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उत्तराखंड संस्कृति

पयां (पदम्) का वृक्ष देवताओं का वृक्ष माना जाता है इससे होने वाले फायदे आप भी नहीं जानते होंगे

July 18, 2017
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prunus cerasoides
उत्तराखंड मे देवताओं का वृक्ष माना जाने वाला पयां (पद्म) आज के समय मे विलुप्त की कगार पर है। लम्बी आयु वाला यह पेड़ अपनी हरी भरी जटाओं के लिए विख्यात है माना जाता है। यह नागराज का वृक्ष होता है रोजेशी वंश के इस पौधे का वैज्ञानिक नाम प्रुन्नस सीरासोइडिस(prunus cerasoides) है हिंदी में इसका नाम पद्म या पदमख कहा जाता है  अंग्रेजी में इसे Bird Cherry के नाम से जाना जाता है। धार्मिक महत्व रखने वाला यह वृक्ष ऊँचे हिमालयी क्षेत्र मे उगता है उत्तराखंड के लिहाज से इस वृक्ष का बडा ही महत्व है। साथ ही यह उत्तराखंड की संस्कृति से जुडा है मवैशी इसकी घास नही खाते लेकिन जो खाते हैं उस मवैशी के लिऐ यह पोस्टिक आहार है। उत्तराखंड में यह वृक्ष काफी मात्रा में मिलता है लेकिन अब इन पेड़ों की संख्या कम होती जा रही है जो की एक चिंता का विषय बना हुआ है ।

यह भी देखें- हमने जिन मालुपत्ति मे सालों से भात खाया था जर्मनी कहता है ये उनकी नई खोज है।

उत्तराखंड के प्रपेक्ष मे इस पेड़ के फायदे-

पयां का वृक्ष गुणो की खान है हमारे उत्तराखंड मे इसके बडे फायदे हैं ।ओर उन्ही फायदो के चलते इस पेड़ का आज बहुत जादा दोहन हो गया है अब यह पेड विलुप्ति के कगार पर आ गया है चलिए पहले हम उत्तराखंडियों के लिए इसके फायदे जान लेते हैं-
  •  पयां का फल खाना अत्यन्त लाभकारी है पेट की कई समस्याऐं इसके फल खाने से दूर हो जाती है।
  • उत्तराखंड मे इसका उपयोग, राजमा की डाल के गुचे, ककडी की डाल के लिऐ पंया का वाण(पंया के पेड से काटी गयी मोटी शाखा) इस्तेमाल किया जाता है।
  • कई जगह यह मवेशियों के लिऐ घास है लेकिन अधिकतर मवेशी कडवा होने की वजह से इसे नही खाते।
  • धार्मिक दृष्टि से इसका बडा महत्व है। पूजा के लिऐ पंया की पत्तियों का पवित्र मानी जाती हैं। जिस तरह शहर में लोग आम की पत्तियों की माला घर के द्वार पर गृह प्रवेश या हवन इत्यादि के बाद लगाये जाते है ठीक उसी प्रकार उत्तराखंड मे इस पेड़ की पतियों का इस्तेमाल होता है। 
  • पंया के पेड की छाल से दवा बनती है ओर रंग बनाने मे भी इसका प्रयोग किया जाता है। इस पेड़ का दवाइयों के लिए बड़े पैमाने में प्रयोग होता है।
  • इसकी लकडी चन्दन के सम्मान पवित्र मानी जाती है हवन मे पंया की लकडी का इस्तेमाल करना पवित्र माना जाता है।
  • पंया के पेड की डंठल ढोल ढमाऊं बजाने के काम आती है इस पेड की डंठल से वाद्ययंत्र बजाने मे अलग ही राग पैदा होता है।
  • यह पेड काफी समय के बाद पतातियां छोडता है जिसका इस्तेमाल हम गाय बकरियों के सुखे विछोने के रूप मे इस्तेमाल करते हैं जो आगे चलकर उर्वरा शक्तिदायक खाद का काम करती है।
  • पंया के पेड का सांस्कृतिक रीति रीवाजों से भी है शादी मे प्रवेश द्वार पर पंया की शाखाऐं लगाकर निर्माण किया जाता है साथ ही शादी का मंडप भी पंया की झाडियों के बगैर अधूरा माना जाता है।
  • यह ऐक मजबूत पेड होता है जिसकी लकडी का इस्तेमाल जलाने तक ही सीमित नही है बल्कि अन्य कार्यों मे इसका प्रयोग किया जाता है जैसे गेहूं कूटने वाला डंडा, या गाय, भैंस बांधने के लिऐ इसके किले का इस्तेमाल किया जाता है।

पंया के वृक्ष को हमे बचाना होगा-

पयां के इस गुणकारी पवित्र वृक्ष को बचाने के लिऐ सरकार की ओर से जोर दिया जा रहा है हालांकि सरकारी काम हमेशा ही अधूरे होते हैं। इसलिऐ जरूरी है कि हम लोगों को इसको बचाने के लिऐ एक मुहिम चलानी होगी उपयोग के लिए इसे छोटे मे ही काटना सबसे बडा अफराद है। सोचो यदि यह वृक्ष एक बार बडा हो जाता है तो कई तरह से यह हम लोगों को फायदा पहुंचाता है। लेकिन हम उस इस बात को नही समझते हम यह नही सोच पाते कि एक दिन यह वृक्ष बडा होगा इसपे फूल लगेगें उन फूलों का मधुमखियां रस पान करेंगी ओर फिर गुणकारी कार्तिकी शहद उत्तराखंड को मिलेगा। इसलिऐ हमे नीजि स्वार्थ को त्यागकर इस वृक्ष को सबके लिऐ अपनी आनी वाली पीढ़ी के लिऐ पनपने देना होगा ताकि वो भी इस पेड़ का उसी तरह फ़ायदा ले सकें जिस तरह हमने लिया है। फिर कहीं वो भी इसे बचाने की मुहीम आगे बढ़ाएंगे।

यह भी देखें-गढ़वाल में क्रिकेट का लाइव मज़ा ये विडियो हो रहा वायरल 11 लाख लोग बोले ‘गजब’

 

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Debanand pant July 18, 2017
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