से परिपूर्ण होने के साथ ही धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। बूढ़ाकेदार के निकट महासरताल बुग्यालों और तालों का अनोखा संगम है, जो बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है लेकिन प्रचार-प्रसार के अभाव में यह पर्यटक स्थल आज भी उपेक्षित है।
बूढ़ाकेदार से 9 किमी पैदल उत्तर दिशा में 33 सौ मीटर की ऊंचाई पर स्थित महासरताल पर्यटक स्थल के साथ-साथ बालगंगा घाटी के 27 गांवों का पौराणिक धार्मिक स्थल भी है।’महासरताल’ की लम्बाई 80 मीटर व चौड़ाई 35 मीटर से भी अधिक है। इस ताल के दक्षिण में एक और ताल है जो माहेश्वरी ताल के नाम से विख्यात है।
भाद्र मास व गंगा दशहरे के दिन स्थानीय लोग अपने देवी-देवताओं की डोलियां यहां स्नान के लिए लाते है। गंगा दशहरा पर यहां मेला भी आयोजित किया जाता है।यह इस लिए भी महत्वपूर्ण है कि यहां से पांडव सहस्त्रताल होते हुए स्वर्गारोहण गए थे। महासरताल के समीप ही पांडव डोखरी नामक स्थान है, यहां से धर्म गंगा निकलती है। पुराणों से ज्ञात होता है कि यह नदी धर्मराज की देन है। स्थानीय लोग पांच महीने के लिए अपने मवेशियों के साथ यहां पर छान बनाकर रहते है।सभी खूबियां समेटे यह स्थल प्रचार-प्रसार व सुविधाओं के अभाव में आज भी उपेक्षित है। यदि इस पर्यटक स्थल को विकसित किया जाए तो यहां पर पर्यटन की अपार संभावनाएं है।