केदारनाथ यात्रा के मुख्य पड़ाव गौरीकुंड में मां गौरा माई का मंदिर मौजूद है। खास बात ये है कि बाबा केदार की उत्सव डोली गौरीकुंड पहुंचने से पहले ही गौरा माई अपने शीतकालीन गद्दीस्थल को रवाना हो जाती है, जिससे बाबा केदार व गौरा माई का मिलन नहीं होता है। इसके पीछे एक मान्यता है। जिसके बारे में हम आपको बता रहे हैं शनिवार को सुबह ठीक 8 बजे पुजारी विमल जमलोकी एवं ब्राह्मणों ने वैदिक मंत्रोच्चारण एवं पौराणिक रीति रिवाज के साथ भक्तों के दर्शनार्थ मां गौरा माई के कपाट बंद किए।
मां की डोली ने मंदिर की एक परिक्रमा करने के बाद गौरी गांव के लिए रवाना हुई। इस दौरान भक्तों एवं क्षेत्रीय ग्रामीणों के जयकारों से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया। मां गौरामाई के गौरी गांव पहुंचते ही ग्रामीणों ने फूल मालाओं एवं अक्षतों से जोरदार स्वागत किया। मां की भोग मूर्ति को चंडिका मंदिर में विराजमान किया गया। अब शीतकाल के छह माह तक यहीं पर मां गौरामाई की पूजा अर्चना संपन्न की जाएगी।
यह है मान्यता –
भगवान शिव ने पार्वती के अंग निर्मित गणेश से युद्ध करने के बाद उसका सिर काट दिया था, जिससे गौरामाई शिव से नाराज हो गई थीं, इसलिए केदारनाथ की उत्सव डोली गौरीकुंड पहुंचने से पहले गौरामाई की डोली गर्भगृह से बाहर आकर अपने शीतकालीन गद्दीस्थल गौरी गांव के लिए रवाना होती है, ताकि भोले बाबा व गौरामाई का मिलन नहीं हो सके। केदारनाथ के कपाट खुलने से पहले गौरामाई के कपाट खुलने की परंपरा है। कहा जाता है कि फिर उसी दिन भगवान शिव व पार्वती का मिलन होता है।