उत्तराखंड और भारत का आखिरी गांव कहा जाने वाला माणा गाँव अपने आप में विश्विख्यात है हिन्दू धर्म में मान्याता है कि जो व्यक्ति इस गाँव एक बार आता है वो दुःख, दरिद्रता, गरीबी को पीछे छोड़ जाता है।
हिमालय में बद्रीनाथ से तीन किमी आगे समुद्र तल से 18,000 फुट की ऊँचाई पर बसा है भारत का अंतिम गाँव माणा। भारत-तिब्बत सीमा से लगे इस गाँव की सांस्कृतिक विरासत तो महत्त्वपूर्ण है ही, यह अपनी अनूठी परम्पराओं के लिए भी खासा मशहूर है। यहाँ रडंपा जनजाति के लोग निवास करते हैं।
पहले बद्रीनाथ से कुछ ही दूर गुप्त गंगा और अलकनंदा के संगम पर स्थित इस गाँव के बारे में लोग बहुत कम जानते थे लेकिन अब सरकार ने यहाँ तक पक्की सड़क बना दी है।
इससे यहाँ पर्यटक आसानी से आ जा सकते हैं, और इनकी संख्या भी पहले की तुलना में अब काफी बढ़ गई है। भारत की उत्तरी सीमा पर स्थित इस गाँव के आसपास कई दर्शनीय स्थल हैं जिनमें व्यास गुफा, गणेश गुफा, सरस्वती मन्दिर, भीम पुल, वसुधारा आदि मुख्य हैं।
यहां हिमालय क्षेत्र में मिलने वाली अचूक जड़ी-बूटियां भी मिलती हैं जिसके लिए माणा बहुत फेमस है हालांकि यहाँ के बहुत कम लोगों को इसकी जानकारी है। यहाँ मिलने वाली कुछ उपयोगी जड़ी-बूटियों में ‘बालछड़ी’ है जो बालों में रूसी खतम करने और उन्हें स्वस्थ रखने के काम आती है। इसके अलावा ‘खोया’ है जिसकी पत्तियों से सब्ज़ी बना कर खाने से पेट बिल्कुल साफ हो जाता है।
यहां मिलने वाली ‘पीपी’ की जड़ भी काफी प्रसिद्ध है, इसकी जड़ को पानी में उबाल कर पीने से भी पेट साफ होता है और कब्ज की शिकायत नहीं रहती। ‘पाखान जड़ी’ भी अपने आप में बहुत कारगर है, इसको नमक और घी के साथ चाय बनाकर पीने से पथरी की समस्या कभी नहीं होती और पथरी के इलाज में भी ये बहुत कारगर साबित होती है।
यहां गणेश गुफा और व्यास गुफा भी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि वेदव्यास ने माणा गांव में ही महाभारत की रचना की थी और पांडव स्वर्गारोहिणी इसी गांव से होकर गये थे। इन दोनों घटनाओं के कुछ चिन्ह अब भी यहां विद्यमान हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार व्यास ने इसी गुफा में महाभारत का सृजन किया था।
इसी गांव के निकट भीमपुल भी है, जब पांडव इस मार्ग से गुजरे थे, तब वहाँ दो पहाड़ियों के बीच गहरी खाई थी, जिसे पार करना आसान नहीं था। तब कुंतीपुत्र भीम ने एक भारी-भरकम चट्टान उठाकर फेंकी और खाई को पाटकर पुल के रूप में परिवर्तित कर दिया। बगल में स्थानीय लोगों ने भीम का मंदिर भी बना रखा है।
यहाँ से करीब 5 किमी की दूरी पर बसुधारा जल-प्रपात है जो लगभग 400 फीट ऊँचाई से गिरता है। इस जल-प्रपात का पानी मोतियों की बौछार करता हुआ-सा प्रतीत होता है। कहा जाता है कि जिस व्यक्ति ने पाप किया हो ये जल उसके उपर नहीं गिरता है उत्तराखंड संस्कृत अकादमी, हरिद्वार के उपाध्यक्ष पंडित नंद किशोर पुरोहित बताते हैं कि इस गांव में आने पर व्यक्ति स्वप्नद्रष्टा हो जाता है। जिसके बाद वह होने वाली घटनाओं के बारे में जान सकता है।
यहां आकर आदमी अपनी दरिद्रता, गरीबी से छुटकारा पा लेता है, माँ गंगा, माँ सरस्वती, भगवान गणेश का वरदान यहां आकर हर मानव को प्राप्त हो जाता है। यहां से जल अपने घर ले जाने से आदमी पाप और लोभ से हमेशा के लिए मुक्त हो जाता है।
आपकी जानकारी के लिए बता देते हैं कि माणा गांव चीन की बॉर्डर से सटा नहीं है चीन बॉर्डर इस गाँव से 40 किमी दूर है। हाँ ये जरूर है कि दुर्गम पहाड़ियां होनी की वजह से इस से आगे कोई गांव नहीं है। इस लिए इसे भारत का आखिरी गांव कहा जाता है।
यहां पर भगवान शिव की ऐसी महिमा है कि जो भी यह आता है उनकी गरीबी दूर हो जाती है। इतना ही नहीं इस गांव को श्रापमुक्त जगह का दर्जा प्राप्त है। यह माना जाता है कि यहां आने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है शिवभक्त माणिक शाह के नाम से इस गांव नाम माणा पड़ा था। ')}